जब कोई 'दवा' नहीं, तो कैसे ठीक हो रहे हैं कोरोना वायरस के मरीज? कोविड-19 से 'रिकवरी' का मतलब क्या है?

कोरोना वायरस मरीजों को दवाएं नहीं, बल्कि उनका अपना इम्यून सिस्टम ठीक कर रहा है। लेकिन इन सब में डॉक्टर्स और इलाज की भूमिका महत्वपूर्ण है, जानें क्यों।
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जब कोई 'दवा' नहीं, तो कैसे ठीक हो रहे हैं कोरोना वायरस के मरीज? कोविड-19 से 'रिकवरी' का मतलब क्या है?


भारत में अब तक कोरोना वायरस के 4700 से ज्यादा मरीज पाए गए हैं। इनमें से 124 लोगों की मृत्यु हो गई है, मगर 353 लोग ठीक भी कर लिए गए हैं। वहीं दुनियाभर में अब तक कोरोना वायरस के लगभग 14 लाख मरीज सामने आ चुके हैं, जिनमें से 3 लाख से ज्यादा लोगों को ठीक किया जा चुका है। कोरोना वायरस खतरनाक है, इसीलिए इसकी दवा और वैक्सीन की खोज लगातार जारी है। इन दिनों कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि जब कोरोना वायरस की कोई दवा ही नहीं है, तो इसके मरीजों को ठीक कैसे किया जा रहा है? कुछ लोगों के मन में यह सवाल भी उठ रहा होगा कि जब लोगों का इलाज संभव है, तो इतनी कम संख्या में लोग क्यों ठीक हो रहे हैं?

दरअसल कोरोना वायरस से 'रिकवरी' के लिए कई मानक तय किए गए हैं। किसी भी व्यक्ति को इस वायरस से मुक्त तभी माना जाता है, जब संक्रमित व्यक्ति में ये मानक पूरे पाए जाते हैं। आइए आपको बताते हैं कि कोरोना वायरस के मरीजों को कैसे ठीक किया जा रहा है।

कोरोना वायरस के इलाज के लिए क्या कर रहे हैं डॉक्टर?

आमतौर पर कोरोना वायरस की चपेट में आने के लगभग 7 दिन बाद मरीज में इसके लक्षण दिखना शुरू होते हैं। मरीज को बुखार आने का मतलब यह है कि उसके शरीर ने कोरोना वायरस से लड़ना शुरू कर दिया है। दरअसल कोरोना वायरस से ठीक होने वाले मरीजों को दवाएं नहीं, बल्कि उनका अपना इम्यून सिस्टम ही ठीक कर रहा है। अस्पताल में सिर्फ मरीज के लक्षणों का इलाज किया जा रहा है। जब अस्पताल में मरीज का इलाज शुरू किया जाता है, तो सबसे पहले लक्षणों को रोकने की कोशिश की जाती है। इसके लिए आइसोलेशन वार्ड में ही मरीज को बुखार, खांसी और दर्द आदि की दवाएं देकर आराम पहुंचाने की कोशिश की जाती है। बहुत सारे मरीज जिनकी इम्यूनिटी अच्छी है, उनका शरीर इस आइसोलेशन पीरियड के दौरान ही वायरस से लड़ने में सफलता प्राप्त करता है और वो ठीक हो जाते हैं।

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हर 4 में से 1 व्यक्ति को पड़ रही है वेंटिलेटर की जरूरत

मगर जिन मरीजों में निमोनिया के गंभीर लक्षण दिखते हैं या जिन्हें सांस लेने में परेशानी होती है अथवा जो पहले से किसी गंभीर बीमारी से प्रभावित हैं, उन्हें तुरंत आईसीयू वॉर्ड में भर्ती किया जाता है। अगर किसी मरीज की स्थिति गंभीर है, तो ऑक्सीजन मास्क के द्वारा उसे ऑक्सीजन दी जाती है या स्थिति के अनुसार वेंटिलेटर पर रखा जाता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार हर 4 में से 1 व्यक्ति को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है। वेंटिलेटर पर मरीज के अपने इम्यून सिस्टम के इस वायरस से लड़ने तक उसे कृत्रिम उपकरणों द्वारा जीवन दिया जाता है। जब मरीज का इम्यून सिस्मट धीरे-धीरे वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाता है, तो उसे फिर सामान्य ट्रीटमेंट दिया जाने लगता है।

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इम्यून सिस्टम कर रहा है मरीजों का इलाज

हर वायरस की सतह पर या उसके द्वारा छोड़े गए केमिकल में एक खास तत्व होता है, जिसे एंटीजेन कहते हैं। इसी से हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम ये पहचान करता है कि किसे मारना है और किसे छोड़ना है। शरीर में कोरोना वायरस के पहुंचने के बाद ही मरीज का शरीर इंफेक्शन से लड़ने के लिए खास प्रोटीन बनाने लगता है, जिन्हें एंटीबॉडीज कहा जाता है। ये एंटीबॉडी सभी वायरसों को अपनी गिरफ्त में लेते हैं, ताकि वे अपनी संख्या न बढ़ा सकें। इससे धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर में वायरस के इंफेक्शन से दिखने वाले लक्षण कम होने लगते हैं। जब ये एंटीबॉडीज सभी वायरस को पूरी तरह खत्म कर देते हैं और टेस्ट में ये वायरस निगेटिव पाया जाता है, तो मरीज को पूरी तरह रिकवर मान लिया जाता है।

इलाज के बाद भी क्यों रखा जा रहा है आइसोलेट?

कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों को इलाज के बाद भी 7 से 14 दिन तक आइसोलेशन में रहने की सलाह देकर ही डॉक्टर विदा कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज के लक्षण तो ठीक हो जाते हैं, मगर मरीज के शरीर में कुछ संख्या में वायरस मौजूद होते हैं। जो दोबारा अटैक कर सकते हैं। इसलिए व्यक्ति को कुछ दिनों तक आइसोलेशन में रखकर ये देखा जाता है कि वो पूरी तरह से संक्रमण मुक्त हो चुका है।

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दवाओं के लिए दिए गए हैं निर्देश

कोरोना वायरस चूंकि बिल्कुल नया वायरस है, इसलिए डॉक्टरों को इलाज के दौरान विशेष सावधानी बरतने की हिदायत दी गई है। किस तरह की स्थिति में कौन सी दवाओं का प्रयोग करना है, इसके बारे में स्वास्थ्य विभागों ने पूरे दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यही कारण है कि कोरोना वायरस के लक्षण दिखने पर किसी भी व्यक्ति को अपने से किसी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्थिति गंभीर हो सकती है।

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