यदि बच्चों में जोड़ों के दर्द की समस्या हो, तो उसे नजरअंदाज ना करें। क्योंकि में जोड़ो में दर्द कही समस्या के कई कारण हो सकते हैैं, जिसमें कि हड्डियों का फ्रेक्चर, गुम चोट और जुवेनाइल अर्थराइटिस भी शामिल हो सकता है। वैसे आम तौर पर अर्थराइटिस बुजुर्गो की बीमारी मानी जाती है। लेकिन अर्थराइटिस अर्थात गठिया से बच्चे भी पीडित हो सकते हैं। चिकित्सकों की सलाह है कि अगर बच्चे लगातार जोडों के दर्द की शिकायत करें, तो उनके दर्द की उपेक्षा न करें और समय रहते उनका उपचार कराएं। आइए हम आपको बताते हैैं, बच्चों में जुवेनाइल अर्थराइटिस के संकेत व बचाव के तरीके
बच्चों में अर्थराइटिस के खतरे के बारे में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. राजू वैश्य ने बताया कि बच्चों के जोडों के दर्द की अभिभावकों को उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। डॉ. वैश्य ने बताया, 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भी अर्थराइटिस हो सकती है, जो जुवेनाइल क्रॉनिक अर्थराइटिस कहलाता है। बच्चों को अगर जोडों के दर्द की समस्या हो तो इसे आम तौर पर बहाना मान लिया जाता है। अभिभावकों को बच्चों के जोडों के दर्द को भी गंभीरता से लेना जरूरी है।
डॉ. वैश्य ने बताया बच्चों के प्रतिरक्षा तंत्र में खराबी के कारण यह बीमारी होती है। इसका वास्तविक कारण पता नहीं चल सका है, इसलिए इस बीमारी का निवारण भी कठिन है। अभिभावकों को चाहिए कि अगर बच्चे ऐसी कोई शिकायत करें तो उन्हें फौरन चिकित्सक के पास ले जाएं। उनका कहना था कि अर्थराइटिस का सबसे सामान्य प्रकार र्यूमैटाइड अर्थराइटिस न केवल उम्रदराज लोगों, बल्कि बच्चों में भी जोडों के अलावा हृदय, फेफडे और गुर्दो को प्रभावित कर सकता है।
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अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. पी.के. राय ने बताया कि लडकियां, लडकों से ज्यादा इस रोग से प्रभावित होती हैं। डॉ. राय ने बताया, इस बीमारी का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि यह दूसरी बीमारियों की तरह किसी खास प्रकार के भोजन या लाइफस्टाइल के कारण नहीं होता। बच्चों में प्रतिरक्षा तंत्र में आनुवांशिक गडबडी के कारण इस रोग के लक्षण दिखते हैं। इस बीमारी का उपचार पूछने पर डॉ. राय ने बताया, सही समय पर बच्चों का इलाज करने पर इसका असर आंशिक तौर पर कम किया जा सकता है, लेकिन एक बार रोग की तीव्रता बढ जाने पर इसमें जॉइंट रिप्लेसमेंट का सहारा लेना पडता है।
कारण
जब शरीर की प्रतिरोधी क्षमता इसकी अपनी ही कोशिकाओं और ऊतकों को नुकसान पहुंचाने लगती है, तब यह स्थिति उत्पन्न होती है। हालांकि इसका सही कारण पता नहीं लग पाया है, पर आनुवंशिक और वातावरण दोनों के कारण यह हो सकता है। कुछ जीन के बदलाव के कारण शरीर पर्यावरणीय बाहरी कारकों जैसे वायरस आदि के संपर्क में जल्दी आने लगता है।
फीजियोथेरेपी की मदद लें
फिजियोथेरेपी से जोड़ों का लचीलापन तथा कोशिकाओं की गतिशीलता बनाए रखने में मदद मिलती है। फिजिकल थेरेपिस्ट या ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट द्वारा कुछ एक्सरसाइज करायी जाती हैं, साथ ही समस्या को दूर करने के लिए विभिन्न उपकरणों की मदद भी ली जाती है। यदि स्थिति गंभीर नहीं है तब भी फिजियो-थेरेपिस्ट लंबे समय तक एक्सरसाइज करने की सलाह दे सकते हैं।
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सर्जरी की जरूरत कब होती है
जब बच्चों में जोड़ों के दर्द की समस्या बहुत गंभीर हो जाती है तो सजर्री की जरूरत पड़ती है। जोड़ों की स्थिति में सुधार करने के लिए सजर्री की मदद ली जाती है। आमतौर पर चिकित्सक शुरुआत से ही बच्चों में जोड़ों के तकलीफ संबंधी लक्षणों को नजरअंदाज न करने की सलाह देते हैं। यदि किसी बच्चे को दर्द है तो ऐसी स्थिति में बच्चों को बहुत अधिक गतिविधियां करने से रोकना चाहिए, अन्यथा जोड़ों में सूजन की समस्या बढ़ सकती है। इसी तरह जोड़ों में गर्माहट देकर भी जोड़ों की अकड़न को रोकने में मदद मिल सकती है। ऐसी स्थिति में बच्चे को जितनी जरूरत व्यायाम की होती है, उतनी ही जरूरत आराम करने की भी होती है।
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