कपिंग थेरेपी वैकल्पिक चिकित्सा का एक प्राचीन रूप है, जिसके अंतर्गत त्वचा पर एक स्थानीय सक्शन बनाया जाता है। चिकित्सकों का मानना है कि इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और उपचार में मदद मिलती है। सक्शन में गर्मी (आग) या यांत्रिक उपकरणों (हाथ या बिजली के पंप) का उपयोग कर किया जाता है। एक तरह से देखा जाए तो कपिंग मसाज का प्रतिलोम है, इसमें मांसपेशियों पर दबाव डालने की जगह सक्शन त्वचा, ऊतकों और मांसपेशियों को ऊपर की और खींचने के लिए दबाव का उपयोग करते हैं। तो चलिये विस्तार से जानें कि कपिंग थेरेपी क्या है, इसके कितने प्रकार हैं और इससे क्या फायदे हैं। -
कपिंग थेरेपी के तरीके
मोटे तौर पर कपिंग के दो प्रकार के होते हैं, ड्राई कपिंग और ब्लीडिंग या वैट कपिंग। इसमें से वेट कपिंग ज्यादा प्रचलित है। ब्रिटिश कपिंग सोसाइटी (BCS) में कपिंग की दोनों ही विधियां सिखाई जाती हैं। सामान्यतौर पर वैट कपिंग उपचारात्मक व चिकित्सीय दृष्टिकोण पर आधआरित होती है और ड्राई कपिंग चिकित्सीय तथा आराम पहुंचाने वाली पद्धति पर काम करती है। दरसल इसको लेकर पसंद चिकित्सकों और संस्कृतियों के साथ अलग भी होती है।
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ड्राई कपिंग
कपिंग प्रक्रिया में आमतौर पर त्वचा के बगल में कम हवा के दबाव के एक छोटे से क्षेत्र का निर्माण शामिल होता है। हालांकि इसमें कई तरह के उपकरणों, कम दबाव बनाने की विधि आदि प्रक्रियाओं का भी उपचार के दौरान इस्तेमाल किया जाता है। कप गेंदों या घंटी सहित विभिन्न आकार हो सकते हैं तथा 1 से 3 इंच (25-76 मिमी) तक आकार में हो सकते हैं। पहले के समय की तुलना में सींग, मिट्टी के बर्तन, पीतल और बांस की जगह अब प्लास्टिक और कांच के कपों का ही अधिक इस्तेमाल किया जाता है। कम हवा वाला दबाव बनाने के लिये कप को गर्म कर या कप के अंदर मौजूद हवा व लौ की मदद लेकर या फिर कपों को गर्म सुगंधित तेलों में डुबाकर त्वचा पर लगाया जाता है। और जैसे जैसे कप के अंदर मौजूद हवा ठंडी होती है, यह त्वचा को सिकोड़ती है और थोड़ा अंदर की ओर खींच लेती है। अब तो वैक्यूम को एक यांत्रिक सक्शन पंप की, जोकि कप के ऊपर स्थित एक वाल्व की मदद से भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा रबड़ कप भी उपलब्ध हैं।
इसे करने पर कप सामान्य रूप से नरम ऊतक पर ही इस्तेमाल किये जाते हैं। उपचार के आधार पर कप को हटाने के बाद इसके निशान भी रह जाते हैं। यह साधारण लाल रंग के छल्ले की तरह जोते हैं जो जल्दी ही दूर भी हो जाते हैं।
इसके अलावा फायर कपिंग भी की जाती है, जिसमें 70 प्रतिशत एल्कोहॉल में कॉटन बॉल को भिगोया जाता है और फिर इसे जलाकर कप की मदद से कपिंग थेरेपी की जाती है।
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वैट कपिंग (अल-हिजामा या मेडिसिनल ब्लीडिंग, Al-Hijamah or medicinal bleeding)
प्राचीन काल में ही कपिंग तकनीक अरब से चीन पहुंच गई, और फिर चीन में इसे काफी प्रसिद्धि भी मिली। इसके बाद न सिर्फ वहां के लोगों ने इसे अपनाया बल्कि इसे काफी उन्नत भी किया। फिर यह पद्धति चाइनीज मसाज के नाम से इंडोनेशिया, मलेशिया होता हुआ अमेरिका, यूरोप और अरब देशों में पहुंचा और फिर दोबारा से भारत में आई। अभी भारत से ज्यादा दूसरे मुल्कों में इसके केंद्र हैं। हिजामा याने कपिंग जिसे श्रृंग थेरेपी भी कहते हैं कमर दर्द, स्लिप डिस्क, सर्वाईकल डिस्क, पैरों की सूजन, सूनापन और झनझनाहट के लिए रामबाण थैरेपी बताई जाती है। यह भी बताया जा रहा है कि पहले दाईयां कुल्लड़ से दर्द दूर करने का उपचार करती थी, यह विधा उसी पर आधारित है।
कपिंग की मदद से कई स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाई जा सकती है, जैसे यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर करने में मदद करती है। यह न सिर्फ एक पारंपरिक चीनी चिकित्सा पद्धति है बल्कि इस इलाज को प्राचीन मिस्र, उत्तर अमेरिकी भारतीयों, यूनानियों द्वारा तथा अन्य एशियाई और यूरोपीय देशों में इस्तेमाल किया गया।
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