डा. फ्रेसर, जो की सितोरी थेरेपेटिक प्राइवेट लिमिटिड में प्रमुख वैज्ञानिक हैं, उनसे हुए इंटरव्यू के उद्धरण कुछ इस प्रकार हैं
- आपके हिसाब से आज भारत में स्टेम सेल पर शोध का भारत में क्या चलन है ?
इस शोध पर लोग कैसे अपने आप को सम्मिलित कर रहे हैं ? भारत में कई शोध कार्यक्रम हैं जो की स्टेम सेल और उनके फायदे के ऊपर किये जा रहे हैं। अगर इतिहास मे देखा जाए तो यह ज्यादातर अस्थि मज्जा से निकली हुई कोशिकाओं पर केंद्रित है पर हाल ही में कोशिकाओं के अन्य स्रोत की तरफ भी ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। जैसे की एडिपोस ऊतक [वसा] जो की मरीज़ से आसानी से निकाला जा सकता है और यह कोशिका की मात्रा भी ज्यादा देता है । भारत के पास काबिलियत है की यह रेजेनेरेटिव मेडिसिन में सबसे आगे निकल सकता है और हाल ही में बनाए गए राष्ट्रीय एपेक्स कमेटी जो की देश में स्टेम सेल पर शोध को देखता है, इससे हम अपेक्षा करते है की भारत में एविडेंस बेस्ड रिसर्च में आने वाले समय मेबहुत बढोत्तरी आएगी ।
- भारत कैसे विश्वव्यापी स्टेम सेल शोध में अपना महत्त्पूर्ण किरदार निभा सकता है ?
क्या भारत ऐसे आमूल परिवर्तन के लिए तैयार है ?जैसा की मैंने पहली कहा भारत के पास रीजेंरेतिव मेडिसिन और स्टेम सेल शोध में सबसे आगे निकलने की काबिलियत है।भारतीय वैज्ञानिक और उनके द्वारा बनाया गया विज्ञान की पूरे दुनिया में सराहना की जाती है ।पर उनके अंदर` भरी इस काबिलियत को निकालने के लिए स्टेम सेल शोध से सम्बन्धित मूल भूत सेवाओं में तेज़ी लानी पड़ेगी ।यह क्षेत्र बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है और इसको नियंत्रण में रखने वाली सेवाओं को यह बात ध्यान में रखनी है की वे इसकी गति से कदम से कदम मिला कर चले ताकि यह पक्का हो सके की मरीज़ सुरक्षित हैं ।
- क्या आप सिटोरी द्वारा निकाले गए एडिपोस टिशु स्टेम सेल के महत्ता के बारे में कुछ बताना चाहेंगे ?सिटोरी थेराप्यूटिक्स का मकसद है की चिकित्सयी रूप से सही एडिपोस ऊतक से निकाले गए स्टेम सेल और रीगेनेरेतिव कोशिकाओं एडिआर्सी) उपलब्ध कराना। एआर्डीसी जिन्हें हम कभी कभी स्ट्रोमल वस्कुलर फ्रेक्शन सेल भी कहते हैं जो की कोशिकाओं अलग और मिश्रित जनसख्या होती है जो की वसा ऊतक में पायी जाती है। इन कोशिकाओं की जनसंख्या में आते हैं व्यसक स्टेम सेल, एन्डोथेलियल प्रोजेनितर सेल , ल्युकोसाईट, एन्डोथेलियल कोशिकाए और वस्क्युलर स्मूथ मसल कोशिकाए ।एआर्डीसी का प्रयोग एक अलग तरीका है जो की स्टेम सेल और रेजेनेरेतिव कोशिकाओं से बढकर है ।
जबकि स्टेम सेल और प्रोजेनिटर कोशिकाए सारे एआर्डीसी का ५ % से कम हिस्सा बनाती हैं यह ऎसी कोशिकाओं की आवृति से २५०० गुना ज्यादा है जो की अस्थि मज्जा जैसे ऊतकों में पायी जाती हैं ।एडिपोस ऊतक में एआर्डीसी की प्रचुर मात्रा और हमारी ऐसे ऊतकों को बड़ी मात्रा में लाय्पोसक्षण के द्वारा निकाल लेना टिशु कल्चर करने की ज़रूरत को खत्म कर देता है ।इसका मतलब है की हम मरीज़` को उसी की ही कोशिका सही समय में लौटा सकते हैं ।क्योंकि यह एक व्यक्ति के शरीर से निकाले गए उतक को उसी के शरीर में डालने वाली प्रक्रिया है । इसलिए इसमें शरीर का कोशिकाओं को अस्वीकार करने का जोखिम भी खत्म हो जाता है ।
औटोलोग्स अडल्ट स्टेम सेल और रेजेंरेतिव सेल प्रपात युक्त और क्षतिग्रस्त ऊतकों में सुधार की परक्रिया को तेज कर देती हैं ।जबकि हम रोजाना सही तरीकों के बारे में रोजाना कुछ न कुछ जान रहे हैं, तो इसलिए ऐसा माना जाता है की कोशिकाओं की यह विविध जनसंख्या कोशिकाओं के स्थानीय वातावरण को प्रभवित करती है जिसको करने के लिए यह एक कोशिका से दूसरी कोशिका को सन्देश भेजती हैं , प्रतिरक्षा पदार्थो में बदलाव लाती हैं और अन्य कोशिका में बदल जाती हैं ।एआर्डीसी का प्रयोग कई रोगों के लिए किया जा सकता है जिसमे आते हैं परिसंचरण तंत्र , नरम ऊतक रोग , घाव के धीरे भरने की समस्या और इसी तरह कई रोग से लड़ने के लिए प्रयोग किया जा सकता है और यह दुनिया भर में अलग अलग जगह किया भी जा रहा है और इनसे सफल परिणाम भी मिल रहे हैं ।
केन्द्र सरकार से आप किस तरह के बदलाव चाहते हैं ताकि भारत में स्टेम सेल शोध और स्टेम सेल उपचार बढ़ सके ?
केन्द्र सरकार ने इससे सम्बन्धित मूल भूत सेवाए बनाना शुरू कर दिया है ।केन्द्र के निर्देशो के लिए यह ज़रूरी होगा जो की चार साल पहले निकाले गए थे की उनका सुधार किया जाए ताकि स्टेम सेल शोध में हो रही उस समय की प्रगति के बारे में पता चल सके और ये सुधारे गए निर्देशों को क़ानून में बदलना भी ज़रूरी है ।यह थोड़ी पारदर्शिता लाएगा जो की स्वास्थ्य सेवाओं और शोध कर रहे लोगो के लिए ज़रूरी है ।
क्या कोई परेशानिया भी है जिनका की विशेषकर अस्पताल और चिकित्सकों द्वारा सामना किया जाएगा जब वे लोग स्टेम सेल थेरेपी अपनायेगे और उन्हें प्रदान करेंगे ? ये समस्याए का सामना ये लोग कैसे कर सकते हैं ?
सुरक्षित और चिकित्सयी स्तर की कोशिकाए मिल पाना बहुत कठिन हैं ।सबसे बड़ी मुश्किल आती है की उस ऊतक के स्रोत को निकाल पाना जिससे हमे कोशिकाए मिलेंगी ।उदहारण के रूप में अस्थि मज्जा को छेदना जो की प्राय मरीजों के लिए एक दर्दभरी प्रक्रिया होती है और स्वस्थ्य होते वक़्त इसमें संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है ।इसी के साथ डोक्टरो को कोशिकाओं के वैकल्पिक स्रोत ढूँढने में भो तकलीफ आ रही है ।एडिपोस टिशु [वसा] उदहारण के रूप में बहुत ज्यादा मिलता है विशेषकर अगर भारत में देखा जाए तो लाय्पोसक्शन एक बढती हुई शल्य चिकित्सा है और यह अस्थि माज्जा की तुलना में स्टेम कोशिकाओं की बहुत ज्यादा मात्रा प्रदान करता है ।
अगली समस्या आती है ऊअत्क में से विबाझां करने वाली कोशिकाओं को निकालना ।प्राय चिकित्सकों को प्रयोगशाला के ऊपर निर्भर रहना पडता है या तो जो उनकी खुद की होती है या वे इसका उपयोग बहार से कर सकते हैं और यहाँ पर वे ऊतक पर कार्यवाही कर सकते हैं ताकि उनके पसंद के ऊतक मिल सके ।ऎसी प्रयोगशाला बनाना जो की उत्पादन की सुरक्षा के लिए कड़ी तरह से ज़रूरते पूरी करे बहुत ज़रूरी है और यह बहुत मंहगा भी पडता है दोनों ही सुविधा के नज़रिए से और कर्मचारियों के नज़रिए से ।इसी के साथ प्रयोगशाला को कोशिकाओं को विभाजित कराने के लिए हफ्ते लग सकते हैं ताकि उनसे प्रभावशाली खुराक मिल सके ।और ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर समाधान जैसे की सेल्युशन सिस्टम की तरफ बढ़ रहे हैं जो की प्रभावशाली कुराक एक घंटे में ही दे देती है और यह भी एक बंद और जीवाणुरहित वातावरण में वो भी मरीज़ के बिस्तर के पास । रियल टाइम सेल थेरेपी चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही बड़ा कदम है क्योंकि इससे डोक्टरो को कोशिका प्राप्त करने का खर्चा है वो कम हो जाएगा ।
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