अगर आप रंगों को ठीक तरह नहीं पहचान पाते हैं या आपको एक ही चीज अलग-अलग रंगों में दिखाई देती है, तो हो सकता है आप कलर ब्लाइंडनेस का शिकार हों। कलर ब्लाइंडनेस कोई गंभीर बीमारी नहीं है मगर रंगों को पहचान न पाने के कारण व्यक्ति को कुछ असुविधाएं हो सकती हैं। ज्यादातर मामलों में कलर ब्लाइंडनेस की समस्या अनुवांशिक होती है, जबकि कुछ लोगों को एक उम्र के बाद ऐसी समस्या हो सकती है।
ज्यादातर अनुवांशिक कारण
ज्यादातर मामलों इस समस्या के लिए आनुवांशिक कारण ही जिम्मेदार होते हैं, जो कि जन्म के साथ ही दिखने लगते हैं। रंगों को पहचानने के लिए तीन कोन के प्रकार होते हैं - लाल, हरा और नीला। अगर जन्म के समय इन तीनों में किसी एक प्रकार के कोन की कमी हो गई तो रंगों को पहचानने में दिक्कत होती है।
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कई बीमारियां भी हो सकती हैं कारण
आनुवांशिक कारणों के अलावा भी कई अन्य कारणों से आंखों में रंगों को पहचानने की समस्या होती है। बढ़ती उम्र के कारण भी यह समस्या हो सकती है। आंखों की अन्य समस्या जैसे - ग्लूकोमा, डायबिटिक रेटीनोपैथी, जैसी बीमारियों के कारण भी वर्णान्धता की समस्या हो सकती है। आंखों में चोट और दवाओं के साइड इफेक्ट के कारण भी यह समस्या हो सकती है।
रंगीन कॉन्टैक्ट लेंस लगाना है अस्थाई इलाज
जिन मरीजों को कुछ खास रंगों को देखने में परेशानी होती है, चिकित्सक उन्हें रंगीन कॉन्टैक्ट लेंस लगा देते हैं। हालांकि लेंस बहुत कारगर इलाज नहीं हो सकते हैं क्योंकि ये कई बार आंखों को धुंधला बना देते हैं। जबकि कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें रंगीन लेंस लगाने के बाद दैनिक कामों में कुछ मदद मिल जाती है। इसके अलावा कॉन्टैक्ट लेंस अन्य इलाज से बहुत सस्ते पड़ते हैं इसलिए लोग इनका प्रयोग करते हैं।
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क्यों होता है कलर ब्लाइंडनेस
आंखें हमारे शरीर की सबसे जटिल ज्ञानेन्द्री हैं और जिन ऑक्यूलर कोशिकाओं द्वारा हम रंगों को पहचानते हैं उन्हें कोन्स कहा जाता है। प्रत्येक कोन से लगभग 100 रंगों को देखा जा सकता है। सामान्यतया लोगों में तीन तरह की कोन होती हैं जिन्हें ट्राइक्रोमैटिक कहते हैं। इसके विपरीत वर्णान्ध लोगों में दो ही तरह के कोन होते हैं जिन्हें डाइक्रोमैटिक कहा जाता है। इनमें जब दिक्कत होती है तब रंगों को पहचानना मुश्किल हो जाता है।
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