नवरात्रि (Navratri) के पावन दिन चल रहे हैं। देशभर में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले करोड़ों लोग इन दिनों उपवास रख रहे हैं और धर्म-कर्म में लगे हुए हैं। नवरात्रि की तरह ही ढेर सारे ऐसे उत्सव और पर्व भारत में लगभग सभी धर्मों और लोक परंपराओं में मनाए जाते रहे हैं, जिनमें लोग उपवास रखते हैं, जैसे- एकादशी व्रत, सावन के सोमवार, रमजान का महीना, पजूषन, करवाचौथ, कृष्ण जन्माष्टमी आदि। इन सभी को आप पारंपरिक उपवास (Traditional Fasting) की श्रेणी में रख सकते हैं। वहीं एक दूसरे तरह का उपवास भी पिछले कुछ सालों में पॉपुलर हुआ है, जो वजन घटाने (Weight Loss Fasting) के उद्देश्य से किया जाता है। दोनों ही तरह के उपवास में व्यक्ति सामान्य रूप से खानपान की आदतों को बदलता है और दिन के ज्यादातर समय भूखा रहता है। लेकिन इन दोनों में क्या अंतर है और पारंपरिक उपवास, आज कल के वेट लॉस फास्टिंग से कितना अलग है, बता रही हैं भारत की मशहूर सेलिब्रिटी डायटीशियन रुजुता दिवेकर।
क्या है दोनों तरह के उपवास में अंतर? (What is Difference Between Traditional Fasting and Weight Loss Fasting)
किसी भी धर्म में जो पारंपरिक उपवास रखा जाता है वो किसी दिव्य सत्ता के नजदीक जाने, उसे रिझाने के लिए किया जाता है। दूसरे नजरिये से देखें तो ये भोजन को दिव्य सत्ता के आशीर्वाद स्वरूप मानने जैसा है। इसलिए पारंपरिक उपवास में मुख्य रूप से लोग अन्न खाना छोड़ देते हैं और कुछ ऐसी चीजों का सेवन करना शुरू करते हैं, जो सामान्यतः वो नहीं खाते हैं।
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वहीं आजकल के वेट लॉस फास्टिंग में भूखा रहने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि शरीर में कैलोरीज कम जाएं, जिससे शरीर में मौजूद चर्बी बर्न हो और वजन घटने लगे। इसके लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent Fasting), OMAD डाइट आदि अपनाए जाते हैं।
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पारंपरिक उपवास और वेट लॉस फास्टिंग में क्या खाया जाता है? (Foods to Eat in Traditional Fasting and Weight Loss Fasting)
पारंपरिक उपवास में आमतौर पर लोग बहुत अलग-अलग तरह की चीजें खाते हैं। इसमें कुछ रेगुलर फूड्स को छोड़कर कुछ स्पेशल फूड्स खाए जाते हैं, जो लोग सामान्यतः साल में बहुत कम बार खाते हैं। कुछ उपवास ऐसे भी होते हैं, जिन्हें आनंद के लिए मनाया जाता है इसलिए नई-नई डिशेज बनाकर खाया जाता है जैसे- साबूदाना की खिचड़ी, कुट्टू की पूरी, सिंघाड़े की पूरी, सिंघाड़े का हलवा, राजगिरा का आटा आदि।
वहीं वजन घटाने वाली फास्टिंग के लिए डाइट का चुनाव करते समय इसके पोषक तत्वों को ध्यान में रखते हैं, जैसे- कार्ब्स, प्रोटीन, फैट, फाइबर आदि। आमतौर पर इसके लिए रेगुलर डाइट में से ही कुछ ऐसी चीजों को चुना जाता है, जो लाइट हों और हेल्दी हों, ताकि शरीर को पोषक तत्व भी मिलें और चर्बी भी ज्यादा बर्न हो।
किस आधार पर रखे जाते हैं दोनों तरह के उपवास?
आमतौर पर पारंपरिक उपवास लोग सीजन के अनुसार, चंद्रमा की गति के अनुसार, त्यौहारों के अनुसार, तिथि के अनुसार या स्थानीय उत्सवों के आधार पर रखते हैं। जबकि वजन घटाने के लिए उपवास रखने के सिर्फ 2 आधार हैं। पहला वजन घटाना और दूसरा शरीर को सही शेप में लाना। कई पारंपरिक उपवास में दिनभर खाने-पीने की छूट नहीं होती है, बल्कि किसी तय समय पर ही आप आहार ग्रहण कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ आजकल की वेट लॉस फास्टिंग में भी है, जिसमें व्यक्ति को दिन में 16 से 20 घंटे कुछ भी न खाने की इजाजत होती है।
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कुछ अन्य अंतर
पारंपरिक उपवास के लिए आपको बहुत अधिक अनुशासन का पालन करना पड़ता है क्योंकि इसमें आपका लक्ष्य शरीर को फायदा पहुंचाना नहीं बल्कि किसी दिव्य सत्ता को अपना प्रेम, त्याग और तपस्या दिखाना है। जबकि वेट लॉस फास्टिंग में बहुत ज्यादा अवरोध नहीं होते हैं।
पारंपरिक उपवास के बारे में आपको अपने घर के बड़े बुजुर्गों, आसपास के लोगों और धर्म गुरुओं से पता चलता है। वहीं वेट लॉस फास्टिंग के बारे में आप डायटीशियन, विज्ञापनों, लेखों और सोशल मीडिया आदि के द्वारा जान पाते हैं।
तो कुल मिलाकर हम ये कह सकते हैं कि वेट लॉस फास्टिंग और डाइट आदि जहां साल 2010 के बाद सामने आना शुरू हुईं और 2015 के बाद पॉपुलर होना शुरू हुईं, वहीं पारंपरिक उपवास के जरिए हजारों सालों से लोग निरोगी जीवन के लिए व्रत रखते रहे हैं। संभव है कि भारतीय परंपरा में जो व्रत और उपवास के दिन हैं, वो वैज्ञानिक आधार पर शरीर को डिटॉक्स करने, वजन घटाने, हार्मोन्स बैलेंस करने और शरीर को स्वस्थ रखने के लिहाज से बनाए गए होंगे।
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