प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती मां को हमेशा ही दो लोगों के हिसाब से खाना खाने को कहा जाता है। ऐसे ही जब बात जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाले मां की होती है तो उन्हें थोड़ा और खाने को कहा जाता है। वहीं जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली मांओं के लिए ज्यादा खाना खतरनाक साबित हो सकता है। एक अध्ययन की मानें तो जुड़वा गर्भधारण के दौरान बहुत कम वजन या बहुत अधिक वजन, डिलीवरी के वत्त मां और शिशु के मृत्यु कारणों से जुड़ा हुआ है। प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत कम वजन होने से बच्चा वक्त से पहले पैदा हो सकता है और बहुत अधिक वजन होने के वजनदार बच्चों को सिजेरियन ऑपरेशन के द्वारा मां के पेट से निकाला जाता है। जुड़वा बच्चे को पैदा करते वक्त मां का कितना वजह होना चाहिए, इस विषय पर 'ऑनली माय हेल्थ' ने रामपुर के जिला अस्पताल में स्त्री रोग और प्रसूति विभाग में कार्यरत डॉ. सयदा शबाना से बातचीत की। इस बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला के वजन का एक नियम है जैसे-
0-3 माह के गर्भ के दौरान- मां को 200 से 300 केलोरी लेनी चाहिए।
4-6 माह के गर्भ के दौरान- मां को 450-500 केलोरी लेनी चाहिए।
07-09 माह के गर्भ के दौरान- मां को 800-1000 केलोरी ही लेनी चाहिए।
डॉ. सयदा शबाना के अनुसार पेट में बच्चा एक हो या दो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मां के द्वारा लिए गए केलोरी जुड़वा बच्चों में बंट जाता है। उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि ज्यादातर मां इस दौरान ज्यादा ड्राई-फ्रूट्स और घी या चिकनाई वाली चीजें खाने लगती हैं, जो कि उनके लिए सही नहीं होता। इससे उनका वजन जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है, जो दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। डॉ. सयदा की मानें तो गर्भवती महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा फल, सब्जियां और दूध-दही का सेवन करना चाहिए। उनके अनुसार जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली मांओं को अपने वजन खास ख्याल रखना चाहिए ताकि वजन न ज्यादा कम हो न ज्यादा बढ़े। डॉ. सायदा की मानें तो जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को ज्यादा वजन बढ़ जाने से मधुमेह, प्री-एक्लेम्पसिया और सिजेरियन प्रसव जैसी परेशानियों को सामना करना पड़ता है।
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ऐसा ही कुछ पेनसिल्वेनिया के 'पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय' के द्वारा किए गए इस शोध में पता चला है कि जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को मधुमेह, प्री-एक्लेम्पसिया और सिजेरियन प्रसव जैसी परेशानियां होती हैं। रिसर्च की मानें तो जुड़वां गर्भावस्था में खराब परिणामों का जोखिम अधिक होता है। जुड़वा बच्चों की प्रेगनेंसी से कई तरह के जोखिम और जटिलताएं उत्पन्न होती हैं, जो कभी कभी माँ और होने वाले जुड़वा बच्चों दोनों के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है। आइए हम आपको बताते हैं इन जटिलताओं के बारे में।
- गर्भपात (miscarriage)- कभी-कभार जुड़वा गर्भावस्था में बच्चे, 9 महीने के पूरे होने तक जीवित नहीं रह पाते हैं।
- वैनिशिंग ट्विन सिंड्रोम (vanishing twin syndrome)- यह एक सिंड्रोम है, जिसके कारण जुड़वां गर्भावस्था में दो शिशुओं में से एक ही जीवित बच पाता है।
- प्री-एक्लेमप्सिया (Pre-eclampsia)- प्री-एक्लेमप्सिया की वजह से मां के ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव आता रहता है, जिसके कारण गर्भ नाल यानी कि प्लेसेंटा के टूटने का डर होता है।
- गर्भाशय के अंदर ब्लीडिंग (Postpartum haemorrhage)- जुड़वा बच्चों की गर्भावस्था में नाल और गर्भाशय के विशाल आकार के कारण, माँ के गर्भाशय के अंदर ब्लीडिंग होने की संभावना अधिक होती है जिससे जान का जोखिम भी हो सकता है।
- एनीमिया (Anemia)- जुड़वा बच्चों के गर्भधारण में शिशु की पोषण संबंधी परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है, जिससे मां को एनीमिया होने का खतरा होता है।
- सी-सेक्शन (C-section)- मल्टीप्ल प्रेगनेंसी में सी-सेक्शन डिलीवरी होने की संभावना बहुत अधिक होती है। वहूीं डिलीवरी में थोड़ा सी भी गड़बड़ी मां और शिशु दोनों की जान ले सकती है।
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मल्टीपल प्रेग्नेंसी में रखी जाने वाली सावधानियां-
- उच्च पोषक तत्वों का सेवन करते रहें।
- शिशु और मां के स्वास्थ्य का निरंतर जांच करवाते रहें।
- जुड़वां गर्भधारण वाली महिलाओं को पर्याप्त बेड रेस्ट करना चाहिए।
- सुरक्षित प्रसव के लिए दवाओं और कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स जैसे अन्य हार्मोनों के रूप में पोषक तत्वों की खुराक लेते रहें।
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