पेट की खराबी से होता है कब्‍ज, बवासीर और लीवर की बीमारी, आयुर्वेदिक तरीकों से करें उपचार

आयुर्वेद की मने तो पेट की अपच सभी तरह की बीमारियो को निमंत्रण देती है और शरीर में बहुत सी समस्याओं का कारण भी बनती है। जाहिर है कि आज की आधुनिक जीवनशैली में पाचन क्रिया प्रभावित होना आम समस्या बन गयी है। जिसका नतीजा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के रूप में हमारे सामने आता है। 
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पेट की खराबी से होता है कब्‍ज, बवासीर और लीवर की बीमारी, आयुर्वेदिक तरीकों से करें उपचार


दो हजार साल पहले यूनानी चिकित्सक हिपोके्रट्स ने कहा था, समस्त बीमारियों का जन्म पेट खराब होने से ही होता है। हिपोक्रेट्स की कही बात आज अधिक प्रासंगिक दिखाई देती है। आयुर्वेद की मने तो पेट की अपच सभी तरह की बीमारियो को निमंत्रण देती है और शरीर में बहुत सी समस्याओं का कारण भी बनती है। जाहिर है कि आज की आधुनिक जीवनशैली में पाचन क्रिया प्रभावित होना आम समस्या बन गयी है। जिसका नतीजा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के रूप में हमारे सामने आता है। 

 

एक तंदुरस्ती हजार नियामत है, पहला सुख निरोगी काया, इन कहावतों का अर्थ सही मायने में हमें तब समझ में आता है जब हम खुद बीमार पड़ते हैं। बीमार पड़ने का मुख्य कारण हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना है। हमारे शरीर का पाचन तंत्र ही खाये गये भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है। पाचन क्रिया खराब होने पर भोजन पूरी तरह से पचता नहीं है जिसके कारण शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता। जिसके कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता भी क्षीण होती जाती है और शरीर बीमारियों का घर बनते देर नहीं लगती। कुदरती आयुर्वेद के संस्‍थापक मोहम्मद यूसुफ एन शेख बता रहें है खराब पाचन को दुरुस्‍त कर कैसे खुद को स्‍वस्‍थ रखें।  

पेट खराब होने के लक्षण

पेट में दर्द, सूजन, अपच और जी मिचलाना, उल्टी आना पेट के खराब होने के प्रमुख लक्षण है। वहीं पसीने और पैरों में से बदबू आना, मुहासे, कई बार ब्रश करने के बाद भी सांसों से बदबू आना, अचानक बालों का झड़ना, नाखूनों का खराब होना या टूटने लगना भी पाचन क्रिया में खराबी आने के संकेत हैं। कब्ज या दस्त होना, पेट में ऐंठन, एसिडिटी, सीने में जलन, खाने के बाद पेट फूलना, हमेशा भारीपन रहना भी पेट में खराबी आने के लक्षण हैं। 

क्यों होती है पाचन क्रिया प्रभावित

पाचन क्रिया प्रभावित होने का प्रमुख कारण हमारी आधुनिक जीवनशैली है। जंक फूड, तला-भूना भोजन, कोल्डड्रिंक, चाय-कॉफी का अत्याधिक सेवन, देर रात को भोजन कर तुरंत सो जाना, रात में अधिक जागना, देर तक बैठ कर कार्य करना, शारीरिक व्यायाम न करना और पौष्टिक भोजन करने से परहेज करना शारीरिक पाचन क्रिया खराब होने के प्रमुख कारण हैं। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, शरीर के तरल पदार्थ में एसिड होना बीमारी के लक्ष्ण है। दूसरी और शरीर में एल्कलाइन होना एक स्वस्थ स्थिति दिखाता है। विषाक्त पदार्थ अम्लीय प्रकृति में है। 

हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी होगई है की रोज के खाने से और स्ट्रेस यातना होने से भी शरीर में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति को हमारा शरीर पहचान लेता है और एल्कलाइन करने या एसिड को नियंत्रण करने की कोशिस करता है। शरीर के सही ph बैलेंस होने से यह स्थिती नहीं बनती और इस काम को कैल्शियम सफल रूप से करता है। कैल्शियम से हर व्यक्ति के मन और शरीर दोनों पर प्रभाव पड़ता है यह हमारी हड्डियों की मजबूती और बनावट के लिए जिम्मेदार है। यह हर तरह के विकास, प्रजनन, शारीर की गतिविधिया और उसके रखरखाव के लिए काम आता है।

कैल्शियम शरीर की मासपेशियों का संकुचन और विकोचन करता है। मासपेशियों के नियंत्रण में कैल्शियम का बहुत प्रभाव पड़ता है। जठर और आंतो की मासपेशियों में कैल्शियम की कमी होने से पुरे पाचन को ठीक करने में बहुत दिक्कत होती है। पूरी पाचन क्रिया एन्जाइम्स और हॉर्मोन्स द्वारा नियंत्रित की जाती है जिसे कैल्शियम द्वारा संभाला जाता है।

पाचन क्रिया खराब होने से होने वाली बीमारियां

पाचन क्रिया प्रभावित होने पर हमारा शरीर भोजन को पूर्णतया पचा नहीं पाता जिसके कारण हमारे शरीर को आवश्यक विटामिन्स और मिनरल्स नहीं मिल पाते। जिसके चलते शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर होने लगती है। पेट खराब होने से कब्ज की समस्या होना आम बात है जो लंबे समय तक कायम रहने पर बवासीर जैसे गंभीर  रोग का कारण भी बन जाती है। वहीं दस्त होने पर शरीर को भोजन का पोषण नहीं मिल पाता जिसके कारण शारीरिक कमजोरी आने लगती है। पाचन क्रिया प्रभावित होने से गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (जीईआरडी) जैसा गंभीर रोग भी शरीर पर हावी होने लगता है।

इस बीमारी में पेट में मौजूद एसिड वापस भोजन की नली में प्रवाहित होकर उसे नुकसान पहुंचाता है। वसायुक्त भोजन और अनियिमित जीवनशैली के चलते लीवर में बनने वाले रेशे कोशिकाओं को ब्लॉक कर देते हैं। भोजन को पचाने में मदद करने वाले लीवर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने पर जीवाणु संक्रमण (बैक्टिरियल इंफेक्शन) हावी हो जाते हैं। यह संक्रमण लंबे समय तक मौजूद रहने पर लीवर काम करना बंद कर देता है। वहीं लीवर में सूजन आना भी गंभीर है जो खराब पाचन शक्ति के कारण ही आती है। 

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कैसे रखें पाचन क्रिया को दुरुस्त

पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने के लिये आहार, पाचन पद्धति तथा जीवनचर्या में बदलाव लाना बेहद महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम जंक फूड, फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक, अल्कोहल, सिगरेट, तला-भुना या अधिक भोजन करने से परहेज करें। रात का भोजन सोने से कम से कम दो-तीन घंटे पहले करें और भोजन करने के बाद टहलना शुरू करें। देर रात तक न जागें और अच्छी नींद अवश्य लें। अपनी दिनचर्या में शारीरिक व्यायाम को शामिल करें। खाने का समयक निर्धारित करें। खाने में जल्दबाजी न करें और भोजन को अच्छी तरह से चबा कर खायें। ठंडे पानी के बजाये गरम पानी पीना पाचन शक्ति को बढ़ाता है।

गरिष्ठ भोजन का परहेज करते हुए ऐसा भोजन करें जो पचने में आसान हो। विटामिन सी युक्त आहार जैसे - ब्रोकोली, टमाटर, किवी, स्ट्राबेरी, आदि का सेवन करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। इस के आलावा अगर आप को कैल्शियम की कमी लगती हो तो विटामिन डी का लेबोरेटरी में जाँच कराए और बगैर विटामिन डी की सप्लीमेंट लिए आयुर्वेदिक उपचार से उसे ठीक करे। 

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आयुर्वेदिक विधि में है पेट का रामबाण उपचार

पेट खराब हो जाने पर अक्सर लोग दवाओं- इंजेक्शनों का सहारा लेते हैं। किंतु तत्काल राहत पहुंचाने वाला यह उपचार पेट को नुकसान ही पहुंचाता है। इन दवाओं के साइड इफेक्ट कई अन्य परेशानियों को जन्म देते हैं। ऐसे में आयुर्वेदिक उपचार करना अधिक बेहतर उपाय है। साइड इफेक्ट न होने के कारण आयुर्वेदिक दवाएं शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। वहीं आयुर्वेदिक उपचार से ही पेट की बीमारियों का जड़ से इलाज करना संभव होता है। सर्जरी की स्थिति में पहुंच गये मरीज भी आयुर्वेदिक दवाओं और आयुर्वेद में बताये गये परहेज को करने के बाद सही होते देखे गये हैं।

याद रखें की सभी रोगों का मूल कारण पाचन शक्ति का कमजोर पड़ना है। अत: शारीरिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिये पाचन शक्ति को स्वस्थ रखना बेहद आवश्यक है। अगर आपका पेट सही है तो शरीर भी स्वस्थ रहेगा और बीमारियां भी पास नहीं फटकेंगी। 

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