ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर (Obsessive-Compulsive Disorder or OCD) एक ऐसी मनोवैज्ञानिक समस्या है, जिससे ग्रस्त व्यक्ति के मन में बार-बार एक ही ख्याल आता है या वह किसी एक ही क्रिया को लगातार दोहराने को विवश होता है। इस समस्या से कई बॉलीवुड सितारे भी ग्रसित हैं। अभिनेत्री विद्या को घर में बार-बार साफ-सफाई करने की आदत है। ऐसे ही अजय देवगन को बदबू करने वाली उंगलियां नहीं पसंद है। इसीलिए वह हाथ के बजाए चम्मच से खाना खाते हैं। वहीं प्रीति जिंटा के बारे में बताया जाता है कि वह बॉथरूम की सफाई को लेकर काफी ऑब्सेस्ड हैं।
दीपिका पादुकोण भी अपने सामान को व्यवस्थित रखना पसंद है। अभिनेता सैफ अली खान की बात करें तो वह इतने ऑब्सेस्ड हैं कि उन्हें बॉथरूम में घंटों बैठे रहना अच्छा लगता है। सनी लियोनी को बार-बार पैरों को धोने की धुन सवार रहती है। बॉलीवुड के दंबग सलमान खान भी OCD के चलते साबुन इकट्ठे करते हैं। अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा कटलरीज और नैपकिंस इकट्ठे करने की अजीब सी आदत है।
ये तो हुई फिल्मी सितारों की बात। मगर हम कई बार ये समस्या आम लोगों में भी देखते हैं, जिनकी आदत काफी बद से बदतर होती है। वह इसकी गंभीर स्थिति में पहुंच जाते हैं। हालांकि, घर की सफाई, सुरक्षा, सेहत आदि को लेकर थोड़ी सजगता स्वाभाविक है लेकिन जब इस आदत की वजह से किसी की दिनचर्या, सेहत और रिश्ते प्रभावित होने लगें तो उसे और उसके परिवार वालों को सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि यह आब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर नामक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या का लक्षण हो सकता है। क्यों होता है ऐसा, क्या हैं इसके लक्षण और उपचार, बता रही हैं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जयंती दत्ता।
क्यों होता है ऐसा
मनोविज्ञान में इस बीमारी को साइको न्यूरॉटिक डिसॉर्डर की श्रेणी में रखा जाता है। इससे ग्रस्त लोग बिलकुल सामान्य दिखते हैं और दूसरों के साथ अपनी परेशानी के बारे में बातचीत भी कर सकते हैं। शुरुआती दौर में मरीज़ या उसके परिवार के सदस्य इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति दरवाज़े पर ताला बंद करके उसे आठ-दस बार खींच कर चेक करता है तो यह ओसीडी का लक्षण हो सकता है पर इस समस्या के ग्रस्त लोग अपने तर्क से इस आदत को सही साबित करने की कोशिश करते हैं।
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क्या है वजह
हालांकि इसके लिए केवल किसी एक कारण को जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। फिर भी घर के माहौल से इस समस्या का बहुत करीबी संबंध है। जिन बच्चों की परवरिश बहुत स$ख्ती भरे माहौल में होती है, उनके मन में शुरू से ही निराशा, असुरक्षा, भय और असंतुष्टि जैसी नकारात्मक भावनाएं घर कर जाती हैं। इस दृष्टि से चिंता और तनाव भी इसकी प्रमुख वजहें हैं। अगर टीनएज में पेरेंट्स के साथ कम्युनिकेशन गैप हो तो इससे बच्चों के मन में कुंठा की भावना पैदा होने लगती है, जिसकी वजह से भविष्य में उसे ओसीडी की समस्या हो सकती है।
प्रमुख लक्षण
लोगों में इसके लक्षण अलग-अलग ढंग से दिखाई देते हैं क्योंकि हर इंसान का अपना अलग पर्सनैलिटी ट्रेट होता है। मसलन, अगर कोई व्यक्ति ज्य़ादा सफाई पसंद है तो वह बार-बार हाथ धोने या फर्श पर पोंछा लगाने जैसे कार्यों में व्यस्त रहता है। ऐसे लोगों को अगर कोई समझाने की कोशिश करता है तो वे बुरी तरह नाराज़ हो जाते हैं। इसी तरह अगर कोई स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है तो वह अपनी रखी चीज़ों को बार-बार संभालता रहता है।
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क्या है नुकसान
शुरुआती दौर में परिवार के सदस्य इसे सनक या सफाई की आदत कहकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इससे कुछ समय बाद यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। इससे पीडि़त व्यक्ति के लिए अपनी ऑब्सेसिव सोच या क्रियाओं को नियंत्रित करना असंभव होता है। अगर मरीज़ को ऐसा करने से रोका जाता है तो उसे बहुत बेचैनी महसूस होती है और कई बार उसका व्यवहार हिंसक हो जाता है। नतीजतन इस समस्या से ग्रस्त लोगों के निजी और प्रोफेशनल संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं। उनकी पूरी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है, उसे जिस किसी कार्य का ऑब्सेशन हो जाता है, वह उसके सिवा कोई दूसरी बात सोच भी नहीं पाता। इससे अनिद्रा, भोजन में अरुचि, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द और थकान जैसी समस्याएं भी उसे परेशान करने लगती हैं।
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क्या है उपचार
इसके उपचार में साइको थेरेपी के साथ पीडि़त व्यक्ति को कुछ दवाएं भी दी जाती हैं। जिस माहौल में इस समस्या के लक्षण प्रकट होते हैं, कई बार मरीज़ को वहां से दूर करने के लिए कुछ दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती कराने की भी ज़रूरत पड़ती है। इसका उपचार थोड़ा लंबा होता है और इसमें महीनों लग सकते हैं। ट्रीटमेंट कंप्लीट होने के बाद अगर मरीज़ में दोबारा कोई लक्षण नज़र आए तो बिना देर किए विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। मरीज़ के व्यवहार की वजह से परिवार के सदस्यों को बहुत परेशानी होती है। ऐसे में उनकी यह जि़म्मेदारी बनती है कि वे धैर्य बनाए रखें और उसे पूरा सहयोग दें।
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