शहरों में रहने वाले पुरुषों को 50% और महिलाओं को 65% तक डायबिटीज का ज्यादा खतरा, फिलहाल 7.7 करोड़ लोग पीड़ित

एम्स की रिसर्च बताती है कि शहरों में रह रहे लोगों को डायबिटीज का खतरा ज्यादा होता है। जानें ऐसा क्यों है और इसे रोकने के लिए आप क्या कर सकते हैं।
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शहरों में रहने वाले पुरुषों को 50% और महिलाओं को 65% तक डायबिटीज का ज्यादा खतरा, फिलहाल 7.7 करोड़ लोग पीड़ित

डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज को कई अन्य समस्या होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है। हाल ही में डायबिटीज को लेकर एक रिसर्च सामने आई है। इस रिसर्च के मुताबिक, भारतीय शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अपेक्षा डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है। आंकड़ों की मानें तो शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 20 साल से अधिक उम्र के पुरुषों को ये खतरा 55.5% ज्यादा होता है और महिलाओं को 65% ज्यादा होता है। यह रिसर्च अमेरिका, यूके और भारत से एम्स के डॉक्टर्स की संयुक्त टीम द्वारा किया गया है। रिसर्च के अनुसार जो व्यक्ति मोटापे के शिकार हैं, उन्हें ये खतरा अन्य लोगों की तुलना में और भी ज्यादा है। ऐसे में भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल डायबेटोलॉजिया में प्रकाशित इस रिसर्च में यूनाइडेड किंगडम के वैज्ञानिकों द्वारा गणितीय आधार पर आंकलन किया गया है। भारत के महानगरों में लगातार डायबिटीज रोगियों की संख्या बढ़ने के कारण साल 2045 तक करीब 13.4 करोड़ नए लोग डायबिटीज की चपेट में आ सकते हैं। फिलहाल 7.7 करोड़ लोग पीड़ित हैं। 

मोटापे के शिकार लोगों को कम उम्र में सकता है डायबिटीज (Obese people can get diabetes an early age)

मोटापे के शिकार शिकार लोग कम उम्र में ही डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं। रिसर्च के मुताबिक मोटापे के शिकार लोग 20 साल में ही डायबिटीज की चपेट में आ सकते हैं।  रिसर्च में बताया गया है कि 40 से 60 वर्ष के पुरुषों को 47 फीसदी डायबिटीज होने का खतरा है। वहीं, 40 के पार की महिलाओं को 59 फीसदी और 60 के पार महिलाओं को 27 फीसदी मधुमेह का खतरा है। पतले और कम वजन वालों को डायबिटीज होने का खतरा अपेक्षाकृत कम होता है।

डॉ. निखिल टंडन ने कहा कि देश में समस्या यह है कि मधुमेह से पीड़ित 50 फीसद लोगों को ही बीमारी के बारे में जानकारी है। इनमें भी 50 फीसदी लोग ही इलाज कराते हैं और इलाज कराने वालों में से सिर्फ 50 फीसद मरीजों का डायबिटीज कंट्रोल रहता है। इस तरह डायबिटीज से पीड़ित करीब 12.50 फीसद लोग ही डायबिटीज कंट्रोल रख पाते हैं। इस स्थिति में सुधार की जरूरत है और यह कोशिश होनी चाहिए कि स्क्रीनिंग के जरिये 90 फीसदी मधुमेह पीड़ित मरीजों को उनकी बीमारी के बारे में पता चल सके। ताकि कम से कम 70 फीसद मधुमेह पीड़ितों की बीमारी नियंत्रित रह सके।

डायबिटीज के कारण (Causes of Diabetes)

तीन कारणों से डायबिटीज होने का खतरा रहता है। 

1. अनुवांशिक रूप से

2. शारीरिक मेहनत की कमी

3. मोटापा अधिक (खासतौर पर पेट के आसपास की चर्बी वाले लोगों को डायबिटीज होने का खतरा अधिक रहता है।)

इसके अलावा कुछ विशेष परिस्थिति में भी डायबिटीज होने का हो सकती है। जैसे-गर्भावस्था के दौरान शरीर में ब्लड शुगर बढ़ जाता है। हालांकि, यह बाद में खुद-ब-खुद ठीक हो सकता है।

डायबिटीज के बचाव (Prevention of Diabetes)

  • अपने आहार पर विशेष ध्यान दें। ऐसी किसी भी चीज का सेवन न करें, जिसमें शुगर की मात्रा अधिक हो। मैदा, चीनी और प्रोसेस्ड फूड्स से दूरी बनाकर रखें।
  • फ्राई आलू, अधिक तला-भुना, व्हाइट राइस जैसी चीजों का सेवन न करें या कम करें। ये आपके शरीर में ब्लड शुगर को बढ़ा सकते हैं।
  • अगर आपके परिवार में किसी को डायबिटीज है, तो समय-समय पर अपना ब्लड शुगर टेस्ट करवाते रहें।
  • अधिक से अधिक फिजिकल एक्टिविटी पर ध्यान दें। नियमित रूप से सुबह 30 मिनट एक्सरसाइज करें। इसमें आप योग, स्विमिंग, साइक्लिंग और वॉकिंग जैसे एक्सरसाइज को शामिल कर सकते हैं।
  • तनावमुक्त जीवन व्यतीत करें। मानसिक रूप से शांत रहने के लिए मेडिटेशन करें।
 

शहरी और गांव की जीवनशैली में अंतर (Difference Between Urban and Rural Lifestyle)

शहरी और गांव की जीवनशैली में काफी ज्यादा अंतर होता है। खानपान से लेकर फिजिकल एक्टिविटी में भी काफी बदलाव होता है।  शहर में जहां अधिकतर काम डेस्क वर्क होते हैं, तो वहीं गांव में ज्यादातर कार्य फिजिकल वर्क का होता है। उदाहरण के रूप में गांव में खेतों और पशुपालन के जरिए अधिकतर लोगों की जीविका चलती है। वहीं, शहर में अधिकतर लोग ऑफिस में जाकर कार्य करते हैं। खासकर आईटी, राइटिंक्स इत्यादि क्षेत्रों में।

 
खानपान की बात करें, तो गांव में जहां ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। तो वहीं शहरी क्षेत्रों में पैक्ड और फ्रोजन फूड्स का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। गांव में जहां फ्रेश सब्जी और आटा खाने के लिए आसानी से मिल जाता है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता है। इसके अलावा वातावरण का भी सेहत पर बहुत असर पड़ता है। गांव में एक ओर जहां अधिक पेड़-पौधे होने के कारण फ्रेश हवा मिलती है। वहीं शहर में अधिक गाड़ी और कारखानों से निकलने वाले धुएं लोगों के लिए जहर के समान कार्य करते हैं। खानपान और जीवनशैली में इसी तरह के बदलाव के कारण ग्रामीण लोगों की तुलना में शहरी लोग अधिक बीमार पड़ते हैं। 
 
 
 

 

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