पुरुष खुद को झूठ बोलने के मामले में महिलाओं से दोगुना अच्छा मानते हैं और ऐसा आगे भी जारी रखना पसंद करते हैं। शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया है। जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि झूठ बोलने में महारथ हासिल करने वाले लोग आंखों में आंखे डालकर झूठ बोलते हैं बजाए टेक्सट मैसेज और सोशल मीडिया। अध्ययन के मुताबिक, झूठ बोलने में माहिर लोग मैसेजों और सोशल मीडिया पर सबसे कम झूठ बोलते हैं।
शोधकर्ताओं ने ढूंढा संबंध
ब्रिटेन की पोर्टसमाउथ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और अध्ययन की शोधकर्ता ब्रियाना वर्जिन का कहना है, '' हमने झूठ बोलने की विशेषज्ञता और लिंग के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध खोज निकाला है। पुरुष झूठ बोलने के मामले में खुद को महिलाओं से दोगुना विशेषज्ञ मानते हैं और झूठ बोलना पसंद करते हैं।''
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पहले भी हो चुके हैं शोध
पिछले कई शोध में खुलासा हो चुका है कि ज्यादातर लोग दिन में एक या दो झूठ बोलते हैं लेकिन ये बिल्कुल सटीक नहीं है। बहुत से लोग रोजाना झूठ नहीं बोलते लेकिन कुछ लोग चालाकी से झूठ बोलते हैं और उनके बड़े-बड़े झूठ पकड़े भी जाते हैं। ब्रियाना ने कहा, ''हमारे अध्ययन से जो चीज सामने निकलकर आई उससे साफ हुआ कि करीब 40 फीसदी झूठ बहुत कम संख्या वाले धोखेबाजों द्वारा बोले गए। और ये लोग अपने करीबियों के साथ बड़ी चालाकी से झूठ बोलते हैं।''
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194 लोगों पर किया गया अध्ययन
अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं की टीम ने 194 लोगों का सर्वे किया, जिसमें से आधे पुरुष और आधी महिलाएं शामिल थी। अध्ययन में शामिल व्यक्तियों की औसत उम्र 39 वर्ष थी। इसमें उनकी झूठ बोलने की आदत, वह कितनी बार झूठ बोलते हैं और किस-किस से बोलते हैं, इसकी जानकारी जुटाई गई।
ऐसे किया गया विश्लेषण
अध्ययन के मुताबिक, इन लोगों से कुछ सवाल पूछे गए जैसे वे दूसरों से झूठ बोलने में कितने अच्छे हैं, पिछले 24 घंटे में उन्होंने कितना झूठ बोला है, उन्होंने किस प्रकार का झूठ बोला है, किससे बोला है, क्या उन्होंने आंखों में आंखे डालकर झूठ बोला है।
सच जैसा बोलते हैं झूठ
ब्रियाना का कहना है, ''हम उन लोगों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते थे कि जो झूठ बोलने में काफी अच्छे हैं। इसके साथ ही हम ये समझना चाहते थे कि वे ऐसा कैसे करते हैं और किसके साथ करते हैं।'' उन्होंने कहा कि हमने अध्ययन में झूठ बोलने वालों की मुख्य रणनीतियों में से एक का पता चला कि वे विश्वासनीय लगने वाला झूठ बोलते हैं, जो सच के काफी करीब होता है और उसमें ज्यादा जानकारी नहीं होती। इतना ही नहीं जब किसी को लगने लगता है कि वह झूठ बोल रहे हैं तो वे और झूठ बोलने लगते हैं।
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जरूरी जानकारी छिपा लेते हैं झूठे
अध्ययन के मुताबिक, जिन लोगों ने स्वीकार किया वे झूठ बोलते हैं फिर चाहे वह चाहे विशेषज्ञ हों या कभी-कभार झूठ बोलने वाले उन सभी के बीच सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति थी कि वे कुछ खास जानकारियों को छिपा लेते थे। लेकिन जो झूठ बोलने में विशेषज्ञ थे उनमें सच के साथ एक विश्वासयोग्य कहानी बुनने की क्षमता थी, जिसके कारण उन्हें पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है।
बॉस से झूठ नहीं बोलते लोग
शोधकर्ताओं ने कहा, ''इसके विपरित जो ये सोचते हैं कि वे झूठ बोलने में अच्छे नहीं है लेकिन जब वह झूठ बोलते हैं तो उनकी जुबां डगमगाती है।'' अध्ययन के मुताबिक, अधिकतर लोग आंखों में आंखे डाल कर झूठ बोलना पसंद करते हैं बजाए संदेश, फोन कॉल, ई-मेल और सोशल मीडिया के। अधिकतर झूठे लोग अक्सर अपने परिवार, दोस्तों या सहभगियों से झूठ बोलते हैं। लोग अपने बॉस या फिर अधिकारियों से कम झूठ बोलते हैं।
सच और झूठ के बीच अंतर मुश्किल
ब्रियाना ने कहा, ''चालाकी से झूठ बोलने वाले लोग अच्छे शब्दों से खेलना जानते हैं, सच के आस-पास झूठ बुनते हैं इसलिए सच और झूठ के बीच के अंतर का पता लगा पाना मुश्किल हो जाता है। इसके साथ ही वह आसानी से बातों को छिपा लेते हैं और उनकी कहानियों पर किसी को संदेह नहीं होता।''
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