
शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अध्ययन में खुलासा किया है कि जेनेटिक रूप से टेस्टोस्टेरोन का उच्च स्तर महिलाओं में टाइप -2 डायबिटीज जैसी मेटाबॉलिक बीमारी का खतरा बढ़ा देता है जबकि पुरुषों में इस जोखिम को कम करता है। इतना ही नहीं हाई टेस्टोस्टेरोन लेवल महिलाओं में स्तन कैंसर (Breast Cancer) और एंडोमेट्रियल (endometrial) कैंसर के खतरे को भी बढ़ाता है। जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का हाई लेवल प्रोस्टेट कैंसर का कारण बन सकता है।
महिलाओं और पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन लेवल के परिसंचार में एक जेनेटिक संबंध को पता लगाने के बावजूद लेखकों ने पाया कि दोनों लिंग के बीच जेनेटिक फैक्टर अलग-अलग है।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर की प्रोफेसर और अध्ययन की मुख्य लेखक कैथरीन रूथ का कहना है, ''हमारे निष्कर्ष टेस्टोस्टेरोन के रोग प्रभाव में एक अनूठी पहचान मुहैया कराते हैं। ये विशेष रूप से अध्ययनों में पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग रूप से विचारने के महत्व पर जोर देते हैं। हम अध्ययन में डायबिटीज पर टेस्टोस्टेरोन के विपरित प्रभाव देखते हैं।''
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निष्कर्षों के लिए शोधकर्ताओं ने टीम ने जीनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज (जीडब्लूएएस) से 4,25,097 प्रतिभागियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। यह स्टडीज सेक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरोन और इसके प्रोटीन सेक्स-हार्मोन बाइंडिंग ग्लोब्युलिन (एसएचजीबी) के स्तरों में अंतर से जुड़े 2,571 आनुवांशिक बदलावों की पहचान करता है।
शोधकर्ताओं ने अतिरिक्त अध्ययनों में उनके जेनेटिक विश्लेषण की पहचान की, जिसमें एपिक-नोरफोल्क स्टडी और ट्विंस यूके भी शामिल थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि यूकेबायोबैंकमें उनके नतीजों के साथ उच्च स्तर की सहमति थी।
शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं में जेनेटिक रूप से टेस्टोस्टेरोन का उच्च स्तर डायबिटीज के खतरे को 37 फीसदी बढ़ा देता है, वहीं पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) का खतरा 51 फीसदी तक बढ़ जाता है। हालांकि उन्होंने ये भी पाया कि पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का अधिक स्तर पुरुषों में टाइप-2 डायबिटीज का स्तर 14 फीसदी तक कम कर देता है।
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इसके अलावा शोधकर्ताओं ने पाया कि जेनेटिक रूप से टेस्टोस्टेरोन का उच्च स्तर महिलाओं में स्तन और एंडोमेट्रियल कैंसर और पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और अध्ययन के शोधकर्ता जॉन पैरी का कहना है कि हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि जेनेटिक रूप से टेस्टोस्टेरोन का बढ़ा हुआ स्तर महिलाओं में पीसीओएस के खतरे को बढ़ा देता है। इसलिए इस आम विकार के उद्भव में टेस्टोस्टेरोन की भूमिका को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है बजाए इस स्थिति के परिणामों को जानने के।
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