बाइपोलर डिस्ऑर्डर एक मानसिक विकार है। बाइपोलर का अर्थ है दो ध्रुवों वाला, यानी इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति दो ध्रुवों के बीच जीने लगता है। कभी वो बेहद खुश महसूस करता है और कभी गम के कारण अवसाद में चला जाता है। यह बीमारी रिश्ता, करियर, पढ़ाई और समझदारी को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति बहुत गंभीर मिजाज का हो जाता है और वह समझ नहीं पाता क्या करें क्या न करे। यानी वह हमेशा एक प्रकार की दुविधा में रहता है और अक्सर उसके द्वारा किये गये काम पूरे नहीं हो पाते। कई बार लोगों को पहचानने में भी दिक्कत होती है।
थायरॉइड भी एक गंभीर रोग है, जिसमें शरीर में थायरॉक्सिन और अन्य कई हार्मोन्स का असंतुलन हो जाता है। जिन लोगों को थायरॉइड और बाइपोलर डिस्ऑर्डर दोनों एक साथ होता है, उन लोगों के लिए ये रोग बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं। थायरॉइड रोग के कारण बाइपोलर डिस्ऑर्डर के रोगी में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ सकती है।
बाइपोलर डिस्ऑर्डर और थायरॉइड
थायराइड ग्रंथि गर्दन में स्थित होती है और जो थायराइड हार्मोन, अर्थात्, T3 और T4 के स्राव के लिए जिम्मेदार होती है। ये हार्मोन्स आपके शरीर के मेटाबॉलिज्म के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन हार्मोन्स का व्यक्ति के मूड पर गहरा प्रभाव पड़ता है। T3 थायराइड हार्मोन सिरोटोनिन के स्तर को प्रभावित करता है और डिप्रेशन का कारण बन सकता है।
इसके अलावा अगर थायरॉइड ग्रंथि T3 हार्मोन का अतिरिक्त उत्पादन करती है, तो मरीज को दिल की धड़कन संबंधी समस्याएं होने लगती हैं और थकान, चिंता और अवसाद के लक्षण भी दिख सकते हैं।
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बाइपोलर डिस्ऑर्डर से थायरॉइड का खतरा
बाइपोलर डिस्ऑर्डर के इलाज के दौरान कई लोगों को थायरॉइड की समस्या हो जाती है, यानी ये दोनों रोग एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। दरअसल लीथियम को हाइपोथायरायडिज्म का कारण जाना जाता है, और लिथियम को बाइपोलर डिस्ऑर्डर के उपचार का एक विकल्प माना जाता है। यही कारण है कि बाइपोलर डिस्ऑर्डर के उपचार में लीथियम का प्रयोग किए जाने पर बार-बार थायरॉइड चेक करने की सलाह दी जाती है।
बाइपोलर डिस्ऑर्डर के लक्षण
बाइपोलर मैनिक डिप्रेशन के लक्षणों में तनाव, दुखी रहना, ऊर्जा में कमी, इच्छा में कमी, आत्मविश्वास में कमी, मरने की इच्छा करना और नाउम्मीद होना आदि शामिल होते हैं। वही दूसरी तरफ उन्माद के लक्षणों में बहुत अधिक खुशी, नींद की जरूरत घटना, बहुत अधिक बोलना, जोखिम लेना, अति आत्मविश्वास होना, बहुत अधिक खर्च करना आदि देखे जाते हैं। यह आमतौर पर किशोरावस्था के दौरान या उसके बाद शुरू होता है, और यह पुरुषों और महिलाओं को समान प्रकार से प्रभावित करते हैं। तो यदि यह कहा जाए कि तनाव बाइपोलर डिसऑर्डर का एक लक्षण है तो लगत न होगा। बाइपोलर डिसऑर्डर दरअसल तनाव के काफी बाद की स्थिति होती है।
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बच्चे भी हो सकते हैं शिकार
बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे ज्यादातर अपने ख्यालों में खोए रहते हैं। ख्यालों में खोए रहने के कारण वो हर बात को ज्यादा सोचने लगते हैं, जिससे तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे बच्चों के दिमाग में हजारों बातें चलती रहती हैं जिन पर उनका काबू नहीं रहता। कई बार नींद न आने के कारण भी बच्चे इस रोग का शिकार हो जाते हैं। दरअसल नींद की कमी से अवसाद होता है और अवसाद बाइपोलर डिस्आर्डर का प्रमुख कारण है।
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