बदलते मौसम में बच्चों और बड़ों को होता है कई बीमारियों का खतरा, आयुर्वेदाचार्य से जानें बचाव के प्राकृतिक उपाय

बसंत ऋतु के आने और सर्दी के जाने पर लोगों को ज्यादा सावधानी की जरूरत है क्योंकि ऐसे में मौसम में बीमारियां ज्यादा होती हैं।
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बदलते मौसम में बच्चों और बड़ों को होता है कई बीमारियों का खतरा, आयुर्वेदाचार्य से जानें बचाव के प्राकृतिक उपाय

बसंत पंचमी के साथ ही बसंत ऋतु का आगमन हो गया है। इसके साथ ही सर्दी का महीना धीरे-धीरे जा रहा है। इस तरह के बदलते मौसम में स्वास्थ्य का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक अपनी सेहत का सावधानीपूर्वक ध्यान रखना पड़ता है। आयुर्वेद में इस बदलते मौसम को संधिकाल कहा गया है। दिल्ली के शकरपुर स्थित आयुर्वेदा संजीवनी क्लीनकि के वरिष्ठ आयुर्वेदिक कसंल्टेंट एम मुफीक का कहना है कि इस संधिकाल में छोटे बच्चों के अलावा बड़ों को भी संभलकर रहने की जरूरत है। उन्होंने बदलते मौसम में हमें खुद को बीमारियों से कैसे दूर रखना है और किस मौसम में कौन सी बीमारियां होती हैं, इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी। इसके अलावा उनके आयुर्वेदिक उपाय भी बताए हैं।

ऋतुचर्या क्या है?

डॉ मुफीक के मुताबिक जिस तरह से दिन के लिए दिनचर्या होती है वैसे ही ऋतु के लिए ऋतुचर्या होती है। भारत में छह प्रकार की ऋतुएं होती हैं। जिसमें शिशिर (Autumn), बसंत (Spring), ग्रीष्म (Summer), वर्षा (Rain), शरद (Winter) और हेमंत (Hemant)। आयुर्वेद में इन छह ऋतुओं में किस तरह का लाइफस्टाइल होना चाहिए। कौन सी ऋतु में कौन सी बीमारी होती है। उस बीमारी से निपटने के लिए आर्युवेद के अनुसार कौन सी चीज खानी चाहिए  आदि बातों को बताया जाता है जिसे ऋतुचर्या कहा जाता है। वाक, पित्त, कफ प्रकृति के लोग होते हैं उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, यह ऋतुचर्या में बताया जाता है। अगर इन चीजों के अनुसार हम अपना जीवन गुजारते हैं तो बीमार नहीं पड़ेंगे। इन ऋतुओं को पालन करने का नाम ही ऋतुचर्या है।

दो प्रकार की होती है ऋतुचर्या

शोधन और शमन दो तरह की ऋतुचर्या होती है। शोधन में शरीर की शुद्धि पंचकर्म के द्वारा की जाती है। शमन चिकित्सा जिसमें दवाइयां देकर बीमारियां ठीक की जाती हैं। शोधन चिकित्सा में दोषों को ऊपर से बाहर निकलना पड़ता है। नास्य चिकित्सा की जा सकती है। शमन चिकित्सा में व्यायाम करना चाहिए। तेल और चूर्ण से मसाज करें। हाथ पैरों को दबाना चाहिए। गन्ने का रस या अंगूर खाना चाहिए। शहद का सेवन करना चाहिए। 

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संधिकाल क्या है?

जब किसी एक मौसम से दूसरे मौसम में परिवर्तन होता है तब उसे संधिकाल कहा जाता है। जैसे अभी बसंत आया है और सर्दियां जा रही हैं। डॉ मुफीक के मुताबिक बदलते मौसम में खानपान के अलावा कपड़ों का भी ध्यान रखना पड़ता है। अगर बीमारी से बचना है तो जरूरी है कि ऋतुचर्या का पालन किया जाए। उनके मुताबिक शिशिर, बसंत और ग्रीष्म को उत्तरायण कहा जाता है। इसको आदान काल भी कहते हैं। इस मौसम में सूरज का तेज होता है। हमारी एनर्जी कम हो जाती है। थकावट रहने लगती है। आदमी जल्दी थकता है। तो वहीं, सर्दियों में अग्नि तेज होती है। आहार बल तेज होता है। सर्दियों में हम कुछ भी खाते हैं तो पच जाता है। इस मौसम में बीमारी भी कम होती है। गर्म चीजें भी सूट कर जाती हैं। शरीर में ताकत भी आती है। इस मौसम में एक ऋतु जा रही है और एक आ रही है। इसमें हेमंत ऋतु के बाद के 15 दिन और बसंत ऋतु के आने वाले 15 दिन होते हैं। इस दौरान बीमारियां ज्यादा होती हैं। शरीर में बदलाव आते हैं। इस दौरान मेटाबॉलिज्म भी बदलता है। 

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किस मौसम में बीमारियों से बचने के लिए किन बातों का रखें ख्याल

डॉ. मुफीक ने बड़े विस्तार से बताया कि किस मौसम में किन बातों का ख्याल रखना चाहिए, जिससे लोग कम बीमार  पड़ें। यहां हर मौसम के अनुसार उसकी बीमारी और आयुर्वेदिक इलाज बताया गया है।

1.बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च)

अभी जो सर्दी का मौसम गया है उसमें शरीर में जो कफ जमा हो गया था वो पिघलना शुरू हो जाता है। बसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होती हैं, जिससे अग्नि तेज होती है जिससे रोग पैदा होते हैं। कफ को कम करने के लिए गेहूं, शहद, जौं, का सेवन करना चाहिए। कफ से संबंधित कई बीमारियां होती हैं। इस मौसम में बच्चों और बड़ों को उल्टी, नजला, चेचक, जुकाम, खांसी, भूख कम लगना आदि परेशानियां होती हैं। तो वहीं इस मौसम में लोगों की लापरवाही भी बढ़ जाती है। इसमें पहले की जो ऋतु है उसको धीरे-धीरे छोड़ना चाहिए। जैसे सुबह-शाम की सर्दी हो रही है। लोगों ने इनर पहनना बंद कर दिया। ठंडा पानी पीना, आइस्क्रीम खाना शुरू कर दिया है। तो उससे क्या होगा कि फीवर आएगा, गले में दर्द होगा। बॉडी का तापमान बिगड़ेगा। इस दौरान सही भोजन करना चाहिए। बसंत ऋतु में कड़वी चीजें लेनी चाहिए।

2. हेमंत ऋतु (नवंबर-दिसबंर)

इस मौसम में जाठराग्नि प्रबल होती है। इस ऋतु में हमें मधुर, लवण, अम्ल का सेवन करना चाहिए। इसमें रात लंबी होती है इसलिए सुबह समय भूख लगती है। खाने में सर्दी से बचने के लिए स्निग्ध और मीठे का सेवन करना चाहिए। मांसहारियों को मांस खाना चाहिए। शाकाहारियों को गेंहूं, उड़द आदि खाना चाहिए। गुनगुना पानी पिएं। गर्म कपड़े पहनें।

3. शिशिर ऋतु (दिसंबर-जनवरी)

हेमंत में जो सावधानियां आप बरत रहे थे उन्हें शिशिर में भी बरतें। इस मौसम में ज्यादा ठंड पड़ती है। इसलिए ज्यादा सावधानी रखनी चाहिए।

4. ग्रीष्म ऋतु (अप्रैल-मई)

इस मौसम में गर्मी ज्यादा पड़ती है। इसमें सूर्य पृथ्वी के ज्यादा करीब होता है। इसलिए शरीर की ताकत कम होने लगती है। स्निग्ध और मधुर आहार-विहार करना चाहिए। दूध, दही, गन्ने का रस, जूस, शरबत आदि खाएं। क्योंकि अग्नि दुर्बल होती है। ज्यादा खाना खाने पर पेट खराब हो जाएगा। इसलिए हल्का खाना खाना चाहिए। सत्तू खाएं। ग्रीष्म ऋतु में दारू कम पिएं। इस ऋतु में पित्त बढ़ा रहता है। इसलिए स्कीन से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं। जैसे मुहांसे, दाने निकलना, छाले निकलना आदि।

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5. वर्षा ऋतु (जुलाई-अगस्त)

ये आदान काल होता है। जो भोजन पहले से पचा नहीं है और अग्नि भी लोगों की कमजोर रहती है और दोषों का प्रकोप भी बढ़ने लगता है। जब आकाश से पानी गिरता है तो वात डिस्टर्ब हो जाता है। पानी भी दूषित हो जाता है। पानी में भी गंदगी आ जाती है। इस मौसम में हमें ऐसी चीजें खानी चाहिए जो भूख को बढ़ाए। पुराना जो खाना है गेंहूं, दाल, मुनक्का, पंचकोल (पिप्पली, पिप्पली मूल, चव्य, चित्रक और सौंठ का मिश्रण) पिएं। अम्ल, लवण और स्नेहयुग्त भोजन करें। और भोजन में शहद भी मिलाएं। हल्का खाना खाएं। जहां गंदगी हो वहां न जाएं। दिन में न सोएं। धूप से बचें।

6. शरद ऋतु (सितंबर-अक्तूबर)

इस मौसम में भी अग्नि मंद रहती है। दिन में सूर्य की किरणें गर्म रहती हैं। गर्मी ज्यादा होती है। तला भुना कम खाएं। पित्त दोष कम करने वाले पदार्थ खाएं। पेट भर कर खाना न खाएं। दही का सेवन करें। मधुर और कक्षाय रस का सेवन करना चाहिए। ठंडा खाना खाएं। शीत ऋतु हेमंत और शिशिर को मिलाकर बनती है। रूखा खाना खाएं। शीत ऋतु में अम्ल, लवण, मधु का सेवन करना चाहिए। 

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इन बातों का रखें विशेष ख्याल 

- शरद ऋतु में शीतल खानपान लेना चाहिए

- बसंत ऋतु में सुबह-शाम गर्म पानी पिएं। ठंडी चीजों से बचें। एक दम से गर्म कपड़े न छोडे़ं।

- छोटे बच्चों को दिक्कत होने पर सुबह शाम शहद चटाएं। तुलसी का काढ़ा, गर्म कपड़ों में रखें। त्वचा संबंधी रोग के लिए नीम से नहलाएं। 

बदलते मौसम हमेशा कंफ्यूजन करने वाले होते हैं। इसलिए इन मौसमों ज्यादा सावधानी रखनी जरूरत है। यही वे मौसम होते हैं जिनमें डॉक्टरों की दुकानों पर भीड़ लगी रहती है। यहां हमने आपको घर पर कौन से उपाय अपनाकर, खानपान में सावधानी रखकर खुद को बीमारियों से दूर रखा जा सकता है।

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