सामाजिक बदलाव के इस दौर में आजकल पति-पत्नी के बीच आपसी सहमति से संबंध-विच्छेद और तलाक के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। परिवार का टूटना किसी के लिए भी अच्छा नहीं होता, अब लोग यह बात समझने लगे है। इसीलिए अब कुछ दंपती शादी टूटने के बाद भी एक-दूसरे के साथ संवाद कायम रखते हैं। हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जो इस बात पर भरोसा न करता हो कि जोडिय़ां स्वर्ग में बनती हैं लेकिन यह भी सच है कि कुछ वजहों से इनमें से कई जोडिय़ां टूट भी जाती हैं। दरअसल भारतीय समाज में किसी व्यक्ति की जि़ंदगी शादी के बिना मुकम्मल नहीं मानी जाती। चाहे स्त्री हो या पुरुष तलाक के बाद सामाजिक जीवन में दोनों को ही अलग तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
पुराने समय में ज्य़ादातर तलाक घरेलू हिंसा की वजह से होते थे। उसके बाद एक्स पार्टनर के साथ संपर्क या संवाद रखना बेमानी था लेकिन अब ज्य़ादा दंपती वैचारिक मतभेद, करियर से जुड़ी महत्वाकांक्षा या किसी विवाहेतर संबंध के कारण आपसी सहमति से तलाक लेते हैं। ऐसे में रिश्ते को ख्त्म करते समय भी उनके मन एक-दूसरे प्रति नफरत जैसी कोई नकारात्मक भावना नहीं होती। इसी वजह कई बार बच्चों या बुज़ुर्ग माता-पिता की खुशियों की खातिर संबंध विच्छेद के बाद भी वे संवाद के सभी रास्ते हमेशा के लिए बंद नहीं करते। यहां तक कि कुछ दंपतियों के बीच तलाक के बाद भी सहज दोस्ताना रिश्ता कायम रहता है।
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क्यों बढ़ रही हैं दूरियां
मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली की सीनियर कंसल्टेंट क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ.दीपाली बत्रा कहती हैं, 'अब लोग व्यक्तिगत आज़ादी को ज्य़ादा अहमियत देने लगे हैं। चाहे स्त्री हो पुरुष अब दोनों ही अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं। लोगों में सहनशीलता और एडजस्टमेंट की क्षमता खत्म होती जा रही है। अकसर यह देखा जाता है कि दांपत्य जीवन में जो पार्टनर अधिक व्यावहारिक होता, प्राय: तलाक की पहल उसी की ओर से होती है। ऐसे में जो भावनात्मक रूप से कमज़ोर होता है, उसके लिए अकेले जीवन बिताना बहुत मुश्किल हो जाता है। अगर परिवार में बच्चे हों तो उनके व्यक्तित्व पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। आज के दंपती इन परेशानियों को समझने लगे हैं, इसीलिए अगर किसी मजबूरी में उन्हें तलाक लेना पड़े तो भी वे अपने पूर्व पार्टनर से संपर्क बनाए रखते हैं।
बच्चों की खातिर
पति-पत्नी के रिश्ते में बच्चे पुल का काम करते हैं। कई बातों को लेकर उनके बीच मतभेद या झगड़े हो सकते हैं पर बच्चों की भलाई के मुद्दे पर दोनों हमेशा एकमत होते हैं। इस संबंध में लखनऊ की चांदनी कहती हैं, 'जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी, तभी मेरी शादी हो गई थी। दो बच्चों के जन्म के बाद छोटी-छोटी बातों के लेकर होने वाले झगड़े बड़े होते गए। तब हम दोनों में ही समझदारी नहीं थी। इसलिए अंतत: मामला तलाक तक पहुंच गया। कुछ वर्षों के बाद धीरे-धीरे हम दोनों पुराने कड़वे अनुभवों को भूलने लगे और हमें अपनी गलतियों का भी एहसास हुआ। ऐसा लगने लगा कि हमारे इस अलगाव का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है। फिर इस मुद्दे पर मैंने अपने पति से बात की और पुरानी कड़वाहट भुलाकर हमने एक-दूसरे के साथ एक नया दोस्ताना रिश्ता कायम किया। भले ही हम अलग फ्लैट्स में रहते हों पर जब भी हम मिलते हैं तो हमारे बीच बच्चों से जुड़ी ढेर सारी बातें होती हैं। अब तला$क का दर्द भूलकर मैं अपनी जि़ंदगी से पूरी तरह संतुष्ट हूं कि मेरे बच्चों को माता-पिता दोनों का प्यार मिल रहा है।
लोगों का संकुचित दृष्टिकोण
आज के ज़माने में भी लोग अकेली या तला$कशुदा स्त्री को शककी दृष्टिï से देखते हैं। इस संबंध में दिल्ली की डॉ. शंपा चौधरी कहती हैं, 'हमारे समाज में आज भी तला$क बहुत बड़ा टैबू है। रिश्ता टूटने के बाद दोबारा पति-पत्नी के बीच दोस्ती की बात को लोग सहजता से स्वीकार नहीं पाते। पढ़ाई के दौरान ही मैंने अपने बैचमेट से शादी कर ली लेकिन दुर्भाग्यवश वह रिश्ता चल नहीं पाया। एक स्थिति ऐसी भी आई, जब हमारा साथ रहना मुश्किल हो गया, तब हमने आपसी सहमति से बिना तलाक के ही अलग रहने का निर्णय लिया। साथ ही हमने यह भी तय किया कि हम इस रिश्ते को शालीनता के $खत्म करेंगे ताकि मेरी छह साल की बेटी पर इसका कोई बुरा असर न पड़े। चूंकि हम दोनों एक ही शहर में रहते हैं। इसलिए आपस में मिल-बांटकर बेटी की जि़म्मेदारियां निभा लेते हैं।
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मिसाल के तौर पर जब भी मुझे किसी कॉन्फ्रेंस में बाहर जाना होता है तो मैं अपनी बेटी को ससुराल में छोड़ देती हूं, जहां वह अपने दादा-दादी और पापा के साथ बहुत खुश रहती है। पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग में भी हम दोनों बारी-बारी से चले जाते हैं। भले ही अब हम पहले जैसे दोस्त नहीं हैं पर इंसानियत के नाते ज़रूरत पडऩे पर एक-दूसरे की मदद ज़रूर करते हैं। शुरुआत में बेटी को हमारे अलग रहने का कारण समझाने में थोड़ी दिक्कत हुई पर धीरे-धीरे उसने भी इस बदलाव को स्वीकार लिया। मुझे इस बात की संतुष्टि है कि अलग रहने के बावज़ूद मेरी बेटी को पिता का भी प्यार मिल रहा है।
कोई कड़वाहट नहीं है अब
जब साथ मिलकर चलने मे परेशानी हो तो कुछ लोग आपसी सहमति से अपने रास्ते बदल लेते हैं। इस संबंध में जयपुर की दीपिका शर्मा कहती हैं, 'मेरे पति कोटा में रहते हैं। ससुराल का मकान बहुत छोटा है। बड़ा बेटा होने के कारण उन पर पूरे परिवार के भरण-पोषण की जि़म्मेदारी थी, इसलिए आर्थिक तंगी के कारण कई बार पति और ससुराल वालों से मेरी अनबन हो जाती थी। ऐसे में बच्चों के साथ मैं अपने मायके जयपुर चली आई और यहीं उनका एडमिशन करा दिया। अपनी भाभी के साथ मिलकर मैंने बुटीक खोल लिया है, जिससे अच्छी आमदनी होती है। पति बच्चों से मिलने हर वीकेंड में यहां चले आते हैं और त्योहार जैसे अवसरों पर मैं भी ससुराल चली जाती हूं। अब वहां के लोगों ने मेरे साथ झगडऩा बंद कर दिया है। रिश्तेदार हमारी इस परेशानी को समझ नहीं पाते। उन्हें ऐसा लगता है कि पति ने मुझे छोड़ दिया है पर दूरी होने के बावज़ूद अब हमारे रिश्ते में कोई कड़वाहट नहीं है। तलाक की वज़हें भले ही अलग-अलग हो सकती हैं पर इसका परिणाम हमेशा एक ही होता है। माता-पिता के झगड़े का खमियाज़ा हमेशा बच्चों को ही भुगतना पड़ता है। इसलिए जहां तक संभव हो शादी को टूटने से बचाने की कोशिश करनी चाहिए।
कुछ ज़रूरी बातें
- अगर तलाक के बाद भी कोई स्त्री अपने पूर्व पति के साथ संवाद कायम रखना चाहती है तो उसे इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए :
- अपने एक्स लाइफ पार्टनर से दोबारन्ा मिलने से पहले यह बात को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि तलाक किस आधार पर हुआ था? अगर किसी तलाक घरेलू हिंसा या विवाहेतर संबंध जैसे किसी अति संवेदनशील मुद्दे पर हुआ हो तो ऐसे में सुरक्षा कारणों से पति-पत्नी दोनों को ही एक-दूसरे दोबारा मिलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
- जब कभी ज़रूरत हो तो मिलने के लिए ऐसी जगह का चुनाव करें, जहां आप दोनों के अलावा आसपास कुछ और लोग भी मौज़ूद हों। इसके लिए किसी कॉमन फ्रेड या विश्वसनीय रिश्तेदार के घर, भीड़ वाले रेस्तरां जैसी सुरक्षित जगहों को चुनाव करें।
- अपना हर सीक्रेट शेयर न करें।
- अगर दोनों में से कोई एक व्यक्ति किसी नए रिश्ते के बंधन में बंध चुका है तो ऐसे में एक्स पार्टनर से दोबारा मेलजोल आपके रिश्ते में परेशानी का सबब बन सकता है।
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