ग्लूकोमा आंखों में होने वाला रोग है, आमतौर पर इसका लोगों को काफी देर से पता चल पाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण स्पष्ट नहीं होते। यदि इस बीमारी के खतरे और दुष्प्रभावों से बचना हो, तो 40 साल की उम्र के बाद आंखों की नियमित जांच और खानपान आदि का ध्यान रखना चाहिए। इस उम्र में पहले की अपेक्षा ज्यादा सावधान व देखभाल करने की जरूरत होती है। क्योंकि उम्र के इस पड़ाव पर ग्लूकोमा, जिसे काला या नीला मोतिया भी कहा जाता है, वह आंखों की रोशनी का दुश्मन की तरह असर दिखाना शुरू करता है।
देश में अंधेपन की समस्या से जूझ रहे मरीजों में बड़ी संख्या ग्लूकोमा के रोगियों की है। हमारे देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में ग्लूकोमा अंधेपन का एक बड़ा कारण है। लोगों में आंख की इस समस्या के प्रति अभी भी जागरूकता का अभाव है। ग्लूकोमा की सही जानकारी और समय पर इलाज कर काफी हद तक ग्लूकोमा से बचाव करना संभव है। आइए यहां जानें ग्लूकोमा से बचाव के कुछ तरीके।
ग्लूकोमा से बचाव के तरीके
आंखों में दर्द या धुंधलापन
आई एक्सपर्ट बताते हैं कि ग्लूकोमा के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसका कोई लक्षण पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता। इसके ज्यादातर मामलों में आंखों की रोशनी अचानक कम होने लगती है। जांच कराने पर ही इसका पता लग पाता है। इसलिए जब भी कभी आंखों में दर्द या धुंधलापन महसूस हो, तो देरी न करें और जांच कराएं।
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चश्में का लगातार नंबर बढ़ना या लाइट में परेशानी
ग्लूकोमा को शुरुआत में ही पहचानने का प्रयास करें। इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते, लेकिन नियमित जांच कराते रहने से प्रारंभिक स्थिति में ही इसकी पुष्टि की जा सकती है। इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं, जैसे आंखों में दर्द, भारीपन, सिर दर्द, लाइट देखने में दिक्कत महसूस होना, लगातार नंबर बदलना और नजर धुंधली होना आदि होने पर भी आपको तुरंत जांच करानी चाहिए।
ग्लूकोमा के बाद भी जांच जरूरी
ग्लूकोमा का पता लगाने के लिए नियमित आई चेकअप, रेटिना इवेल्यूएशन और विजुअल फील्ड टेस्टिंग कराते रहना चाहिए। प्रारंभिक स्थिति में ग्लूकोमा की पहचान कर इसे आई ड्रॉप्स और स्थिति बढ़ जाने पर लेंसर और सर्जरी से ठीक किया जा सकता है।
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सर्जरी के बाद धूल-मिट्टी से बचें
ग्लूकोमा के मरीजों को सर्जरी के बाद अपनी आंखों को धूल-मिट्टी से बचाना चाहिए। खासकर आंखों को मलना या रगड़ना नहीं चाहिए। आंखों पर किसी तरह का प्रेशर नहीं पड़ना चाहिए। इसके अलावा, मरीज अपने डेली रूटीन का सारा काम-काज बिना किसी प्रॉब्लम के कर सकता है।
ग्लूकोमा से बचाव की जरूरी सावधायिां
- ग्लूकोमा से बचने के लिए सभी जरूरी सावधानियां बरतें। जैसे कि आंखों में कोई भी ड्रॉप डालने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें।
- दवाई को ठंडी और शुष्क स्थान पर रखें और एक बार में एक ही ड्रॉप डालें।
- दो दवाइयों के बीच में कम से कम आधा घंटे का अंतर रखें।
- आई स्पेशलिस्ट से लगातार मिलते रहने व समय से दवाइयां लेते रहने से आप ग्लूकोमा को समय रहते नियंत्रित कर एक सामान्य जीवन निर्वाह कर सकते हैं।
हालांकि कई बार आंख में चोट लगने, एडवांस्ड कैटरेक्ट (बढ़ा हुआ मोतियाबिंद), डायबिटीज, आई इनफ्लेमेशन और कुछ मामलों में स्टेरॉयड्स से भी ग्लूकोमा हो सकता है। 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को जिनका कोई ग्लूकोमा का कोई पारिवारिक इतिहास रह चुका हो, को इसकी शिकायत होने की ज्यादा संभावना रहती है।
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ग्लूकोमा से बचाव व इसके हो जाने पर उपचार पूरी तरह इसकी स्थिति पर निर्भर करता है। बेहतर होगा कि इसके उपचार में सर्जरी आदि से बचने के लिए ग्लूकोमा के होने से पूर्व ही इसको रोक लिया जाए। इसलिए नियमित जांच करानी चाहिए। खासकर 40 की उम्र के बाद संतुलित व पौष्टिक आहार और नियमित व्यायाम करना जरूरी है।
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