क्या आप जानते हैं नामकरण संस्कार के पीछे छुपा ये साइंटिफिक कारण

नामकरण संस्कार के पीछे ये जरूरी वैज्ञानिक कारण छुपा है। इस कारण को आज ही जान लें। क्योंकि इससे शिशु को समृद्धि प्राप्त होती है।
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क्या आप जानते हैं नामकरण संस्कार के पीछे छुपा ये साइंटिफिक कारण


भारत में ऐसी बहुत सी परंपराएं हैं जिनको लोग निभा तो रहे हैं लेकिन शायद ही इसका कारण जानतो होंगे। जबकि हर एक परंपराओं के पीछे जो मान्यता है उसकी वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है। शिशु के नामकरण भी एक ऐसी प्रक्रिया है जो हिंदू धर्म के अनुसार काफी जरूरी मानी जाती है। हिंदु धर्म में बच्चों का नाम बिना किसी नामकरण संस्कार के रखने की कोई सोच भी नहीं सकता। ऐसे में आपके दिमाग में भी कभी इस संस्कार को लेकर कितने सारे तर्क आए होंगे जिनको आपने दूसरे पल में ही नजरअंदाज कर दिया होगा। आइए आज इस लेख में जानते हैं आपके सारे तर्कों का जवाब।

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हिंदु मान्यता

शिशु का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ होता है उसी के अनुसार हिंदु धर्म में शिशु का नाम रखा जाता है। इस नामकरण संस्कार के दौरान परिवार हर एक सदस्य उपस्थित होता है। इस दौरान एक पंडित भी होता है जो पूरी पूजा करने के बाद नक्षत्र के अनुसार बच्चे का नाम रखता है।


सामान्य तौर पर नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के दसवे दिन ऱखा जाता है। लेकिन इसे कई लोग किसी शुभ मुहूर्त में दसवें दिन के बाद भी रखते हैं। मतलब कि नामकरण संस्कारण शिशु के दसवें दिन या उसके बाद ही सुभ मुहुर्त पर रखा जाता है।


इस संस्कार के से पहले शिशु और उसकी मां के कमरे को अच्छी तरह से धोकर साफ किया जाता है। इनके द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों और ओढ़ने-बिछाने की चीजों को पूरी तरह से शुद्ध किया जाता है। उसके बाद ही नामकरण संस्कार किया जाता है।

धार्मिक कारण


नामकरण संस्कार के महत्व को बताते हुए स्मृति संग्रह में लिखा है-
आयुर्वर्चोभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुदिष्टं मनीषिभ:।।


इसका अर्थ है कि, नामकरण संस्कार से आयु व बुद्धि की वृद्धि होती है। इस संस्कार में बच्चे को शहद चटाया जाता है। फिर सदस्य के सारे लोग जिंदगी में तरक्की करने का आशीर्वाद देते हैँ। साथ ही, घर के सारे सद्सय कामना करते हैं कि बच्चा सूर्य के समान तेजस्वी बने और चांद के समान शांत। फिर शिशु को देव संस्कृति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पित किया जाता है। अंत में सभी लोग शिशु का नया नाम लेकर उसके चिरंजीवी, धार्मिक, स्वस्थ और समृद्ध होने की कामना करते हैं।

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वैज्ञानिक कारण

इस नामकरण संस्कार के पीछे वैज्ञानिकों का मानना है कि शिशु को इस दिन जिस नाम से पुकारा जाता है, उसमें उन गुणों की अनुभूति होने लगती है। वैसे भी हर इंसान में उसके नाम की झलक जरूर दिखती है। नाम की सार्थकता इसी से जाहिर होती है कि घटिया नाम से पुकारा जाना किसी को पसंद नहीं। इसलिए नामकरण संस्कार के दौरान हर सदस्य पूरे सोच-विचार के बाद शिशु का ऐसा नाम रखा जाता है जो उसे जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक बने। मूलरूप से नमकरण के पीछे वैज्ञानिों का यही दृष्टिकोण है। जिससे की लोग नाम के महत्व को समझे और अर्थ पूर्ण नाम रखें।

 

 

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