बच्चों की पर्सनैलिटी निखारना है, तो बचपन से ध्यान रखें ये 4 बातें

बच्चे अपने आस-पास के माहौल से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं और इसी माहौल से उनके व्यक्तित्व यानी पर्सनैलिटी का निर्माण होता है।
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बच्चों की पर्सनैलिटी निखारना है, तो बचपन से ध्यान रखें ये 4 बातें


बच्चे अपने आस-पास के माहौल से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं और इसी माहौल से उनके व्यक्तित्व यानी पर्सनैलिटी का निर्माण होता है। बचपन में आप बच्चों के सामने जिस तरह व्यवहार करते हैं और उनके साथ जिस तरह पेश आते हैं, उन सबका प्रभाव उनके दिमाग पर और उनके व्यक्तित्व पर पड़ता है। इसलिए बचपन में बच्चों पर ध्यान देना बहुत आवश्यक होता है। ध्यान न देने पर स्कूल और आस पास के बच्चों के साथ उनका आत्मविश्वास डगमगाता है और वे पढ़ाई तथा जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं। बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए और उनके व्यक्तित्व को निखारने के लिए आपको बचपन से ही कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

बच्चों को बनाएं खुशमिजाज और हंसमुख

ख़ुशमिज़ाज, हंसमुख और सबको अपनी बातों से लुभाने वाले बच्चे सबसे अच्छे होते हैं। इनके दोस्तों का दायरा काफ़ी बड़ा होता है। इन्हें घूमने-फिरने व पार्टियों का बहुत शौक़ होता है। आमतौर पर ऐसे बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में आगे रहते हैं, चाहे वो पढ़ाई-लिखाई हो या फिर खेल-कूद। व्यक्तित्व के विकास के लिए पढ़ाई के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी बहुत जरूरी है।

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बच्चों के सामने शिष्ट भाषा का प्रयोग

बच्चों से हम हमेशा शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए ही वार्तालाप करें, इससे बच्चों पर अच्‍छा प्रभाव पड़ेगा। हमको हमेशा बच्चों से मित्रवत् व्यवहार करना चाहिए। जैसा हम आचरण करते हैं, बच्चे भी वैसा ही सीखकर अपने व्यवहार में ढालते हैं अत: शालीनता सर्वोपरि है। यह तय है कि जैसी भाषा का हम बार-बार प्रयोग करते हैं, वैसी की वैसी ही भाषा एक विज्ञापन ( मनोविज्ञान) के प्रचार अभियान की तरह बच्चों के मन-मस्तिष्क में घर करती जाती है तथा बच्चा धीरे-धीरे उसे ही सच मानने लग जाता है एवं उसकी वास्तविक प्रतिभा कहीं खो-सी जाती है अत: उसे कुंठित न करें।

ज्यादा डांटने-फटकारने से दब्बू बनते हैं बच्चे

ज्यादा डांटने-फटकारने, मारने-पीटने से बच्चा ढीठ बन जाता है या फिर उसका स्वभाव दब्बू हो जाता है। फिर उस पर किसी बात का असर नहीं होता है, क्योंकि उसे पता रहता है मैं अच्‍छा या बुरा जो भी करूं, बदले में मुझे डांट-फटकार ही मिलेगी, प्यार-दुलार नहीं। ऐसी स्थिति में बाद में आगे चलकर बच्चा विद्रोही बन जाता है। इससे न सिर्फ बच्चे का भविष्य खराब होता है बल्कि मां-बाप की फजीहत भी बढ़ जाती है।

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अलग होता है बच्चों का मनोविज्ञान

बच्चे और बड़ों का मनोविज्ञान अलग-अलग होता है। मनोविज्ञान यानी सोचने-समझने- विचारने का तरीका। अगर बड़े यह सोचें कि बच्चे भी मेरा ही अनुसरण करें व मेरी ही दिखाई राह पर चलें, व मेरे जैसा ही बने तो यह बड़ों का हठाग्रह व दुराग्रह ही कहा जाएगा। चूंकि बड़े समयानुसार अनुभव व परिपक्वता से लबरेज होते हैं अत: बच्चों से भी वही अपेक्षाएं करना नितांत ही गलत कहा जाएगा। स्वयं 'अपने जैसा' बच्चों को बनाने का हठीला प्रयास ना करें। यह एक प्रकार से बच्चों पर अन्याय ही कहा जाएगा।

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