सबसे पहले त्वचा को किसी माइल्ड क्लींजर से साफ करें और मॉस्चराइज़र लगाएं। इससे त्वचा हाइड्रेटेड और कोमल बनी रहेगी। हफ्ते में एक बार स्क्रब करने से डेड सेल्स निकल जाती हैं और त्वचा को कोमल निखार मिलता है। घर पर स्क्रब बनाना बेहद आसान है, जो त्वचा के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। स्क्रब बनाने के लिए ब्राउन शुगर, बादाम का तेल और समुद्री नमक का इस्तेमाल करें। कम समय में बेहतरीन रिजल्ट के लिए माइक्रोडर्मेब्रेजन और केमिकल पील आदि जैसी प्रक्रियाओं की मदद ली जा सकती है।
शेविंग करते वक्त ध्यान रखें या बातें
जिस जगह पर शेविंग करना है, पहले उसे गीला करें, जिससे वहां के बाल नरम हो जाएं। इसके बाद वहां शेविंग जेल या फिर क्लीनजिंग मिल्क लगाएं। अब नई ब्लेड की मदद से बालों की ग्रोथ की तरफ से शेव करें। शेविंग के दौरान ब्लेड को जल्दी-जल्दी धोते रहें। डिस्पोज़ेबल रेजर को 5-7 बार के इस्तेमाल के बाद फैंक दें।
शरीर की त्वचा के लिए स्क्रब भी जरूरी
स्क्रबिंग डेड स्किन की ऊपरी परत को हटाने में मदद करता है। लेकिन यदि इसे अच्छे से न किया जाए तो यह त्वचा को फायदा की बजाय नुकसान पहुंचा सकता है। स्क्रबिंग का सही तरीका जानने से पहले अपना स्किन टाइप समझना जरूरी है। मेकेनिकल एक्सफोलिएशन में ब्रश, लूफा या स्क्रब का इस्तेमाल किया जाता है। केमिकल एक्सफोलिएशन में अल्फा और बीटा हाइड्रोक्सी एसिड का उपयोग किया जाता है।
जल्दी-जल्दी या देर तक स्क्रब न करें क्योंकि इससे त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है। अच्छे परिणामों के लिए स्क्रब के साथ थोड़ा सा मॉस्चराइज़र भी मिलाएं। इससे आपकी त्वचा स्वस्थ और कोमल नज़र आएगी।
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एसिड ट्रीटमेंट का प्रयोग
त्वचा के लिए केमिकल पील की सुविधा आपको क्लिनिक और घर दोनों जगह मिल जाएगी। ये केमिकल डेड स्किन को खा जाते हैं, जिससे अंदर की स्वस्थ और कोमल त्वचा बाहर नज़र आने लगती है। इस प्रक्रिया में पील लगाया जाता है। कुछ देर इंतज़ार करने के बाद पील को धो दिया जाता है। पील का चुनाव त्वचा के प्रकार के अनुसार किया जाता है। यह ट्रीटमेंट घर या क्लिनिक, कहीं भी किया जा सकता है। सैलिसिलिक एसिड, लैक्टिक एसिड, ट्राइक्लोरोएसिटिक एसिड और ग्लाइकोलिक एसिड आदि कुछ प्रकार के पील उपलब्ध हैं।
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ड्राई ब्रशिंग किस प्रकार सहायक है?
ड्राई ब्रशिंग एक आयुर्वेदिक थेरेपी है, जो डेड स्किन को हटाने, रक्त प्रवाह व लिंफेटिक ड्रेनेज को बेहतर करने और सेल्युलाइट को कम करने के लिए दी जाती है। इस तकनीक में वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव है इसलिए सेंसिटिव और ड्राई त्वचा पर इसका इस्तेमाल पूरी सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। इसके साथ एटोपिक डर्मेटाइटिस या सोरायसिस जैसी स्थिति से ग्रस्त मरीजों में भी इस बात का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
केराटोसिस पिलारिस के बारे में जानें
केपी या ‘चिकन स्किन’ एक प्रकार की त्वचा की स्थिति है। इसमें हाथों के ऊपरी भाग, जाघों, नितंबों और गालों पर छोटे-छोटे और हल्के उभरे चकत्ते पड़ जाते हैं। हालांकि, यह नुकसानदेह नहीं होता है लेकिन यह परिवार में किसी के होने के कारण नई पीढ़ी को भी हो सकती है। यह स्थिति एक्ज़ीमा के एक प्रकार यानी कि एटोपिक डर्मेटाइटिस से संबंधित है। इस समस्या का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। लेकिन यूरिया, लैक्टिक एसिड और रेटिनल क्रीमों और प्रक्रियाओं जैसे कि केमिकल पील या माइक्रोडर्माब्रेज़न की मदद से त्वचा को बेहतर रूप दिया जा सकता है।
(ये लेख मैक्स स्पेशलिटी सेंटर की सलाहकार, डर्मेटोलॉजिस्ट वीनू जिंदल से बातचीत पर आधारित है।)
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