केवल बच्चों की परवरिश में पढ़ाई और जरूरी एक्टिविटीज ही जोड़ना काफी है? केवल उन्हें आगे बढ़ते जाना और दूसरों के सामने कभी ना झुकने की सीख देना ही काफी है? नहीं, अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलत हैं। क्योंकि आजकल के बच्चे मोबाइल, टीवी, अपने दोस्तों के साथ अपने आसपास के माहौल के इतना संपर्क में रहते हैं कि उनके अंदर हिंसक व्यवहार कब जन्म ले लेता है पता ही नहीं चलता। ऐसे में का फर्ज बनता है कि वे उन्हें शालीन व्यवहार भी सिखाएं। पढ़ाई जरूरी है, एक्टिविटी जरूरी है, लेकिन शालीन व्यवहार बच्चों के सर्वांगीण विकास को उत्पन्न करता है। आप जैसा व्यवहार बच्चों के साथ करेंगे बच्चे समाज के साथ भी वैसा ही व्यवहार रखेंगे। उनके व्यक्तित्व को संभालने के लिए न केवल माता-पिता बल्कि टीचर्स, दोस्त और सामाजिक परिवेश का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। पढ़ते हैं आगे...
परिवार का माहौल हो सकारात्मक
आपने देखा होगा कि कुछ माता-पिता अपना सारा गुस्सा अपने बच्चों पर उतार देते हैं। ये ठीक नहीं है। बच्चों को घर में जैसा व्यवहार मिलेगा वे उसे ही समाज के साथ भी बाटेंगे। इसलिए व्यस्त होने के वाबजूद अपने बच्चों के लिए क्वालिटी टाइम जरूर निकालें।
टीचर्स भी समझें
वैसे तो बच्चों के पहले अध्यापक उसके माता पिता, उसका पहला स्कूल उसका घर और उसकी पहली पाठशाला उसका परिवार होता है। लेकिन उसके व्यक्तित्व को संवारने में स्कूल और टीचर्स की भी अहम भूमिका होती है। बच्चों के हिंसक व्यवहार के लिए केवल पेरेंट्स ही नहीं बल्कि शिक्षक भी जिम्मेदार होते हैं। आजकल आपने देखा होगा शिक्षक बच्चों की क्लास में एक दूसरे से तुलना करते हैं, मामूली गलतियों के लिए उन्हें बुरी तरह से अपमानित करते हैं, छोटी-छोटी गलतियों के लिए उन्हें कड़ी सजा देते हैं, बच्चों के व्यक्तित्व में आने वाले बदलाव को नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे में बच्चों को स्कूल में एक अच्छा माहौल नहीं मिल पाता और वे हिंसक व्यवहार के शिकार हो जाते हैं।
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हिंसक व्यवहार को ऐसे करें दूर
- परिवार के लोग बच्चों के सामने आपसी बातचीत में मर्यादा का ध्यान रखें।
- अपने बच्चों को कम उम्र से ही सॉरी, थैंक यू, प्लीज जैसे शब्दों को सीखाएं।
- अगर आपसे अपने बच्चों के सामने कोई भूल हो जाए तो उनके सामने माफी मांगने से संकोच न करें।
- किसी भी सार्वजनिक स्थल पर बच्चों में धैर्यपूर्वक इंतजार करने की आदत डालें।
- अपने बच्चों में शेयरिंग की आदत को विकसित करें।
- स्मार्टफोन, टीवी या दोस्तों के साथ अपने बच्चों को ज्यादा वक्त न बिताने दें।
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