आधुनिक जीवन शैली की वजह से पैदा होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का सबसे ज्यादा असर स्त्रियों की सेहत पर दिखाई दे रहा है। शहरों में रहने वाली ज्यादातर स्त्रियां कामकाजी होती हैं। घर-बाहर की दोहरी जिम्मेदारियों की वजह से वे खुद पर ध्यान नहीं दे पातीं। इसी वजह से युवावस्था में ही उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। पीसीओएस ऐसी ही समस्याओं में से एक है।
क्या है मर्ज
पीसीओएस स्त्रियों की अंत:स्रावी ग्रंथियों से जुडी समस्या है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक भारत में 18 से 30 वर्ष की युवतियों में यह समस्या तेजी से बढ रही है। इस उम्र में उनके शरीर में सेक्स हॉर्मोस सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं और इन्हीं के असंतुलन की वजह से यह समस्या पैदा होती है। मानव शरीर में मौजूद अंत:स्रावी ग्रंथियों से कई तरह के हॉर्मोस का स्राव होता है। स्त्रियों के शरीर में मुख्यत: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन नामक हार्मोन सक्रिय होते हैं। इसके अलावा उनमें आंशिक रूप से मेल हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का भी सिक्रीशन होता है। कई बार स्त्री की अंत:स्रावी ग्रंथियों से इस हॉर्मोन का सिक्रीशन अधिक मात्रा में होने लगता है। इसकी वजह से उसकी ओवरी में एग्स बनने और उनके बाहर निकलने की प्रक्रिया में रुकावट पैदा होती है। ऐसी स्थिति में कुछ एग्स गांठ जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिनके भीतर तरल पदार्थ भरा होता है। इसी अवस्था को पीसीओएस यानी पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम कहा जाता है। इस बीमारी के साथ सबसे बडी दिक्कत यह है कि शुरुआती दौर में इसके लक्षणों को आसानी से पहचान पाना मुश्किल होता है। शादी के बाद जब लडकियां पारिवारिक जीवन की शुरुआत नहीं कर पातीं तब गाइनी चेकअप के बाद उन्हें इस समस्या की जानकारी मिलती है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
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क्या है वजह
आमतौर पर यह देखा गया है कि जिन स्त्रियों का शुगर लेवल और ब्लडप्रेशर ज्यादा होता है, वे आसानी से पीसीओएस की शिकार हो जाती हैं। जिनका कोलेस्ट्रॉल लेवल बढा रहता है, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है। जिन स्त्रियों में पहले से हृदय रोग के लक्षण मौजूद होते हैं, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है। इसके अलावा शारीरिक गतिविधियों और एक्सरसाइज की कमी, अनियमित दिनचर्या, मानसिक तनाव, खानपान में अनियमितता, भोजन में मीठे और वसा युक्त पदार्थो की अधिकता और आनुवंशिकता आदि इसके प्रमुख कारण हैं।
प्रमुख लक्षण
- पीरियड्स में अनियमितता
- ज्यादा ब्लीडिंग
- एक्ने की समस्या
- वजन बढना
- उंगलियों, चेहरे, पेट और पीठ पर अवांछित बालों का उगना
- अनावश्यक थकान
- डिप्रेशन और चिडचिडापन
- अनिद्रा
- जब यह समस्या ज्यादा बढ जाती है तो इन्फर्टिलिटी के रूप में इसका लक्षण सामने आता है।
कैसे करें बचाव
अगर शुरुआत से ही स्वस्थ जीवनशैली अपनाई जाए तो इससे बचाव संभव है। मोटापे का इस समस्या से सीधा संबंध है। इसलिए हमेशा अपना वजन संतुलित रखें। नियमित एक्सरसाइज, लिफ्ट के बजाय सीढियों का इस्तेमाल, छोटी दूरी के लिए पैदल चलना, पौधों को पानी देना, घर की सफाई आदि कार्यो को अपनी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बना कर बढते वजन को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। टीनएज में लडकियां जंक फूड का सेवन अधिक मात्रा में करती हैं, जो आगे चलकर उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होता है। ऐसी समस्या से बचाव के लिए हर मां को अपनी टीनएजर बेटी की सेहत के प्रति जागरूक होना चाहिए। उसके खानपान की आदतों पर शुरुआत से ही ध्यान देना बेहद जरूरी है। अगर उसे चॉकलेट, पेस्ट्री, वेफर्स, पिज्जा-बर्गर, नूडल्स और कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजें ज्यादा पसंद हों तो ऐसी चीजों के लिए सप्ताह का एक दिन निर्धारित करें, ताकि वह इनके सेवन से होने वाले नुकसान से बची रहे।
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जिन स्त्रियों को पहले से हाई ब्लडप्रेशर और टाइप टू डायबिटीज की समस्या हो उन्हें डॉक्टर से नियमित चेकअप कराते हुए दवाओं और संयमित खानपान की मदद से इन दोनों समस्याओं को नियंत्रित रखने की कोशिश करनी चाहिए। जिन स्त्रियों के शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक होता है, उन्हें तली-भुनी चीजों और मिठाइयों से दूर रहना चाहिए। इनके लिए मलाई-रहित दूध और दही का सेवन फायदेमंद साबित होता है। इस समस्या से बचने के लिए नियमित दिनचर्या अपनाएं। हमेशा खुश रहने की कोशिश करें और प्रतिदिन सात-आठ घंटे की नींद लें। एक्सरसाइज में जरा भी लापरवाही न बरतें। चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, मॉर्निग वॉक और एक्सरसाइज के समय में कटौती न करें। अगर आपके पास ज्यादा समय नहीं है तो प्रतिदिन 30 मिनट के ब्रिस्क वॉक से शुरुआत करें। जब दिनचर्या नियमित हो जाए तो किसी फिटनेस ट्रेनर की सलाह पर कार्डियो वैस्कुलर एक्सरसाइज को भी रुटीन में शामिल कर लें। अगर आपको अपनी सेहत में कोई भी असामान्य बदलाव नजर आए तो बिना देर किए गाइनी चेकअप कराएं।
जांच एवं उपचार
पीसीओएस की आंशका होने पर पेल्विक अल्ट्रासाउंड और हॉर्मोन संबंधी जांच से इस समस्या का पता लगाया जाता है। अगर शुरुआती दौर में पहचान कर ली जाए तो दवाओं की मदद से ही यह बीमारी दूर हो जाती है। अगर समस्या ज्यादा गंभीर हो तो लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से इसका उपचार किया जाता है। इस सर्जरी के एक दिन बाद ही स्त्री अपनी सामान्य दिनचर्या में वापस लौट सकती है, लेकिन ऐसी स्थिति में उसे कम से कम एक महीने तक शारीरिक संबंध से दूर रहने की सलाह दी जाती है। इसके बाद वह आसानी से कंसीव कर सकती है। अच्छी सेहत के लिए सर्जरी के बाद डॉक्टर द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए।
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