
ऐसा माना जाता है कि बच्चों को उनके बचपन में स्वस्थ खानपान की आदतों को अपनाना सिकाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है, कि आप जैसे बच्चे को आदत डालवाते हैं, वह उसे अपनाते हुए आगे बढ़ता है। अब आप देख लीजिए, यदि कोई माता-पिता बच्चों उनके बचपन में जंक या फास्ट फूड खाने की आदत डालता है, तो बच्चा आगे चलकर उन्हीं आदतों को अपनाता है। जिसके कारण वह पौष्टिक खाने को कम और अनहेल्दी स्नैक्स को ज्यादा खाता है। यही वजह है कि बचपन से ही स्वस्थ खानपान की आदतों को अपनाना बहुत जरूरी है। यह उन्हें अपने जीवन के आने वाले समय में अच्छे और हेल्दी डाइट पैर्टन को बनाए रखने में मदद करता है।
इन दिनों, बच्चों का जंक फूड्स खाने की ओर अधिक झुकाव होता है, जैसे फास्ट फूड, रेडी-टू-ईट प्रोसेस्ड फूड्स आदि। ऐसे में जब आप उन्हें कुछ भी स्वस्थ खिलाने की कोशिश करते हैं, तो वे मुंह बनाने लगते हैं। यही कारण है कि माताएं अपने बच्चों को बड़े होने के साथ ही स्वस्थ, घर का बना खाना खाने के लिए संघर्ष करती रहती हैं। क्योंकि पौष्टिक और स्वस्थ खाना न खाने से उन्हें कई पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जो उनके विकास को बाधित करते हैं। एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि शुरुआती वर्षों यानि बचपन में ताजे फल और फलों के रस पीने से बच्चों को अच्छी खाने की आदतों को बनाए रखने में मदद मिलती है।
बचपन में फ्रूट जूस और हेल्दी डाइट पैर्टन के बीच लिंक
हेल्द जर्नल बीएमसी न्यूट्रिशन में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि बचपन में 100% ताजे फलों का रस पीने से बच्चों को किशोरावस्था में अपने फलों का सेवन बनाए रखने में मदद मिलती है। बोस्टन विश्वविद्यालय से और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. लिन एल मूर के शब्दों में,, "हम जानते हैं कि पूरे फल का सेवन, साथ ही आहार की गुणवत्ता में आमतौर पर किशोरावस्था के दौरान गिरावट आती है। इस शोध से पता चलता है कि जो 100% फलों के रस या इम्यूनिटी-बूस्टिंग होममेड जूस पीते हैं यानि लगभग 1.5 कप का सेवन करते हैं, वह आगे चलकर अपने किशोरावस्था में स्वस्थ आहार को बनाए रखते हैं, बजाय उन बच्चों की तुलना में अपने बचपन के दिनों में आधा कप या उससे भी कम जूस पीते हैं। इसके अलावा, दस साल से अधिक समय तक, इन बच्चों द्वारा आमतौर पर सेवन की जाने वाली सीमा के भीतर जूस की खपत (1-2 कप प्रति दिन) बचपन के समय अतिरिक्त वजन बढ़ने से जुड़ी नहीं थी। "
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3-6 वर्ष के बीच के 100 बच्चों पर किया गया अध्ययन
फ्रामिंघम चिल्ड्रन स्टडी के सहयोग से बोस्टन विश्वविद्यालय के डॉ. मूर और उनकी टीम ने यह शोध किया, जिसमें उन्होंने 3-6 वर्ष के बीच की आयु के लगभग 100 प्रीस्कूलर बच्चों के डाइट रिकॉर्ड पर नज़र रखी। उन्होंने अपनी ऊंचाई और वजन के आंकड़ों के साथ अमेरिकियों (डीजीए) के लिए आहार दिशानिर्देशों के अनुसार अपने फलों की खपत का आकलन किया। इस अध्ययन में बचपन के शुरुआती वर्षों में अधिक फलों के रस या जूस का सेवन करने वाले प्रीस्कूल के समय में भी पूरे फल खाते थे और किशोरावस्था में पूरे उतने ही फल का सेवन करते रहे।
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अध्ययन के निष्कर्ष
अध्ययन के निष्कर्ष में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन प्रीस्कूलरों ने प्रतिदिन एक गिलास या कप फलों के रस पिया, उनमें फलों के रस का सेवन कम करने वालों की तुलना में किशोरावस्था में उच्च मात्रा में फलों का सेवन पाया गया। इसके अलावा, अधिक फलों के रस या जूस के सेवन वाले बच्चों की आहार गुणवत्ता उन लोगों की तुलना में बेहतर थी, जो बचपन में कम फलों का जूस पीते थे।
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डॉ. मूर ने कहा, "फलों का सेवन, विशेष रूप से पूरे फलों का सेवन, जीवन भर कई स्वास्थ्य लाभों से जुड़ा है। बच्चों के प्रारंभिक वर्षों के दौरान फलों के जूस को नजरअंदाज करने से उनके खानपार की आदतों के विकास पर अनपेक्षित प्रभाव पड़ सकता है।"
"यह अध्ययन कई पिछले अध्ययनों के निष्कर्षों की पुष्टि करता है कि छोटे बच्चों में फलों का जूस पीने का सुझाव बेहतर आहार गुणवत्ता और पूरे फलों के हाई इंटेक्स को बढ़ावा दे सकता है। 100% फलों के रस का मॉडरेशन में सेवन बचपन पर किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के साथ नहीं थे।''
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