क्या आपको पता है कि आप रोज माइक्रोप्लास्टिक का न सिर्फ इस्तेमाल करते हैं बल्कि उसे खाते भी हैं?
नहीं??
अच्छा आपको ये तो पता होगा कि प्लास्टिक आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक है?
जी हां, हमारे दैनिक इस्तेमाल की तमाम चीजों जैसे साबुन, फेसवॉश, हैंडवॉश, स्क्रब और बॉडीवॉश में माइक्रोप्लास्टिक का जमकर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा खाने-पीने की चीजों जैसे- जौ, अंजीर, अखरोट, शहद, बियर, बोतलबंद पानी और न जाने कितनी सारी चीजों के सहारे आपके शरीर में काफी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक जाता रहता है। सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक आपके शरीर में सी-फूड्स यानि समुद्री खाने के सहारे जाता है।
आपको ये जानकर और भी ज्यादा हैरानी होगी कि स्कॉटलैंड की हैरियट वॉट यूनिवर्सिटी के एक शोध के मुताबिक आपके हर खाने के साथ कम से कम 100-200 की संख्या में बहुत छोटे प्लास्टिक के कण आपके शरीर में जाते हैं। इसी शोध के मुताबिक एक सामान्य व्यक्ति एक साल में 13,731 से 68,415 प्लास्टिक के कणों को रोज के आहार के साथ खाता है।
अब आप सोच रहे हैं कि इतनी ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक के कण जब आपके शरीर में जाते हैं, तो इससे आपके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? तो आइये हम आपको बताते हैं।
शरीर पर माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव
आप ये तो जानते होंगे कि प्लास्टिक को आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है। मिट्टी के नीचे दबे होने के बाद भी इन्हें नष्ट होने में हजारों साल लग जाते हैं। ऐसे में आपका पेट इसे भला कैसे पचा पाएगा? इन माइक्रोप्लास्टिक्स का आपके शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। दरअसल प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिेए थैलेट्स नाम के केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। ये केमिकल इंसानों में ब्रेस्ट कैंसर का एक प्रमुख कारण है।
इसके अलावा इन माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव आपके लिवर, किडनी और आंतों पर भी पड़ता है। दिमाग पर भी इन माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव देखा गया है।
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कैसे करते हैं माइक्रोप्लास्टिक्स आपके शरीर को प्रभावित
खाने के साथ जब माइक्रोप्लास्टिक्स आपके शरीर में जाते हैं, तो ये आंतों में चिपक जाते हैं या खून में घुल जाते हैं। खून में घुलने के बाद ये माइक्रोप्लास्टिक्स खून के सहारे आपके शरीर के अलग-अलग अंगों तक पहुंचते हैं और वहीं जमा हो जाते हैं।
हवा में भी मौजूद होते हैं प्लास्टिक कण
प्लास्टिक के बहुत छोटे कण, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है, हवा में भी मौजूद होते हैं। हवा में मौजूद ये माइक्रोप्लास्टिक आपके सांसों के जरिए आपके फेफड़ों तक पहुंचते हैं और वहीं जमा हो जाते हैं। इन कणों के जमा होने से फेफड़ों में कई ऐसे केमिकल्स का निर्माण हो जाता है, जो फेफड़ों की सूजन के लिए जिम्मेदार बनते हैं।
किन स्रोतों से आपके शरीर में जाते हैं माइक्रोप्लास्टिक
मनुष्य ने प्लास्टिक का इस्तेमाल अपने हर काम के लिए इतना ज्यादा करना शुरू कर दिया है कि आज माइक्रोप्लास्टिक्स हर जगह और हर समय मौजूद हैं। हवा, पानी और आहार आदि सभी जगह इन प्लास्टिक कणों की भरमार है। ऐसे में इनके प्रभाव से बच पाना बहुत मुश्किल है या यूं कहें कि फिलहाल धरती पर तो असंभव है।
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कैसे कर सकते हैं खतरे को कम
आप माइक्रोप्लास्टिक से होने वाले प्रभावों से बच तो नहीं सकते हैं मगर इसको कम कर सकते हैं, ताकि कम उम्र में ये प्लास्टिक आपके स्वास्थ्य को न प्रभावित करें। इसके लिए
- प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें।
- पॉलीथीन का इस्तेमाल बिल्कुल बंद कर दें।
- प्लास्टिक की बोतलों में पानी पीना, प्लास्टिक के प्लेट में खाना खाना और प्लास्टिक के चम्मच से खाना खाना बंद कर आप स्टील के बर्तनों का प्रयोग कर सकते हैं।
- गर्म पेय जैसे चाय, कॉफी, सूप आदि को प्लास्टिक के कप या बर्तन में न पिएं।
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