बदलती जीवनशैली का असर सिर्फ बड़ों पर ही नहीं बल्कि बच्चों पर भी हो रहा है। पहले तनाव को उम्रदराज लोगों से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन अब स्कूल जाने वाले बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। यहां तक कि बच्चों में आत्महत्या की प्रवृति भी तेजी से बढ़ रही है। डिप्रेशन एक सायकोटिक डिसऑर्डर है। इस डिसऑर्डर के कारण दो सप्ताह या उससे ज्यादा दिनों तक उदासी बनी रहती है। बच्चों में डिप्रेशन का प्रमुख कारण या तो पढ़ाई का बोझ होता है या फिर माता-पिता की डांट।
अक्सर मां-बाप भी अपने बच्चों को समझ नहीं पाते और अपनी मर्जी उन पर लादने लगते हैं। जिसके कारण बच्चा डिप्रेशन में आता है। बच्चा अलग-अलग रहने लगता है। ऐसे में बच्चों में डिप्रेशन के लक्षणों को समझना जरूरी है ताकि समय रहते आप उन्हें इससे बचा सकें। बच्चों को डिप्रेशन की अवस्था से बाहर निकालने के लिए पीसीआईटी थैरेपी बहुत कारगर है। आइए जानते हैं क्या है डिप्रेशन का कारण और पीसीआईटी थैरेपी।
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बच्चों पर डिप्रेशन का प्रभाव
डिप्रेशन एक सायकोटिक डिसऑर्डर है। इस डिसऑर्डर के कारण दो सप्ताह या उससे ज्यादा दिनों तक उदासी बनी रहती है। बच्चा किसी काम में दिलचस्पी नहीं लेता। साथ ही उसमें नकारात्मक विचार हमेशा बने रहते हैं। बच्चे की ऊर्जा का स्तर लगातार घटता चला जाता है। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी बिल्कुल अस्त-व्यस्त हो जाती है। ऐसे में बच्चा दूसरों को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण
- खाने-पीने से, पढ़ाई से और खेलों में मन लगना।
- बेवजह खुश या दुखी हो जाना।
- बिना किसी बात के घंटों रोना।
- हमेशा मूड खराब रहना, गुमसुम रहना।
- पारिवारिक सदस्यों या दोस्तों के साथ आवेशपूर्ण व्यवहार करना।
- बैचेन रहना, चिड़चिड़ापन।
- बहुत जल्दी घबरा जाना।
- स्कूल से बच्चे की बहुत अधिक शिकायतें आना।
- मन में आत्महत्या जैसे नकारात्मक विचार आना।
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बच्चों में डिप्रेशन के लिए पीसीआईटी थैरेपी
डिप्रेशन का शिकार बच्चों को इस अवस्था से बाहर लाने में पीसीआईटी थैरेपी बहुत कारगर है। पीसीआईटी यानी पैरेंट चाइल्ड इंटरैक्शन थैरेपी में बच्चों के व्यवहार के अनुसार और उनकी उम्र के अनुसार उनके मनोविज्ञान को समझने की कोशिश की जाती है। इस थैरेपी में मां-बाप और बच्चों के बीच रिश्तों की गहराई और आपकी समझ बढ़ाने के लिए बच्चों से मां-बाप के बारे में कुछ सवाल किए जाते हैं। आमतौर पर इस थैरेपी के बाद बच्चे डिप्रेशन से बाहर आ जाते हैं और खुद को ज्यादा सुरक्षित और खुश महसूस करते हैं। इससे बच्चों के अंदर का चिड़चिड़ापन और गुस्सा भी खत्म होता है और मां-बाप के प्रति उनका प्यार बढ़ता है। इस ट्रीटमेंट या थैरेपी के दौरान अलग-अलग सेशन होते हैं, जिनमें मां-बाप को अपने बच्चे के साथ आना होता है। साइकोलॉजिस्ट या थैरेपिस्ट बच्चों में सकारात्मक ऊर्जा भरते हैं और उन्हें भविष्य के प्रति उत्साहित करते हैं। जिससे बच्चा जल्दी ही डिप्रेशन की अवस्था से बाहर आ जाता है।
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