गेम खेलने की लत युवाओं में तेजी से बढ़ती जा रही है। PUBG, कैंडी क्रश, सबसे सर्फर, टेंपल रन आदि ऐसे गेम हैं, जिनका खुमार पिछले कई सालों से युवाओं पर सिर चढ़कर बोल रहा है। बाजार में Blue Whale जैसे कुछ ऐसे गेम्स भी आए थे, जिनसे युवाओं में आत्महत्या के मामले बढ़ गए थे। पिछले दिनों PUBG के कारण बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होने संबंधी मामले भी सामने आए। इन सभी को देखते हुए युनाइटेड नेशन्स स्थित विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी World Health Organnization (WHO) ने गेमिंग डिसऑर्डर को आधिकारिक रूप से बीमारी मान लिया है।
194 देशों की सहमति से 'गेमिंग' बनी बीमारी
WHO ने ये कदम सभी 194 सदस्त देशों की सहमति से उठाया है। इसका ड्राफ्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2017 में ही बना लिया था। जिसके बाद जून 2018 में 'गेमिंग डिसऑर्डर एडिक्शन' (ज्यादा गेम खेलने की लत) को 'तकनीकी संबंधी व्यवहारिक समस्याओं' की कैटेगरी में रखा था। इस कैटेगरी में पहले ही इंटरनेट, कंप्यूटर और स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल की आदत को रखा गया है। इस साल जब संगठन ने इस कैटेगरी को रिवाइज किया, तो गेमिंग की आदत को बीमारी की श्रेणी में डाल दिया गया है। हालांकि ये रिवीजन 1 जनवरी 2022 से लागू होगा।
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WHO ने क्या कहा?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस गेमिंग डिसऑर्डर को इस तरह परिभाषित किया है- "ऑफलाइन या ऑनलाइन लगातार गेम खेलने की लत, जिस पर स्वयं नियंत्रण करना मुश्किल हो, जिससे व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो और उसके स्वास्थ्य पर नकारात्मक परिणाम दिखे, गेमिंग डिसऑर्डर कहलाएगा।"
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गेमिंग इंडस्ट्री ने WHO से की अपील
ग्लोबल वीडियो गेम इंडस्ट्री ने WHO से अपने फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है। इस अपील में यूरोप, यूएस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, साउथ कोरिया, साउथ अफ्रीका और ब्राजील की तमाम वीडियो गेम कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हैं। गेमिंग इंडस्ट्री के स्टेटमेंट में कहा गया है कि, "WHO एक सम्मानित संस्था है। इसलिए इसके निर्देश प्रायोगिक और व्यवहारिक होने चाहिए। इसके लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों की राय ली जा सकती है।"
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