मम्मी... आप मेरा सामान किसी को मत दिया करो, मुझे पसंद नहीं है। मम्मी... मेरी चॉकलेट है मैं किसी के साथ शेयर नहीं करूंगा। हॉस्टल में मुझे शेयरिंग रूम नहीं चाहिए, मुझे अकेले रहना ज्यादा पसंद है। अक्सर आपने अपने बच्चों से ऐसा कहते सुना होगा। ऐसी आदतें बच्चों को सामाजिक व्यवहार से दूर रखती हैं। यही कारण होता है कि बड़े होकर बच्चे स्वार्थी और आत्मकेंद्रित बन जाते हैं इसीलिए पेरेंट्स का फर्ज है कि वे परवरिश इस ढंग से करें कि उनकी दिनचर्या में शेयरिंग और केयरिंग की भावना विकसित हो सके। पढ़ते आगे...
शेयरिंग है जरूरी
बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के लिए अपने दोस्तों के साथ या अपने आसपास पड़ोसियों के साथ मिलजुल कर रहना, उनके साथ खाने-पीने की चीजों को बांटना जरूरी है। यह सब बातें देखने में भले ही आम है लेकिन इससे बच्चों में सामाजिक व्यवहार पनपता है। अपनी चीजों के प्रति पज़ेसिव रहना स्वभाविक है लेकिन किसी को अपने खिलौनों से ना खेलने देना या मैं, मेरा, मेरे लिए, इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना सही नहीं है। अगर बचपन से ही बच्चे शेयरिंग का मतलब समझेंगे तो वे न केवल दूसरों की मदद करेंगे बल्कि सामने वाले से भी उम्मीद रख सकते हैं कि वह भी आपकी सहायता करें।
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माता-पिता उठाएं ये कदम
अगर आप अपने बच्चों को मिलजुल कर रहने की आदत सिखाना चाहती है तो इसका सबसे अच्छा उदाहरण आप खुद बन सकते हैं। उनके साथ अपना सामान शेयर करें। यह समस्या ज्यादातर उन परिवारों में देखी जाती है, जहां सिंगल चाइल्ड होता है। उसके अंदर एकाधिकार की भावना विकसित होना स्वभाविक है। ऐसे में मां-बाप को अपने बच्चे की परवरिश के दौरान शेयरिंग का मतलब समझाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर अगर आप अपने बच्चे को चॉकलेट दे रहे हैं तो उससे छोटा सा टुकड़ा खुद के लिए भी मांगे और अगर वह ना दे तो डांटने या चिल्लाने की बजाय उसे समझाएं और बताएं कि अकेले खाना अच्छी बात नहीं।
बच्चों को खेल के दौरान सिखाएं शेयरिंग
बच्चे ऐसे गेम खेलना पसंद कर रहे हैं जिनमें उन्हें किसी साथी या दोस्त की जरूरत नहीं पड़ती। जैसे मोबाइल, लैपटॉप, वीडियो गेम में बच्चे खुद जीतते-हारते रहते हैं। ऐसे में आप बच्चों को शुरू से ही दोस्तों के साथ खेलने के लिए प्रेरित करें। अगर आपका बच्चा इंट्रोवर्ट है तो उसे समझाएं कि दूसरों का साथ होना जरूरी है। उसे ऐसे खेल में जाने के लिए कहे, जिसमें उसे दूसरों के साथ हो।
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कुछ जरूरी बातें
- शेयरिंग सिखाने का मतलब यह नहीं कि आप बच्चों पर अपनी बातों पर थौपें।
- जब नह आपके दिए निर्देशों को समझने लगे तब बच्चे से उम्मीद करें।
- उसकी दिनचर्या में शेयरिंग को जोड़ें।
- अपने बच्चों को रोज ऐसी कहानियां सुनाएं, जिससे उन्हें शेयरिंग का अर्थ समझ में आए।
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