गलत तरीके से उपचार के स्वास्थ्य संबंधी गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। परिणाम पुरानी बीमारियों में चिंताजनक हैं, जहां व्यक्ति को आजीवन उपचार की जरूरत पड़ सकती है। हाल ही में शोधकर्ताओं ने गलत डायबिटीज पर एक सवाल उठाया है। यह तब होता है, जब किसी व्यक्ति को डायबिटीज की स्थिति के लिए गलत तरीके से इलाज दिया जाता है। उदाहरण के लिए, जिन्हें टाइप -2 डायबिटीज है लेकिन उन्हें टाइप -1 का इलाज दिया जा रहा है। यह एक छोटी सी गलती लग सकता है लेकिन यह एक व्यक्ति के लिए जानलेवा हो सकता है।
डायबिटीज दो प्रकार के होते हैं- टाइप -1 और टाइप -2। टाइप -1 इंसुलिन प्रतिरोध की कमी के कारण होता है, जबकि टाइप -2 डायबिटीज इंसुलिन पर प्रतिक्रिया करने में शरीर की अक्षमता के कारण होता है। ये आमतौर पर उम्र, स्वास्थ्य स्थिति और बीएमआई के आधार पर विभिन्न सेटों में होता है। परंपरागत रूप से, टाइप -1 डायबिटीज प्रारंभिक वर्षों में होती है (जैसे बच्चों को कहें) और टाइप -2 डायबिटीज बाद के वर्षों (45 वर्ष और इससे अधिक की उम्र) में होती है। लेकिन यह पैटर्न अब उलटा होता दिख रहा है क्योंकि बहुत से बच्चों को टाइप -2 और वयस्कों में टाइप -1 का पता चल रहा है। यह वास्तव में खतरनाक है और इलाज के लिए भ्रामक है।
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क्या कहता है यह अध्ययन?
इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल एंड क्लिनिकल साइंस, यूनिवर्सिटी ऑफ द एक्सटर मेडिकल स्कूल, यूके के एक शोध दल ने एक अध्ययन किया। जिसमें उन्होंने 500 से अधिक लोगों के अनुभवों को दर्ज किया और पाया कि उनमें से लगभग 40% ने गलत इलाज प्राप्त किया। उनमें डायबिटीज का गलत इलाज किया गया था और उन्हें उस आधार पर उपचार दिया गया। गलत तरीके से डायबिटीज कर उपचार या निदान करना किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। ऐसे में डायबिटीज की स्थिति को नियंत्रित करने के बजाय, इससे उनमें डायबिटिक केटोएसिडोसिस हो सकता है।
डायबिटीज के गलत इलाज से हो सकता है डायबिटिक केटोएसिडोसिस
इस शोध का नेतृत्व करने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल एंड क्लिनिकल साइंस के डॉ. रिचर्ड ओराम ने कहा, “सही तरीके से डायबिटीज टाइप- 2 या डायबिटीज टाइप- 1 का इलाज करना डॉक्टरों के लिए एक कठिन चुनौती है, क्योंकि अब हम जानते हैं कि डायबिटीज टाइप- 2 या डायबिटीज टाइप- 1 किसी भी उम्र में हो सकती है। यह कार्य भारत में और भी कठिन है, क्योंकि टाइप 2 मधुमेह के अधिक मामले कम बीएमआई वाले लोगों में होते हैं। ” शोध बताता है कि यही कारण है कि गलत तरीके से डायबिटीज का इलाज से डायबिटिक केटोएसिडोसिस हो सकता है।
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जैसे-जैसे डायबिटीज जोखिम कारक उलट गए हैं, वैसे ही डायबिटीज के सही प्रकार से इलाज करना डॉक्टरों के लिए मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि गलत निदान डायबिटीज की स्थिति को बदतर और खतरे को अधिक बढ़ाता है। टीम अब दोनों स्थितियों में बेहतर अंतर करने और रोगियों को सही उपचार प्राप्त करने की अनुमति देने के लिए एक आनुवंशिक जोखिम के स्कोर को विकसित करने के लिए देख रही है।
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