3 तरह के होते हैं पेट के अल्सर, कब्ज और जलन होते हैं शुरुआती संकेत

अगर इंसान का पेट सही है तो समझो वह राजा है। करीब 90 प्रतिशत बीमारियां इंसान को पेट की गड़बड़ी के कारण होती है। कोई भी बड़ी बीमारी होने से पहले कई बार संकेत देता है। अगर इन संकेतों को इंसान समझ गया तब तो स्थिति काबू में आ सकती है। लेकिन अगर आपने इन्हें इग्नोर किया तो यह एक वक्त के बाद गंभीर रूप ले लेते हैं। अक्सर पेट की गड़बड़िया खाने पीने में लापरवाही, योग और एक्सरसाइज के अभाव और बिगड़े लाइफस्टाइल के चलते होती हैं। 
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3 तरह के होते हैं पेट के अल्सर, कब्ज और जलन होते हैं शुरुआती संकेत

अगर इंसान का पेट सही है तो समझो वह राजा है। करीब 90 प्रतिशत बीमारियां इंसान को पेट की गड़बड़ी के कारण होती है। कोई भी बड़ी बीमारी होने से पहले कई बार संकेत देता है। अगर इन संकेतों को इंसान समझ गया तब तो स्थिति काबू में आ सकती है। लेकिन अगर आपने इन्हें इग्नोर किया तो यह एक वक्त के बाद गंभीर रूप ले लेते हैं। अक्सर पेट की गड़बड़िया खाने पीने में लापरवाही, योग और एक्सरसाइज के अभाव और बिगड़े लाइफस्टाइल के चलते होती हैं। अगर पेट सही नहीं होता तो पेट में अल्सर जन्म ले लेता है। इसके लक्षण शुरुआत में बहुत आम होते हैं लेकिन बाद में यह खतरनाक रूप ले लेता है। हालांकि पेप्टिक अल्सर की वजह से भी यह परेशानी हो सकती है। आपको बता दें कि पेट के अल्सर 3 तरह के होते हैं। आइए जानते हैं क्या है ये—

क्या है मर्ज

पेट के भीतरी हिस्से की त्वचा बहुत नाजुक होती है। कई बार खानपान की गलत आदतों की वजह से आंतों की त्वचा में छाले या जख्म की समस्या हो जाती है, जिसे अल्सर कहा जाता है। पेट के भीतर स्थित भोजन की नली, आमाशय और आंतों के भीतर म्यूकस की एक चिकनी परत होती है, जो इन अंगों को पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक एसिड से बचाती है। इनकी खासियत यह है कि ये अम्लीय तत्व भोजन को पचाने में सहायक होते हैं, लेकिन ये पेट के टिश्यूज के लिए नुकसानदेह भी होते हैं। पाचन क्रिया को सही ढंग से चलाने के लिए इनकी मौजूदगी जरूरी है। आमतौर पर एसिड और म्यूकस की परतों के बीच संतुलन बना रहता है, लेकिन इसके बिगडऩे पर अल्सर की आशंका बढ जाती है। अल्सर तीन प्रकार के होते हैं:

1. गैस्ट्रिक अल्सर : यह आमाशय के भीतर विकसित होता है।

2. इसोफैगियल अल्सर : यह खाने की नली इसोफैगस में होता है, जो भोजन को गले से पेट में ले जाती है।

3. डुओडेनल अल्सर : छोटी आंत के ऊपरी हिस्से को ड्योडेनम कहा जाता है और इस हिस्से में होने वाले अल्सर को डुओडेनल अल्सर कहा जाता है। पेप्टिक अल्सर से पीडितों में लगभग 80 प्रतिशत लोग डुओडेनल अल्सर से ग्रस्त होते हैं।

प्रमुख वजह

इस समस्या का सबसे प्रमुख कारण एच.पायलोरी बैक्टीरिया है, जिसका संक्रमण गंदगी या दूषित पानी की वजह से होता है। शारीरिक सक्रियता में कमी या कमजोर इम्यून सिस्टम की वजह से भी यह समस्या हो सकती है। रोजाना के भोजन में बहुत ज्य़ादा घी-तेल या मिर्च-मसाले का इस्तेमाल, अधिक मात्रा में चाय-कॉफी, एल्कोहॉल, सिगरेट एवं तंबाकू का सेवन पेट में पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा को बढा देता है, जो पेप्टिक अल्सर का कारण बन जाता है। मानसिक तनाव की स्थिति में भी आंतों से अधिक मात्रा में एसिड का सिक्रीशन होता है, जिससे यह समस्या हो सकती है। स्टेरॉयड और दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन भी पेप्टिक अल्सर के लिए जिम्मेदार होता है।

कैसे पहचानें लक्षण

हर व्यक्ति में पेप्टिक अल्सर के अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं। फिर भी कुछ ऐसे प्रमुख लक्षण हैं, जो सब में समान रूप से पाए जाते हैं। भूख न लगना, पेट के ऊपरी हिस्से में हलका दर्द आदि। ख्ाासतौर पर ज्य़ादा देर तक खाली पेट रहने पर एसिड अल्सर ग्रस्त कोशिकाओं पर असर डालने लगता है और दर्द तेज हो जाता है। पेप्टिक अल्सर का दर्द ज्य़ादातर रात के वक्त बढ जाता है। ऐसी समस्या होने पर पेट में जलन और सूजन जैसे लक्षण नजर आते हैं। पेप्टिक अल्सर होने पर खाने की नली सिकुडकर छोटी हो जाती है। इससे नॉजिया और उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। उपचार में ज्य़ादा देर होने पर अल्सर में हैमरेज भी हो सकता है। ऐसे में मोशन के साथ ब्लीडिंग या खून की उल्टी जैसी समस्या हो सकती है। यह स्थिति जानलेवा साबित होती है।

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क्या है उपचार

पेप्टिक अल्सर का सही समय पर उपचार बेहद जरूरी है। अन्यथा, ज्य़ादा देर होने पर इसकी वजह से आंतों का कैंसर भी हो सकता है। गंभीर स्थिति में प्रभावित स्थान से खून का रिसाव होने लगता है। नतीजतन शरीर में खून की कमी हो जाती है और आमाशय या छोटी आंत की दीवारों में छेद हो जाता है। इससे संक्रमण की आशंका बढ जाती है, पेट के टिश्यूज तेजी से क्षतिग्रस्त होने लगते हैं और भोजन के प्रवाह में भी बाधा पहुंचती है। व्यक्ति का वजन तेजी से घटने लगता है। ब्लड या स्टूल एंटीजेन टेस्ट की मदद से शरीर में एच. पायलोरी बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता चल जाता है।

एंडोस्कोपी के जरिये आंतों की बायोप्सी करके भी इस बीमारी का पता लगाया जाता है। रिपोर्ट पॉजिटिव होने की स्थिति मेें पीपीआइ दवाओं का डोज दिया जाता है, जो एसिड बनने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं। अगर शुरुआती दौर में ही पहचान कर ली जाए तो केवल दवाओं के सेवन और सादगीपूर्ण खानपान की मदद से तीन-चार महीने में यह समस्या दूर हो जाती है। बैक्टीरिया का रेजिस्टेंस पावर बढऩे की वजह से कई बार लोगों को लंबे समय तक दवाएं खाने की जरूरत पड सकती है। गंभीर स्थिति में सर्जरी ही इसका एकमात्र उपचार है। ऑपरेशन के एक सप्ताह बाद मरीज अस्पताल से घर वापस लौट आता है। इसके बाद डॉक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए वह पूर्णत: स्वस्थ और सक्रिय जीवन व्यतीत करता है।

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