रीढ़ की हड्डी में दर्द और परेशानी का कारण बन सकती हैं ये 7 समस्याएं, जानें कैसे करें इन बीमारियों की पहचान

शरीर के किसी भी अंग में कोई समस्या उत्पन्न हो, तो उसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है। जानें रीढ़ की हड्डी और उससे जुड़ी परेशानियों के विषय में।

Monika Agarwal
Written by: Monika AgarwalUpdated at: Aug 18, 2020 16:26 IST
रीढ़ की हड्डी में दर्द और परेशानी का कारण बन सकती हैं ये 7 समस्याएं, जानें कैसे करें इन बीमारियों की पहचान

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अगर आप सीधे खड़े हो पाते हैं या बैठ पाते हैं तो इसमें आपकी रीढ़ की हड्डी का महत्वपूर्ण योगदान है। पीठ के सेंटर से वर्टिब्ररी नाम की छोटी हड्डियां गर्दन तक जाती हैं जिससे सिर, कंधों और शरीर के ऊपरी भाग को सपोर्ट मिलता है।  वर्टिब्ररी रीढ़ की हड्डी में एक सुरंग बनाती है। यह तंत्रिकाओं का समूह है जो आपके मस्तिष्क को आपके शरीर के अधिकांश भाग से जोड़ता है। अगर रीढ़ की हड्डी में कुछ परेशानी हो जाए तो कई सारी बीमारियां होने का खतरा मंडराता है। आइए डालतेते हैं, ऐसी ही कुछ बीमारियों पर नज़र।

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स्लिप डिस्क (Slipped Disk)

एक तकिये के शेप का डिस्क प्रत्येक वर्टिब्ररी के बीच मौजूद रहता है, जिससे इनके बीच रगड़न नहीं होती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यह डिस्क सूखने लग जाती है। अगर आप पीठ पर ज्यादा जोर दें तो यह डिस्क टूट सकती है। आपको भले ही अंदाजा ना लगे कि डिस्क क्षतिग्रस्त हो गई है लेकिन इससे आपके बाजुओं और पैरों में दर्द हो सकता है। साथ ही यह सुन्न पड़ जाते हैं। ऐसी अवस्था को स्लिप डिस्क कहते हैं। इससे छुटकारा दिलाने में एक्सरसाइज और पेन किलर्स सहायक होती हैं लेकिन स्थिति गंभीर होने पर ऑपरेशन ही इसका एक मात्र उपाय है।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (Cervical Spondylosis)

बैठने के गलत पॉश्चर की वजह से यह समस्या पनपती है। इससे गर्दन में स्थित हड्डियों में कड़ापन हो जाता है जिससे गर्दन और उसके आसपास की जगह जैसे कंधे, सिर में जकड़न और दर्द होने लगता है जो कि धीरे-धीरे हाथों तक पहुंच जाता है। लगातार स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या रहने से सेल्स परमानेंट डैमेज हो जाती हैं और बैठना मुश्किल हो जाता है।

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ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)

ऑस्टियोआर्थराइटिस से अकेले भारत में तकरीबन 3 करोड़ लोग प्रभावित हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिससे जोड़ों में इन्फ्लेमेशन बढ़ जाता है। इसमें हड्डियों के सिरों में मौजूद सुरक्षा कवच का क्षरण होने लगता है और धीरे-धीरे हड्डियों से सारी कुशनिंग हट जाती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस सबसे ज्यादा पीठ और घुटने की हड्डियों को प्रभावित करता है जिससे व्यक्ति का चलना और बैठना तक दूभर हो जाता है।

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साइटिका (Sciatica)

यह दर्द साइटिका नस में किसी परेशानी या सूजन के कारण पैदा होती है जिससे असहनीय दर्द होता है। साइटिका नस कूल्हे से लेकर पैर के पिछले हिस्से से होते हुए एड़ी तक जाती है जिससे शरीर के निचले हिस्से में काफी दर्द होता है। इसमें गर्म पानी, ठंडे पानी की सिकाई, स्ट्रेचिंग और पेनकिलर्स लेने से आराम मिलता है लेकिन समस्या बढ़ने पर डॉक्टर से संपर्क करने में ही समझदारी है।

ट्यूमर (Tumor)

कभी-कभी, कैंसर उस जगह से फैलता है जहां यह आपकी रीढ़ में एक नई ग्रोथ करने लगता है। फेफड़े, स्तन, प्रोस्टेट और हड्डी के कैंसर के रीढ़ से तक जाने की अधिक संभावना होती है। कई नॉन-कैंसर स्थितियां रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर को भी जन्म दे सकती हैं। आपके बैक में चोट लग सकती है और पूरे शरीर में भयानक दर्द हो सकता है। बाहों और पैरों में सुन्नपन आ जाता है और यह कमजोर होने लगते हैं। शरीर का कुछ हिस्सा पैरालाइज भी हो सकता है। रीढ़ के हड्डी के ट्यूमर से बचने के लिए डॉक्टर सर्जरी, रेडिएशन या कीमोथेरेपी करवाने की सलाह देते हैं।

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स्कोलियोसिस(Scoliosis)

स्कोलियोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें रीढ़ के आकार में परिवर्तन आ जाता है। सबसे आम प्रकार बच्चों को युवावस्था से पहले उनके विकास के दौरान प्रभावित करता है, जिससे रीढ़ की हड्डी झुक जाती है। यदि आपके बच्चे को स्कोलियोसिस है, तो उनके कंधे असमान हो सकते हैं, या एक कंधे का ब्लेड दूसरे की तुलना में अधिक चिपक सकता है। किसी को नहीं पता कि यह क्या कारण है। स्कोलियोसिस खराब हो सकता है और समस्याएं पैदा कर सकता है, लेकिन एक ब्रेस इसे रोकने में मदद कर सकता है और इसे ठीक करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता है।

रीढ़ के जोड़ों में रुकावट व सूजन(Ankylosing Spondylitis)

इस प्रकार का गठिया आमतौर पर पीठ के निचले हिस्से और कूल्हों को सख्त और खुरदरा बनाने लगता है, खासकर सुबह के समय। समय के साथ, यह  रीढ़ और अन्य जोड़ों और अंगों तक फैल सकता है। इस कारण शरीर के रिब केज में वर्टिब्ररी और हड्डियां फ्यूज हो सकती हैं। युवा पुरुषों में यह समस्या महिलाओं की तुलना में अधिक मिलती है और और यह पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकती है। व्यायाम और दवा के साथ प्रारंभिक उपचार इसकी गति को धीमा करने में मदद करते हैं।

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