गंभीर बीमारियों का वहम होना भी एक किस्म का मनोरोग है, जानें लक्षण और बचाव

मन में हमेशा गंभीर बीमारियों का वहम होना भी एक किस्म का मनोरोग है। इसे हाइपोकॉन्ड्रियासिस कहा जाता है। क्यों होती है ऐसी समस्या, इससे कैसे करें बचाव और क्या है इसका उपचार, आइए जानते हैं!
  • SHARE
  • FOLLOW
गंभीर बीमारियों का वहम होना भी एक किस्म का मनोरोग है, जानें लक्षण और बचाव


Hypochondriasis In Hindi: अपने आसपास आपने भी कुछ ऐसे लोगों को ज़्ररूर देखा होगा, जो मामूली सिरदर्द को भी ब्रेन ट्यूमर का लक्षण समझ कर चिंतित हो जाते हैं। ऐसे लोग हमेशा इसी भय में जीते हैं कि कहीं मुझे कोई गंभीर बीमारी न हो जाए। ऐसे लोग हमेशा बीमारियों के बारे में ही सोच रहे होते हैं। अगर किसी व्यक्ति में स्पष्ट रूप से ऐसे लक्षण दिखाई दें तो उसे सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि यह हाइपोकॉन्ड्रियासिस (रोगभ्रम) जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या का लक्षण हो सकता है। 

हाइपोकॉन्ड्रियासिस या रोग भ्रम के लक्षण

  • हमेशा हेल्थ संबंधी वेबसाइट्स पर बीमारियों के बारे में सर्च करना।
  • मामूली लक्षण को भी किसी गंभीर बीमारी से जोड़कर देखना।
  • इन्फेक्शन या एलर्जी के डर से इतना सशंकित होना कि इससे व्यक्ति की दिनचर्या भी प्रभावित होने लगती है।  
  • खाने-पीने के मामले में अतिरिक्त सजगता के कारण ऐसे लोग बीमारी के डर बहुत सारी चीज़ें नहीं खाते, जिससे वे जरूरी पोषक तत्वों से वंचित रह जाते हैं।
  • किसी गंभीर बीमारी की आशंका में ऐसे लोग कई तरह के अनावश्यक मेडिकल टेस्ट करवाते रहते हैं। इन्हें किसी एक डॉक्टर या पैथोलॉजिस्ट पर भरोसा नहीं होता। इसी वजह से ये कई डॉक्टर्स से सलाह लेते हैं लेकिन अपना उपचार शुरू नहीं करवा पाते। 
  • इस समस्या से पीडि़त लोग बीमारियों के बारे में सोचकर चिंतित ज़रूर होते हैं लेकिन डॉक्टर के पास जाना पसंद नहीं करते। इनके मन में यह डर होता है कि दवाओं के साइड इफेक्ट से कहीं मेरी जान को खतरा न हो जाए। डॉक्टर की उपस्थिति में ऐसे लोग और ज्य़ादा नर्वस हो जातेे हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि डॉक्टर कहीं कोई गंभीर बीमारी न बता दे।    

क्या है वजह

ऐसा देखा जाता है कि जिन बच्चों की परवरिश अति संरक्षण भरे माहौल में होती है, उनमें इस बीमारी की आशंका अधिक रहती है। अगर किसी को बचपन में कोई गंभीर बीमारी झेलनी पड़ी हो या उसने परिवार के किसी सदस्य को ऐसी ही समस्या से जूझते देखा हो या किसी करीबी व्यक्ति की असामयिक मृत्यु की वजह से भी व्यक्ति में इस मनोरोग के लक्षण पैदा हो सकते हैं। एंग्ज़ायटी या डिप्रेशन के मरीज़ों में भी कई बार इस बीमारी के लक्षण नज़र आते हैं।

इसे भी पढ़ें: मानसिक रोगों से दूर रहने के लिए रोजाना करें ये 3 प्राणायाम, तनाव और अवसाद से मिलेगी मुक्ति

जीवन पर प्रभाव

यह समस्या कई स्तरों पर व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है। बीमारी की अनावश्यक चिंता के कारण व्यक्ति की भूख, प्यास और नींद प्रभावित होती है, जिससे वह शारीरिक रूप से बहुत कमज़ोर हो जाता है। हमेशा अस्पतालों के चक्कर काटने की आदत की वजह से समय और पैसे की बर्बादी होती है। परिवार के सदस्य, दोस्त और रिश्तेदार भी इनकी ऐसी आदतों से परेशान रहते हैं, जिससे लोगों के साथ इनके संबंध खराब हो जाते हैं। हमेशा सेहत के प्रति चिंतित रहने के कारण ऑफिस में भी कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते, जो उनके करियर के लिए नुकसानदेह साबित होता है।

अगर किसी व्यक्ति में लगातार छह महीने तक ऐसे लक्षण नज़र आएं तो परिवार के सदस्यों की यह जि़म्मेदारी बनती है कि वे पीडि़त व्यक्ति को क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाएं। काउंसलिंग और उपचार के ज़रिये इसका समाधान संभव है।

इसे भी पढ़ें: क्‍यों कमजोर हो जाती है याद्दाश्‍त, जानें कितनी तरह की होती है मेमोरी

परिवार की जि़म्मेदारी    

  • मरीज़ की बातें ध्यान से सुनें। उसे कभी भी यह एहसास न होने दें कि वह बीमार है।
  • परिवार का माहौल पॉजिटिव और खुशनुमा बनाए रखें।
  • मरीज की बातों पर ओवर रिएक्ट करने से बचें और अपना धैर्य बनाए रखें। 
  • व्यक्ति को उसकी रुचि से जुड़ी किसी भी ऐक्टिविटी में अकसर व्यस्त रखने की कोशिश करें।     

Read More Articles On Mental Health In Hindi

Read Next

न' सुनने पर आपको भी आता है गुस्सा? कहीं आप रिजेक्शन सेंसिटिव डिसफोरिया का शिकार तो नहीं

Disclaimer

How we keep this article up to date:

We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.

  • Current Version