
रूममेट के जींस के कारण आपकी सेहत पर असर पड़ सकता है, इस लेख में विस्तार से जानिये आखिर किस तरह इंसान का जींस उसके ऊपर हावी हो जाता है।
रूममेट यानी आपके साथ कमरा शेयर करने वाला आपका साथी है। कभी पढ़ाई के कारण तो कभी नौकरी के कारण आजकल लोगों को एक शहर से दूसरे शहर में रहना पड़ता है। इसके कारण या तो फ्लैट में या फिर पीजी में अपना रूम भी शेयर करना पड़ता है। कई बार रूममेट या तो आपका कलीग होता है या फिर कोई और। यानी उसके बारे में आपके पास अधिक जानकारी होती है। उसकी आदतें और व्यावहार भी लग हो सकते हैं। ऐसे में रूममेट का चुनाव अगर गलत हो जाये तो आपकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इस लेख में जानते हैं किस तरह से रूममेट के कारण आपकी सेहत पर असर पड़ता है।
शोध के अनुसार
इंगलैंड स्थित यूनिवर्सिटी आफ एडिनबर्ग द्वारा किये गये शोध की मानें तो, इंसान की सेहत आसपास के वातावरण से अधिक रूममेट के जींस से प्रभावित होती है। रूममेट के कारण तनाव, मोटापा, इम्यू्निटी का कमजोर होना, आदि समस्या हो सकती है। रूममेट के व्यवहार का सबसे अधिक बुरा असर इंसान की सोने की आदत पर पड़ता है। यानी अगर आपका रूममेट देर रात तक जागता है तो उसके कारण आपको भी जागना पड़ता है। अपने जींस के कारण रूमपेट चाहकर भी अपने व्यतवहार और आदतों को बदल नहीं सकता है। इसलिए बहुत जांच-परखकर रूममेट का चुनाव करें।
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जींस करता है प्रभावित
इंसान के व्यवहार, स्वभाव, पसंद-नापसंद, सोच, आदि सहित लगभग सभी गतिविधियों के लिए उसका जींस जिम्मेदार है। यानी हम जो भी करते हैं उसके लिए हमारा जींस जिम्मेदार है। इसके लिए कई शोध भी हुए और शोध में जुड़वा भाई-बहनों को शामिल किया गया। शोध के दौरान यह देखा गया कि जुड़वा लोगों के व्यवहार, उनकी आदतें और उनका सोचने का तरीका लगभग एक ही तरह का है।
प्रत्येक गतिविधि के लिए दोषी है जीन
यूं तो हमें यही लगता है कि इंसान अपने दिमाग और सोच के अनुसार अपने व्यवहार को बदलता रहता है, जो कि गलत है। क्योंकि इंसान के अंदर जो भी अच्छाई या बुराई होती है उसके लिए उसका जींस जिम्मेदार होता है। अगर हम यह सोचते हैं कि हम जो भी निर्णय सोच-समझकर लेते हैं वह पूरी तरह से सही होता है तो भी आप गलत हैं। क्योंकि हमारे द्वारा लिया जाने वाला आखिरी निर्णय हमारे जेनेटिक कोड में लिखा होता है। 2005 में एक शोध में यह बात सामने आई कि हिंसा के लिए भी जींस ही जिम्मेदार है, हालांकि अभी उसपर शोध चल रहा है।
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जीनोम परियोजना को समझें
इस परियोजना का मकसद इंसान के शरीर में मौजूद पूरे जीनोम के अनुक्रम का पता लगाना है। दरअसल, जीन हमारे जीवन की एक अहम कड़ी हैं और इनसे ही हमारा व्यवहार तय होता है। जीन वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि एक बार मानव जाति के समस्त जीनों की संरचना का पता लग जये, तो व्यक्ति की जीन कुंडली के आधार पर उसके जीवन की सभी घटनाओं की भविष्यवाणी करना मुमकिन हो जायेगा। चूंकि यह आसान नहीं है, क्योंकि इंसान के शरीर में लाखों जीवित कोशिकाएं होती हैं और इनके विशाल समूह को ही जीनोम कहा जाता है।
इंसान के अंदर मौजूद जीनोम संरचना को समझने के लिए ‘जीनोम प्रोजेक्ट’ की शुरूआत की गई जिसका मकसद इंसान के डीएनए के पूरे सीक्वेंस का नक्शा तैयार करना है। इसके जरिये इंसान के व्यवहार के साथ उसकी सेहत और उससे जुड़ी सभी बीमारियों का भी पता चल जायेगा। जींस में विभेद के कारण ही महिलाओं में रोग से लड़ने की क्षमता अधिक होती है और उनको पुरुषों की तुलना में 10 साल बाद कार्डियोवस्कुलर बीमारियां होने का खतरा रहता है।
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