कैटेगरी: डिस्ट्रेस रिलीफ
परिचय: मुकेश हिसारिया
योगदान: मुकेश हिसारिया ने कोविड की वजह से मरने वाले 300 से भी अधिक लोगों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की।
नॉमिनेशन का कारण: मुकेश हिसारिया और इनकी संस्था ने कोविड की वजह से मरने वाले 300 से भी अधिक लोगों के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की थी।
मुकेश हिसारिया बिहार के पटना जिले के एक व्यवसायी हैं, जिनकी पहचान उनके बिजमैन होने से कहीं ज्यादा एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में है। वो पिछले कई सालों से थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए और ब्लड डोनेशन के लिए शिद्दत के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन जब देश में कोविड आया तब उन्होंने एक अलग तरह से लोगों की मदद करने का जिम्मा उठाया। मुकेश ने कोविड महामारी के दौरान मृत हुए ऐसे 300 से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार किया, जिनका कोई अपना नहीं था या जिनके अंतिम समय में अपनों ने उन्हें छोड़ दिया था। मुकेश बताते हैं कि थैलेसीमिया के बच्चों के लिए काम करना तो उनका पहला मिशन था ही, लेकिन कोविड के समय में जो भी गरीब बेसहारा उनसे किसी तरह की मदद की अपील करता, वो कर देते और यहीं से ये सिलसिला शुरू हुआ। मानवता के हित में किए गए मुकेश के इस काम के लिए उन्हें ओनलीमायहेल्थ की तरफ से डिस्ट्रेस रिलीफ कैटेगरी के लिए नॉमिनेट किया गया है। आइए जानते हैं मुकेश की कहानी।
इस प्रकार शुरू हुई यह कहानी
52 वर्ष के मुकेश हिसरिया 10 साल से भी अधिक वर्षों से समाज सेवा में कार्यरत हैं। अप्रैल 2020 में जब भारत में कोविड की पहली लहर आई तो उनके पास एक व्यक्ति की फोन कॉल आयी। जिनके पिता की मृत्यु कोविड 19 के कारण हो गई थी। मुकेश ये बताते हुए भावुक हो जाते हैं, "उस व्यक्ति ने बताया कि उसके 4 भाई पटना में ही रहते हैं और सभी उसके पिता के घर से 2 से 4 किलोमीटर की दूरी पर हैं, लेकिन उनमें से कोई भी उनका अंतिम संस्कार नहीं करना चाहता। इसलिए मुकेश ने उनके अंतिम संस्कार करने की तैयारी की और इस काम के लिए आगे आए और उनका अंतिम संस्कार कराया। इसके बाद मुकेश के पास आसपास के कुछ और लोगों और अस्पतालों से इसी तरह के काम के लिए कॉल आए और उन्होंने उनके लिए भी मृत शरीर का अंतिम संस्कार करा दिया। मुकेश के इस काम के बारे में किसी ने सोशल मीडिया पर डाल दिया और उसके बाद तो उनके पास लावारिस या परिवार के छोड़े हुए लोगों के अंतिम संस्कार कराने के लिए ढेर सारे कॉल आने लगे।
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व्यक्ति के धर्म के अनुसार पूरे विधि-विधान से कराते थे अंतिम संस्कार
जल्द ही इस काम में उनकी संस्था भी जुड़ गई और इन्होंने पास के दो श्मशान घाटों में जा कर देखा। यहां उन्होंने उन दुकानदारों से भी बात की जो अंतिम रस्मों के लिए सामान बेचते थे। यहां उन्होंने पंडित, मजदूर जो मृत शरीरों को उठाते थे, नाई और दो डोम जो अंतिम संस्कार की तैयारी कराते हैं से बात की। इन्होंने एक एंबुलेंस सेवा देने वाले व्यक्ति से भी बात की और कहा कि अगर कोविड के कारण मरे किसी ऐसे व्यक्ति के अंतिम संस्कार करने की नौबत आए, जिनकी अंतिम क्रिया करने को कोई उपलब्ध न हो, तो बेझिझक इनके पास कॉल करें। केवल इतना ही नहीं बल्कि इन्होंने आस-पास के दुकानदारों को भी संस्था या व्यक्ति जो कोई भी इस प्रकार की परेशानी में हो तो सहयोग करने के लिए बोला और बाद में उसका भुगतान भी किया।
इज्जत से आखिरी अलविदा देने में की हिसारिया ने मदद
हिसरिया ने ओनली माय हेल्थ को बताया कि इनका उद्देश्य मृतकों को सम्मान से आखिरी अलविदा कहना था। 2020 और 2021 के दौरान इस संस्था ने 300 से अधिक लोगों का अंतिम संस्कार किया। यह पूछे जाने पर कि इतने सारे लोगों ने अपने प्रियजनों का दाह संस्कार करने से मना क्यों कर दिया तो उन्होंने बताया कि वो लोग अपने खुद के लिए डर और सुरक्षा के लिए चिंतित थे। लेकिन फिर भी इन लोगों की अपने परिवार जनों का अंतिम संस्कार करने की नैतिक जिम्मेदारी थी। क्योंकि उन्होंने भी पूरी जिंदगी इनके लिए ही काम किया। इस स्थिति में पंडित, मजदूर, एंबुलेंस और वहां के दुकानदार सभी काम कर रहे थे। अगर यह सब इस स्थिति में काम कर रहे थे तो परिवार जन भी उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा ले सकते थे।
संक्रमण के डर से लोग अपनों की भी नहीं छूते थे लाश
लेकिन दूसरी लहर और भी ज्यादा तबाह कर देने वाली थी। लोग दूसरों को जूझता हुआ देख रहे थे और सोच रहे थे कि वह अगर उनके करीब गए तो उन्हें भी इसी स्थिति से गुजरना पड़ेगा। अपने अनुभव से हिसरिया बताते हैं कि मृत लोगों के अपार्टमेंट के पड़ोसी भी उनकी मदद करने को तैयार नहीं थे। वह लिफ्ट द्वारा इनकी डेड बॉडी को भी ले जाने की इजाजत नहीं दे रहे थे। इसके बाद हमने उन्हें समझाया कि अगर मृत शरीर वहीं रहेगा तो यह और अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। यह बात भी नहीं थी कि इन 300 लोगों के परिवार फाइनेंशियल रूप से बहुत कमजोर थे।
वीडियो कॉल से परिवार को करा देते थे अंतिम दर्शन
जैसे-जैसे इनके बारे में लोगों को पता चलता गया, इनके पास केवल भारत से ही नहीं बल्कि बाहर के देशों से भी फोन आने लगे। बहुत से लोगों ने दाह संस्कार करने से पहले एक बार उनके परिवार जन को दिखाने की अपील भी की। वह इस काम के लिए पैसे भी देते थे। लेकिन मुकेश हिसारिया ने पैसे लेने से मना कर दिया और वीडियो कॉल के माध्यम से मृत शरीर उन्हें दिखाया। इस संस्था ने मृतकों के परिवार के रीति रिवाजों के अनुसार मृत शरीरों का दाह संस्कार किया। यहां तक कि जब एक रिपोर्टर के पिता की मृत्यु हुई तो उन्होंने मुकेश हिसरिया को बताया कि अंतिम रिवाजों के दौरान एक सफेद कुर्ता पजामा, एक पैन और कुछ आम उनके साथ रख दें। जितना लोग हमें बता रहे थे और जितना हमसे हो रहा था हमने किया। उनके मुताबिक उनको पॉलिटिशन और ब्यूरोक्रेट से भी कॉल आ रही थीं।
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सभी की सुरक्षा का भी किया था इंतजाम
काफी मृत लोग आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों से थे, तो उनके परिवार वालों ने दाह संस्कार में आए खर्चों को दुकानदारों, पंडितों और बाकी लोगों को स्वयं ही भुगतान कर दिया। कोविड एक काफी संक्रामक बीमारी है इसलिए हमने गाड़ी में पीपीई किट हमेशा रखी और दाह संस्कार के बाद उन्हें डिस्पोज कर दिया। मुकेश के परिवार वालों को भी इनके द्वारा किए गए कामों का केवल 25% काम ही पता था।
थैलेसीमिया प्रभावित बच्चों के लिए कर रहे हैं बड़ा काम
इस काम के दौरान संस्था अपने पहले काम (थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की मदद करना) को नहीं भूली। लेकिन लॉक डाउन की वजह से बहुत से लोगों को एक दूसरे से संवाद स्थापित करने में दिक्कत महसूस हुई। इसलिए मुकेश ने एमपी विनय साहस्रबुधे से बात की। जिन्होंने तुरंत यह सर्कुलर जारी किया कि थैलेसीमिया से जूझ रहे लोगों को आने जाने से न रोका जाए। इस संस्था का अगला मिशन एक ब्लड बैंक स्थापित करना है। यह काम इसकी अंतिम स्टेज में है। उनके पास ब्लड डोनर्स की भी एक लंबी लिस्ट मौजूद है। लोगों को इस ब्लड बैंक की सुविधा प्राप्त करने के लिए केवल कुछ ही समय का इंतजार करने की जरूरत है।
कोविड के दौरान मुकेश के इस नेक काम की अगर आप सराहना करते हैं और इनसे थोड़े से भी प्रेरित होते हैं तो आप इन्हें आगे बढ़ाने के लिए और इनके द्वारा किए गए कामों को पहचान दिलवाने के लिए वोट दे सकते हैं। ताकि उनके यह प्रयास बिना संज्ञान में आये न रह सकें।