अस्थमा रोग आम तौर पर एलर्जी से संबधित बीमारी है। वातावरण में धूल, धुएं आदि के कण सांस लेने के साथ ही सांस नली में पहुंच जाते हैं। इससे सांस लेने में दिक्कत आती है। जो धीरे-धीरे अस्थमा का रूप ले लेती है। इसी को ध्यान में रखते हुए हर साल मई के पहले मंगलवार को 'वर्ल्ड अस्थमा डे' मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य अस्थमा से प्रभावित लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर दिन करीब 1000 लोगों की मौत अस्थमा के कारण हो जाती है। दुनियाभर में 33.9 करोड़ से अधिक लोग अस्थमा रोग से प्रभावित है। जिनमें से भारत में 2 से 3 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित है।
गुरूग्राम स्थित नारायणा सुपर स्पेशेलिटी अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के एचओडी एंड डारेक्टर डॉ सतीश कौल बताते है, ''अस्थमा के मरीजों सांस की नली में सूजन आ जाता है, जिससे सांस की नली सिकुड़ जाती है, जिसके कारण उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगती है। भारत में लगातार अस्थमा के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है, यहां लगभग दो से तीन करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित है। इससे बचने के लिए सबसे पहले यह पहचानना जरूरी है कि आप में दिखने वाले लक्षण दमा के है या नहीं। क्योंकि हर बार सांस फूलना अस्थमा नहीं होता है, लेकिन अगर किसी को अस्थमा है तो उसकी सांस जरूर फूलती है। अस्थमा के रोगियों में सांस फूलना, सांस लेते समय सीटी की आवाज आना, लम्बें समय तक खांसी आना, सीने में दर्द की शिकायत होना और सीने में जकड़न होना आदि लक्षण दिखाई देते है। इस रोग की सही पहचान के लिए पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट अनिवार्य है।''
इसे भी पढ़ेंः मधुमेह, उच्च रक्तचाप के मरीजों में लिवर की बीमारी का खतरा ज्यादा, ऐसे करें देखभाल
क्यों होता है अस्थमा
सभी आयु वर्ग के लोग अस्थमा की बीमारी के शिकार हो रहे है। जिसका मुख्य कारण खराब दिनचर्या, खान-पान का ठीक ना होना और अस्थमा के प्रति जागरूकता की कमी है। भारत में 20 प्रतिशत ऐसे मरीज हैं, जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। अस्थमा से पीड़ित लोग ठीक से सांस नहीं ले पाते या मुंह से सांस लेते हैं। अस्थमा से पीड़ित मरीजों के सांस की नलियों में सूजन हो जाती है, जिससे नलियां सिकुड़ जाती है और मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है। इसके साथ ही प्रदूषण, तापमान में एकाएक बदलाव, एलर्जी, स्मोकिंग, धूल और धुएं के ज्यादा सम्पर्क में रहने से अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है। यह बीमारी घर में धूल या पालतू जानवरों से एलर्जी होने के कारण भी बढ़ रही है।
टॉप स्टोरीज़
अस्थमा के कारण
प्रदूषणः आजकल देश में बढ़ता प्रदूषण भी अस्थमा होने के मुख्य कारणों में शामिल है। प्रदूषण के कारण दूषित हवा जब हमारे फेफड़ों में पहुंचती है तो इससे सांस लेने में परेशनी होने लगती है। इससे बचने के लिए बाहर निकलते समय अच्छी गुणवत्ता वाले मास्क का प्रयोग करे अपने मुंह को ढककर रखें।
वायरल इंफेक्शनः अगर आप बार-बार सर्दी, बुखार से परेशान है, तो यह एलर्जी का संकेत हो सकता है। अस्थमा की शुरुआत वायरल इंफेक्शन से ही होती है। इससे बचने के लिए संतुलित जीवनशैली अपनाएं और सही समय पर डॉक्टर से इलाज कराएं।
अस्थमा के प्रकार
एलर्जिक अस्थमाः यदि आपको धूल-मिट्टी के संम्पर्क में आने से सांस लेने में किसी प्रकार की तकलीप महसूस होती है तो उसे एलर्जिक अस्थमा कहते है।
नॉनएलर्जिक अस्थमाः जब आप बहुत अधिक तनाव में हो और आपको अचानक सर्दी लगने लगें या खांसी-जुकाम हो जाए, यह नॉनएलर्जिक अस्थमा के कारण होता है।
एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमाः कई लोग अधिक एक्सरसाइज और शारीरिक गतिविधि के कारण भी अस्थमा के शिकार हो जाते है।
ऑक्यूपेशनल अस्थमाः इस प्रकार के अस्थमा के अटैक अचानक काम के दौरान पड़ता है। नियमित रूप से लगातार आप एक ही तरह के काम करते है तो अक्सर आपको इस दौरान अटैक पड़ने लगते है, इसे ऑक्यूपेशनल अस्थमा कहते हैं।
चाइल्ड ऑनसेट अस्थमाः इस प्रकार का अस्थमा सिर्फ बच्चों को ही होता है। अस्थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, इस प्रकार के अस्थमा से अपने आप ही बाहर आने लगता है। यह अस्थमा गंभीर नहीं होता और उचित समय पर इलाज कराकर बच्चे को इससे बचाया जा सकता है।
वयस्क उम्र में अस्थमा की चपेट में आने वाले लोगों और गैर-एलर्जी अस्थमा पीड़ितों में मोटापे का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। छोटे बच्चों में डर और स्ट्रेस का बढ़ता स्तर उन्हें अस्थमा की ओर ले जाता है। स्ट्रेस की वजह से हार्मोन में गड़बड़ी हो जाती है, जिसकी वजह से मनुष्य के फेफड़े व श्वास तंत्र की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कतें होती है।
इसे भी पढ़ेंः गर्मी में सांस के मरीजों की लापरवाही बन सकती है अस्थमा अटैक का कारण, जानें कैसे
नोएडा स्थित जेपी अस्पताल में रेस्पेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. ज्ञानेन्द्र अग्रवाल ने कहा,'' गर्भावस्था के दौरान अस्थमा का अटैक किसी भी महिला के लिए गंभीर स्थिति होती है। इसलिए महिलाओं को गर्भावस्था की शुरुआत में ही अस्थमा की जांच करा लेनी चाहिए। उचित समय पर अस्थमा का इलाज न किया जाए तो महिला और होने वाले बच्चे दोनों की जान खतरे में पड़ सकती है। एक स्टडी के अनुसार 10 प्रतिशत अस्थमा पीड़ित महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में सामान्य महिलाओं की तुलना में ज्यादा समय लगता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को उच्च रक्तचाप की समस्या और यूरिन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। इसके साथ ही भ्रूण को ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। इसके लिए महिलाओं को अपनी अस्थमा के दवाएं लेती रहनी चाहिए और लगातार डॉक्टर के सम्पर्क में रहना चाहिए। इसके साथ गर्भावस्था के दौरान धूल, मिट्टी, धुंआ और दुर्गध आदि एलर्जी वाली चीजो से दूर रहना चाहिए।
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसलटेंट डॉ. अनिमेष आर्य ने अस्थमा के लक्षणों के बारे में बताया।
- छाती में तनाव होना
- सांस फूलना
- सांस से सीटी जैसी आवाज आना
- सीने में जकड़न
- बार-बार जुकाम होना
- लम्बे समय से खांसी आना
- सीने में दर्द की शिकायत होना
- थकान महसूस होना
- होंठ नीले पड़ना
- नाखूनों का पीला पड़ना
अस्थमा का इलाज
वैसे तो अस्थमा का कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। किसी प्रकार के लक्षण महसूस होने पर तुरन्त सम्पर्क करें। अस्थमा को नियंत्रित करने में दवा का नियमित सेवन जरूरी है। इसके अलावा इंहेलर थेरेपी सही ढंग से लेना भी जरूरी है। अस्थमा के लिए इंहेलर्स सबसे अच्छी दवा है। इंहेलर्स से दवा सीधे फेफड़ों में पहुंचती है, जिससे पीड़ित को आराम महसूस होता है। यह सीरप के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद है। इससे बीमारी को नियंत्रित करने और पीड़ित को अटैक से बचाने तथा उसके फेफड़ों को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। इनहेल्ड दवाओं के प्रति कम स्वीकृति के कारण दमा के मरीजों का इलाज ओरल टेबलेट और इंजेक्शन से भी किया जाता है।
इसके साथ ही पीकलो मीटर जैसे सरल उपकरण अस्थमा का पता लगाने और इस पर निगरानी रखने के लिये उपलब्ध हैं। अधिकांश लोग बार-बार होने वाली कफिंग, सांस लेने में तकलीफ और छींक आने जैसे लक्षणों का उपचार स्वंय ही करने लगते है, जिससे उनकी परेशानी और अधिक बढ़ जाती है। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के किसी प्रकार की दवा नही लेनी चाहिए। अस्थमा में खासतौर पर फेफड़ो की जांच की जाती है, जिसके अंतर्गत स्पायरोमेट्री, पीक फ्लो से जांच की जाती है। अस्थमा के निदान के लिए इसके अतिरिक्त मेथाकोलिन चैलेंज, नाइट्रीक ऑक्साइड, इमेजिंग टेस्ट, एलर्जी टेस्टिंग, स्प्यूटम ईयोसिनोफिल्स टेस्ट किया जाता है।
धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी सीनियर कंसलटेंट डॉ. नवनीत सूद ने बताया कि इंहेलर के गलत प्रयोग से कैंसर हो सकता है। उन्होंने कहा कि अस्थमा से पीड़ित अधिकांश व्यक्ति को इंहेलर प्रयोग करने से फायदा नहीं मिल पाता, जिसका कारण इंहेलर का गलत तरीके से प्रयोग करना होता है। इंहेलर का सही ढ़ंग से प्रयोग ना करने पर दवा के कण सांस की नली में नहीं पहुंच पाते, जिससे दवा गले में ही रह जाती है, इससे मरीज को आराम नहीं मिल पाता है।
एक रिसर्च के अनुसार इंहेलर के गलत इस्तेमाल के कारण गले में दवा के कण इकट्ठे होने से गले के कैंसर होने का खतरा भी होता है। इसलिए इंहेलर इस्तेमाल करने का सही तरीका हमेशा डॉक्टर से चेक कराते रहें, जिससे अस्थमा को नियंत्रित करने में मदद मिल सकें।
कैसे करे इंहेलर का सही प्रयोग
अस्थमा को नियंत्रित करने में इंहेलर काफी मददगार होता है, लेकिन इसके लिए इंहेलर का सही ढंग से प्रयोग करना जरूरी है। अस्थमा के पीड़ितों को इंहेलर का प्रयोग करते समय तुरन्त मुंह नही खोलना चाहिए, जिससे दवा के कण सीधे फेफड़ों में पहुंच सकें।
अस्थमा से बचाव के उपाय
- अस्थमा के मरीजों को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इन्हें दूध या दूध से बने किसी भी पदार्थ का सेवन नही करना चाहिए।
- अस्थमा के मरीजों को मौसम बदलने के साथ ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
- यदि आप डायबिटीज से पीड़ित है और आपको अस्थमा की परेशानी है तो आपको अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- अस्थमा के मरीजों को अपनी दवा का इस्तेमाल समय पर करना चाहिए, कभी दवा छोड़ना नही चाहिए।
- घर की सफाई के दौरान घर से बाहर ही रहें।
- केमिकल युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन नही करना चाहिए।
- धूल-धुंआ और धूम्रपान से बचकर रहना चाहिए।
- योग और मेडिटेशन की मदद से भी अस्थमा से बचा जा सकता है, लेकिन कोई भी योग करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें, क्योंकि ज्यादा योग भी अस्थमा का कारण बन सकता है।
- सर्दी-जुकाम और गले में खराश की समस्या होने पर तुरन्त डॉक्टर से उपचार कराएं।
- पालतू जानवरों जैसे कुत्ता, बिल्ली के संपर्क से दूर रहें।
Read More Articles On Other Diseases In Hindi