
क्या आप भी उन लोगों में शामिल हैं, जो डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाते हैं और वह आपको दवा लेने के लिए एक ही दवा की दुकान पर भेजता है? पूरे बाजार में भटकने के बाद जब आपके पास कोई चारा नहीं रहता तो आपको मजबूरन वहीं दुकान से जाकर दवा खरीदनी पड़ती है। अगर आप भी सोच रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है तो जान लीजिए आपके डॉक्टर ने सेटिंग कर रखी है, जिसका कमीशन उसे मिल रहा है। इसी कड़ी पर प्रहार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फार्मा कंपनियों को डॉक्टर को रिश्वत देने के खिलाफ चेतावनी की एक रिपोर्ट जारी होने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईपीए) और फार्मा उद्योग सक्ते में आ गए हैं।
दरअसल इस विवाद के पीछे का कारण है डॉ. अरुण गदरा और डॉ. अर्चना दिवेती द्वारा सह-लिखित 'प्रोमश्नल प्रेक्टिस ऑफ द फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री एंड इम्पलीमेंटेशन स्टेटस ऑफ रिलेटेड रेग्युलेटरी कोड्स इन इंडिया' नाम का अध्ययन। इस अध्ययन में अनैतिक रूप से डॉक्टरों की प्रेक्टिस और नियमों का सही तरीके से पालन नहीं करने व कैसे मौजूदा प्रणाली को सुधारा जाए, इसके लिए सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं।
यह अध्ययन छह शहरों में किए गए 50 से अधिक गहराई और ज्यादातर गुमनाम साक्षात्कारों पर आधारित है। इसमें प्राथमिक रूप से वे मेडिकल रिप्रेंसेटेटिव शामिल हैं, जो डॉक्टरों को दवाओं का प्रचार करने के क्षेत्र में बहुत बड़े नामी हैं।
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ये रिपोर्ट फार्मा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच सीधी डील को रेखांकित करती है। इस रिपोर्ट में कुछ मामलों का हवाला दिया गया है, जिसमें फार्मा कंपनियां डॉक्टरों द्वारा गाड़ी खरीदने पर किस्तें जमा कराती है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि कुछ डॉक्टरों ने अपने मनोरंजन के लिए लड़कियों की भी मांग रखी थी।
अध्ययन से जो मुख्य बातें सामने निकलकर आई वे ये थी कि फार्मा कंपनियों के प्रमोशनल स्ट्रेटजी में बदलाव आ गया है। ये प्रमोशनल स्ट्रेटजी अब डॉक्टरों का ध्यान वैज्ञानिक जानकारी मुहैया कराने के बजाए व्यापार की ओर केंद्रित कर दिया गया है, फिर चाहे उसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो।
रिपोर्ट के मुताबिक, प्रलोभन, भावनात्मक अपील, उन्हें समझाना, परिवार के सदस्यों के लिए काम करना, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के लिए प्रायोजन, डॉक्टरों से करीबी जैसी रणनीति का उपयोग मौजूदा वक्त में आदर्श बन गया है। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों से प्रैक्टिस में नए तरीके भी इजात किए गए हैं जैसे अमेजन और फ्लिपकार्ट पर ऑनलाइन शॉपिंग के लिए प्रीपेड कार्ड, पेट्रो कार्ड और ई-वाउचर मुहैया कराना।
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प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने इस अध्ययन पर प्रकाशित कई मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है। डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल (डीओपी) ने फार्मा कंपनियों और अन्य हितधारकों के साथ एक बैठक बुलाई, जिसमें चेतावनी दी गई है कि अगर कंपनियां यूनिफ़ॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (UCPMP) के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करती है तो इस तरह की प्रैक्टिस को रोकने के लिए कानून लाया जाएगा।
हालांकि इस अध्ययन पर आईएमए ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। आईएमए ने इस रिपोर्ट के पीछे काम करने वाले एनजीओ साथी (Support for Advocacy and Training to Health) को आरोपों पर सबूत पेश करने को कहा है। रिपोर्ट में डॉक्टरों के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों जैसे मनोरंजन के लिए लड़कियों की मांग और फार्मा कंपनियों द्वारा उन्हें प्रायोजित करने के आरोपों को गंभीरता से लिया है। संस्था ने सरकार से इसकी जांच कराने और दोषी डॉक्टरों व कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। इसके साथ ही आईएमए ने पूरे मेडिकल पेशे को बदनाम न करने की भी मांग की है।
आईएमए ने अपने साथी सदस्यों को फार्मा कंपनियों से किसी प्रकार के उपहार व अन्य चीजें भी नहीं स्वीकार करने की एडवाइजरी जारी की है।
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