आज की व्यस्त दुनिया में महिलाओं के लिए उनके स्वास्थ्य से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करना करना पड़ता है। उनके लिए काम और स्वास्थ्य दोनों को संतुलित करना बहुत मुश्किल हो जाता है। 30 या 40 वर्ष की महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़ी समस्या और हार्मोनल संतुलन का बिगड़ने लगना एक चिंता का विषय होता है। इसी तरह पुरूषों के लिए पर्यावरण संबंधी खतरों के जोखिम और अत्यधिक तनाव जैसी अन्य चुनौतियाँ होती हैं। कई बार दोनों की इन्हीं चुनौतियों को कारण वह एक स्वस्थ संतान को जन्म नहीं दे पाते। बच्चों के लिए कई बार लोग आईवीएफ और सरोगेसी की मदद लेते हैं। पर आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि आप आयुर्वेद की मदद से भी संतान प्राप्ति कर सकते हैं। दरअसल आयुर्वेद और इसके उपचारों को इन खतरों को खत्म करने का एक अच्छा विकल्प माना जाता है। इसकी मदद से आप एक स्वस्थ संतान पा सकते हैं। आयुर्वेद में "भिजाशुद्धि" कहा जाता है।
दरअसल पुरुषों और महिलाओं दोनों में रिप्रोडक्टिव टीश्यू, शरीर के अन्य टीश्यू के स्वास्थ्य पर निर्भर है। आयुर्वेद में शरीर के यह टीश्यू को प्रजनन और स्वस्थ बच्चे के लिए गर्भाधान करने के लिए बेहद जरूरी होता है। स्वस्थ शुक्राणु और अंडे के उत्पादन में पहला कदम पंचक सुनिश्चित करना है। यह एक गहरी आंतरिक सफाई के माध्यम से शरीर को डिटोक्स कर देता है।
इसमें मुख्य रूप से दो चरण शामिल होता है-
चरण 1: पूर्वाकर्मा (प्री-डिटॉक्स उपाय)
इसमें आंतरिक और बाहरी गंदगी को पसीने के रूप में निकालना शामिल है। इसे ऑलिटियन भी कहते हैं। इस ऑलिटियन की अवधि के दौरान, औषधीय घी को खाली पेट तीन से पांच दिनों के लिए लिया जाता है। ये शरीर के आंतरिक गंदगी को साफ करता है। इसके अलावा आयुर्वेद में शरीर को डिटोक्स करने के लिए ऑलिटियन (स्नेहापना) के बाद, भाप द्वारा शरीर की मालिश तीन दिनों तक की जाती है।
चरण 2: मुख्य कर्म (विरेचन)
इस प्रोसेस के दौरान औषधीय जड़ी बूटियों को निगला जाता है और कुछ घंटों के बाद आपको बार बार शौच के लिए जाना पड़ता है। इस तरह यह प्रोसेस चार से छह बार की जाती है। ऐसा करके गर्भाषय की सफाई होती है।इसके अलावा मासिक धर्म (मासिक धर्म के छठे दिन के बाद) के बाद औषधीय घी या तेल गर्भाशय गुहा की सफाई की जाती है। पंचकर्म प्रक्रियाओं के अलावा, पुरुष और महिला दोनों अच्छी जीवन शैली की योजनाओं का पालन कर सकते हैं जैसे कि योग और प्राणायाम का अभ्यास, आहार, आदि। तनाव कम प्रजनन क्षमता के प्रमुख कारण हैं, योग का अभ्यास करने से मन और शरीर दोनों को आराम मिलता है। इसके अलावा बच्चे को प्लान करने से कम से कम तीन महीने पहले दोनों भागीदारों द्वारा अच्छा आहार लेना चाहिए।
इसे भी पढ़ें : किडनी व लिवर को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार हैं ये 11 आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान आप अपना कैसे ख्याल रखते हैं, यह भी बहुत जरूरी है। आइए हम आपको बताते हैं आयुर्वेद में कुछ टिप्स, जिसका पालन करके आप अपना और अपने बच्चे का ख्याल रख सकते हैं।
1. अपने आहार में फैट और तेल शामिल करें
हमें हमेशा अपने आहार में स्वस्थ फैट को शामिल करना चाहिए, खासकर गर्भावस्था के दौरान। यह महत्वपूर्ण है कि एक गर्भवती महिला पर्याप्त फैट और तेल का सेवन करें। इससे न केवल गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त वजन बढ़ाने में मदद मिलती है बल्कि यह बच्चे के मस्तिष्क को विकसित करने में भी मदद करता है। इसके लिए गर्भवती मां दूध, नारियल तेल, जैतून का तेल, नट (बादाम, अखरोट, काजू, हेज़लनट्स), बीज (सूरजमुखी, कद्दू) और एवोकैडो आदि खा सकती है। इसके अलावा सोने से पहले हल्दी वाले दूध को गर्म करके रोज पीएं।
2. सात्विक भोजन करें
आयुर्वेद में, जब कोई भोजन सात्विक होता है तो इसका मतलब है कि यह शुद्ध और ताज़ा है। एक गर्भवती माँ को शुद्ध और आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने की आवश्यकता होती है, जो उसके और उसके बच्चे के लिए लाभदायक हो। सात्विक आहार से मन में पवित्रता और स्पष्टता के गुण को भी बढ़ाते हैं। डेयरी प्रोडक्ट्स, नट्स, साबुत अनाज, बीन्स, फल, और ताजा पकी सब्जियां जैसे सात्विक और ग्राउंडिंग खाद्य पदार्थ आपको और आपके बच्चे दोनों के लिए के लाभदायक होते हैं।
इसे भी पढ़ें : हाई ब्लड प्रेशर, अनिद्रा और पेट के रोगों में बहुत फायदेमंद है सर्पगंधा का पौधा, जानें प्रयोग
तेल मालिश के माध्यम से शरीर और मन का पोषण
गर्भावस्था में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद का पोषण करें। जैसा कि पारंपरिक चिकित्सा हमें सिखाती है कि गर्भावस्था के दौरान बच्चा भी स्वाद और स्पर्श और महसूस करते हैं, अनुभव करता है। इससे अपने दिमाग, शरीर और आत्मा के साथ-साथ शिशु के पोषण के लिए आयुर्वेदिक तेलों को गर्म और ज़मीनी बनाने के लिए रोज़ाना मालिश करें। संस्कृत में, स्नेहा शब्द का अर्थ है "तेल" और "प्रेम''। "तेल मालिश" के लिए संस्कृत आयुर्वेदिक अनुष्ठान है। शरीर पर तेल लगाने से आराम मिलता है और स्थिरता और गर्मी प्रदान करता है। यह अनुष्ठान तनाव और थकान को वाष्पित करता है।
Source: Naoayurveda.com And Artofliving.org
Read more articles on Ayurveda in Hindi
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version