कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के अनुवांशिक खतरे की जांच के लिए कराएं 'जेनेटिक टेस्टिंग', हृदय रोगों का खतरा होगा कम

कोलेस्ट्रॉल की समस्या मां-बाप से बच्चे में आ सकती है, क्योंकि ये अनुवांशिक बीमारी है। जेनेटिक टेस्टिंग के द्वारा आप अनुवांशिक हृदय रोगों का पता लगा सकते हैं। जानें क्या है ये जांच और कैसे बचें हार्ट अटैक से।
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कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के अनुवांशिक खतरे की जांच के लिए कराएं 'जेनेटिक टेस्टिंग', हृदय रोगों का खतरा होगा कम

युवाओं की जीवनशैली में होते परिवर्तन के कारण हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। जागरुकता एवं मेडिकल सहायता से इन रोगों की सही समय पर जांच करके रोकथाम की जा सकती है। शहरों में आजकल ज्यादातर लोग हर साल मेडिकल चेकअप करवाते हैं, हृदय रोग की संभावना को पहचानकर सही समय पर इसका इलाज कराया जा सके। आमतौर पर कार्डिएक केयर पैकेज में खून का लिपिड प्रोफाइल शामिल है, जिसमें कुल कोलेस्ट्रॉल, हाई डेंसिटी लीपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल-सी), लो डेंसिटी लीपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल-सी), ट्राईग्लिसराइड एवं वेरी लो डेंसिटी लीपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल (वीएलडीएल-सी) की जाँच होती है।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से हृदय रोगों का खतरा

कोलेस्ट्रॉल आहार से प्राप्त होता है और यह सामान्य सैलुलर कार्य करता है, लेकिन खून में इसकी मात्रा बढ़ने से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। हमारा लीवर भी कोलेस्ट्रॉल उत्पन्न करता है। बढ़े हुए एलडीएल-सी कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ने का एक सबसे आम कारण अनुवांशिक समस्या है, जिसे फैमिलियल हाइपरकोलेस्टेरोलीमिया (Familial hypercholesterolemia) कहते हैं।

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यह एलडीएलआर, पीसीएसके9 एवं एपोबी जीन्स में पैथोजेनिक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली आम एवं जानलेवा स्थिति है। इनमें से किसी भी जीन में म्यूटेशन क्षतिग्रस्त होने से कोलेस्ट्रॉल की मेटाबोलिज़्म बहुत खराब हो जाता है, जिससे खून में से एलडीएल-सी बाहर निकलना कम हो जाता है। खून में लंबे समय तक एलडीएल-सी कोलेस्ट्रॉल ज्यादा बने रहने से एथिरोस्क्लेरोसिस या फिर आर्टरीज़ में लिपिट जमा हो जाता है और उसके थक्के बन जाते हैं तथा ऑक्सीजनयुक्त खून की आपूर्ति कम हो जाती है। कोरोनरी आर्टरी में आर्टरी ब्लॉक होने का एक आम परिणाम कोरोनरी आर्टरी की बीमारी या फिर कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ है।

आसानी से हो सकता है कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का इलाज

Familial hypercholesterolemia (FH) का इलाज लिपिड लोअरिंग (Lipid Lowering Therapy)  थेरेपी के रूप में उपलब्ध है। लेकिन समस्या इसकी अंडरडायग्नोसिस की है। FH की डायग्नोसिस अनेक क्लिनिकल डायग्नोसिस मापदंडों पर आधारित है, जिसमें एलिवेटेड एलडीएल-सी लेवल, हाइपरकोलेस्टीरोलीमिया या हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास, शारीरिक जाँच के परिणाम शामिल हैं। यद्यपि फेनोटाइपिक ट्रेट्स द्वारा क्लिनिकल जाँच संभव है, लेकिन इस तरह की डायग्नोसिस क्वालिटेटिव होती है।

ज्यादा सटीक FH डायग्नोसिस के लिए जेनेटिक टेस्टिंग कराई जानी चाहिए। FH के लिए जेनेटिक टेस्टिंग उपलब्ध है और बहुत आसान है। इसमें खून की जाँच होती है, जिसमें तीन प्रमुख FH जीन्स में परिवर्तनों की जाँच की जाती है। फैमिलियल हाईपरकोलेस्टीरोलीमिया फाउंडेशन द्वारा भेजे गए एक्सपर्ट पैनल ने हाल ही में परामर्श दिया कि जिन मरीजों में पारिवारिक इतिहास और क्लिनिकल तत्वों के आधार पर FH के लिए निश्चित या संभावित डायग्नोसिस होती है, उनकी केयर के लिए जेनेटिक टेस्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए।

समय से जांच से हृदय रोगों का खतरा 80% तक कम

जेनेटिक टेस्टिंग जांचे गए व्यक्तियों में FH की संभावना की न केवल सटीक जाँच कर सकती है, बल्कि परिवार के सदस्यों में वैरिएंट्स के लिए कैस्केड स्क्रीनिंग उन्हें अनपेक्षित परिणामों से बचा भी सकती है। जेनेटिक टेस्टिंग द्वारा FH की समय पर पहचान दिल की समयपूर्व बीमारी की संभावना लगभग 80 प्रतिशत कम कर देती है। इसलिए इसका परामर्श हाल ही में FH फाउंडेशन द्वारा दिया गया। यह उन FH परिवारों और बच्चों की पहचान करने के लिए भी उपयोगी है, जिन्हें यह अदृश्य, जानलेवा, लेकिन आसानी से इलाज हो जाने वाली अनुवांशिक बीमारी है।

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सही जेनेटिक म्यूटेशन की समझ FH के इलाज की शुरुआत को समझने में मदद कर सकती है, ताकि हृदय रोग का खतरा कम हो जाए। दिल के लिए स्वस्थ आहार के साथ एक सेहतमंद जीवनशैली, नियमित व्यायाम, धूम्रपान का त्याग एवं वजन नियंत्रित रखकर कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रण में रखा जा सकता है। यद्यपि FH के मामले में लिपिड कम करने वाले एजेंट, स्टेटिन खून में लिपिड का स्तर कम करने तथा सेहतमंद जीवनशैली बनाए रखने के लिए जरूरी हैं।

युवाओं में बढ़ रहे हैं कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के मामले

हृदय रोग दुनिया में होने वाली मौतों का प्रमुख कारण है। हाल ही में भारत में युवा जनसंख्या के बीच सीवीडी में चौंकानेवाली वृद्धि हुई है। डिस्लिपिडीमिया सीवीडी की पैथोफिज़ियोलॉजी से जुड़ा है और स्वतंत्र संशोधनयोग्य जोखिम का कारण है। FH का डायग्नोसिस विस्तृत स्तर पर बहुत कम हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप इस बीमारी का इलाज भी बहुत कम हुआ है। इसलिए दुनिया में डायग्नोस्टिक स्क्रीनिंग की अत्यधिक आवश्यकता है, ताकि इस अत्यधिक जोखिम कारक स्थिति का समय पर प्रभावशाली इलाज किया जा सके।

भारत में शहरी सेटअप में 125 में से 1 से लेकर 450 में से 1 व्यक्ति के फैमिलियल हाइपरकोलेस्टीरोलीमिया से प्रभावित होने का अनुमान है। यदि FH के इन मामलों का इलाज नहीं होगा, तो ये कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ उत्पन्न कर सकते हैं और दिल के दौरे जैसी जानलेवा स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए एक जेनेटिक टेस्ट कराकर FH का इलाज कराना समझदारी है, ताकि इस स्थिति से उत्पन्न होने वाली जटिलताओं को रोका जा सके। प्रिवेंटिव हृदय रोग रिस्क पैकेज में FH के लिए जेनेटिक टेस्टिंग शामिल करने से लोगों में एक्यूट हृदय रोग की घटनाओं को प्रभावशाली तरीके से रोका जा सकेगा।

इनपुट्स- संघमित्रा मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, MedGenome

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