कई लोग टॉयलेट साबुन को ही नहाने के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं। लेकिन ऐसा करना सही नहीं है। अच्छे गुणवत्ता वाले साबुन का टीएफएम लेवल ज्यादा होता है जबकि टॉयलेट साबुन का टीएफएम स्तर काफी कम होता है। साबुन में जितना ज्यादा टीएफएम लेवल होगा, साबुन की क्वॉलिटी उतनी बेहतर होगी। बाजार में मिलने वाले साबुनों में से बहुत कम को ही बॉथिंग सोप का दर्जा मिला हुआ है। इस लेख में हम आपको बताएंगे नहाने के साबुन और टॉयलेट सोप में अंतर और टॉयलेट सोप से नहाने के नुकसान। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के केयर इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज की एमडी फिजिशियन डॉ सीमा यादव से बात की।
बॉथिंंग सोप और टॉयलेट साबुन में अंतर
सामग्री के आधार पर नहाने के साबुन और टॉयलेट सोप में फर्क होता है। नहाने वाले साबुन में टीएफएम की वैल्यू 76 या उससे ज्यादा होनी चाहिए वहीं नहाने वाले साबुन ग्रेड 1 में आते हैं वहीं बाक सारे साबुन टॉयलेट साबुन की कैटेगरी में आती है। टीएफएम क्या है? टीएफएम का मतलब है टोटल फैटी मटेरियल (Total Fatty Material)। हर साबुन का टीएफएम, साबुन के पैकेट के पीछे लिखा होता है। साबुन का टीएफएम जितना ज्यादा होगा, उसकी गुणवत्ता उतनी अच्छी होगी।
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टॉयलेट साबुन से नहाने के नुकसान
आपको टॉयलेट वाले साबुन से नहाने से बचना चाहिए। ऐसे साबुनों में झाग बनाने के लिए सोडियम लारेल सल्फेट मिलाया जाता है। इसके इस्तेमाल से त्वचा में खुजली और दाद की समस्या बढ़ सकती है। रासायनिक साबुन के इस्तेमाल से आंखों को नुकसान पहुंचता है। कई साबुन में एनिमल फैट मिलाया जाता है इसलिए साबुन खरीदते समय आप रैपर को ध्यान से पढ़ें। अगर साबुन के पैकेट पर टैलो लिखा है, तो मतलब उसमें एनिमल फैट है।
- केमिकल्स से युक्त साबुन, अगर आंख में चला जाता है, तो तेज जलन और खुजली हो सकती है।
- टॉयलेट सोप से नहाने के कारण त्वचा के नैचुरल ऑयल्स निकल जाते हैं। इससे त्वचा का पीएच स्तर बिगड़ सकता है।
- त्वचा की नमी छिन सकती है और त्वचा ड्राई हो जाती है। साबुन में मौजूद केमिकल्स, आपकी त्वचा में रैशेज का कारण बन सकते हैं।
- साबुन में मौजूद ट्राइक्लोसन और ट्राइक्लोकार्बन जैसे केमिकल्स, त्वचा में एलर्जी की आशंका को बढ़ा देते हैं।
ग्रेड 2 में आते हैं टॉयलेट साबुन
गुणवत्ता की बात करें, तो टॉयलेट वाले साबुन को ग्रेड 2 की श्रेणी में रखा जाता है। इस साबुन में 65 से 75 प्रतिशत टीएफएम की मात्रा पाई जाती है। इस साबुन को टॉयलेट्स में हाथ धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कार्बोलिक साबुन की तुलना में, टॉयलेट साबुन से त्वचा को कम नुकसान पहुंचता है। कार्बोलिक साबुन को ग्रेड 3 की कैटेगरी में रखा गया है। इनमें 50 से 60 प्रतिशत TFM की मात्रा होती है। साबुन खरीदने से पहले पैकेट पर लिखी जानकारी को ठीक से पढ़ना चाहिए।
कैसे बनता है साबुन?
साबुन को बनाने के लिए फैटी एसिड, कास्टिक सोडा और पानी का इस्तेमाल किया जाता है। फैटी एसिड को नारियल, जैतून या ताड़ के पेड़ से निकाला जाता है। कुछ साबुन में फैटी एसिड, एनिमल चर्बी से लिया जाता है जिसे टैलो के नाम से जाना जाता है। टैलो से निकलने वाले फैटी एसिड ज्यादा सस्ते होते हैं। फैटी एसिड से सोडियम लौरेल सल्फेट बनता है जिससे झाग का निर्माण होता है।
अच्छा साबुन कैसे खरीदें?
गुणवत्ता के आधार पर नहाने वाले साबुन सबसे अच्छी क्वॉलिटी के होते हैं। ऐसे साबुन में टीएफएम की मात्रा 76 प्रतिशत से ज्यादा होती है। इसके इस्तेमाल से त्वचा को कम नुकसान पहुंचता है। इसलिए ऐसा साबुन खरीदें जिसकी टीएफएम मात्रा 76 या उससे ज्यादा हो।
अगली बार आप साबुन खरीदने जाएं, तो पैकेट पर लिखी जानकारी के आधार पर ही अपने लिए सबसे अच्छा साबुन खरीदें। लेख पसंद आया हो, तो शेयर करना न भूलें।
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