नींद हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है। नींद की कमी या नींद से जुड़ी को भी समस्या एक व्यक्ति को कर्कश या इरिटेटे कर सकती है और इससे शारीरिक बीमारियों का सामना भी करना पड़ सकता है। बार-इलान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि नींद की गड़बड़ी मस्तिष्क के प्रदर्शन, उम्र बढ़ने और मस्तिष्क के विभिन्न विकारों को प्रभावित करती है। जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस ने इस अध्ययन को प्रकाशित किया। कोई बड़ा हो या बूढ़ा या कोई बच्चा और शिशु, सभी के लिए भी नींद महत्वपूर्ण है। एक अभिभावक के रूप में, आपको पता होना चाहिए कि उचित नींद की कमी के कारण आपके बच्चे को क्या- क्या समस्या हो सकती है। वहीं इस अध्ययन के अनुसार शिशुओं के विकास पर नींद की कमी का असर दिखता है। वो नींद की कमी के कारण बीमार हो सकते हैं। आइए जानते हैं शिशुओं में नींद से जुड़े विकार कैसे पैदा होते हैं।
नींद की कमी से बच्चे कमजोर होने लगते हैं
अमेरिकन फ्रेंड्स ऑफ तेलअवीव विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, एक कमजोर शिशु में नींद को लेकर कई समस्याएं पाई जाती हैं। इस अध्ययन में नींदऔर बच्चे के व्यवहार के बीच एक संबंध पाया गया है। ऐसे बच्चे स्वभाव से चिड़चाए हुए होते हैं। वहीं ऐसे बच्चों में विकास की भी कमी होती है। इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ऐसे बच्चे आगे चल कर मानसिक तौर भी बीमार हो सकते हैं। विकासात्मक तंत्रिका विज्ञान ने इस अध्ययन को प्रकाशित किया है। इसमें शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि एक साल के बच्चे जो नींद अच्छी नींद नहीं सो पाते, उनमें तीन से चार साल की उम्र में ध्यान केंद्रित करने और व्यवहार संबंधी समस्याओं का प्रदर्शन करने में मुश्किलें होती हैं।
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गर्भावस्था के दौरान शिशु की नींद में तकलीफ
मर्डोक चिल्ड्रेन्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि लगातार शिशु की नींद से जुड़ी समस्याएं गर्भावस्था के दौरान खराब मातृ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी हो सकती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि पहले वर्ष में कुछ बिंदुओं पर शिशु के साथ कठिनाइयों का अनुभव करना बहुत आम है, लगभग 60 प्रतिशत माताओं ने हल्के या उतार-चढ़ाव की समस्याओं देखी जाती है। लेकिन 20 प्रतिशत माताओं के लिए, उनके शिशुओं की नींद की समस्याएं पहले वर्ष के दौरान लगातार और गंभीर दोनों होती हैं। ऐसे बच्चों को कई सारी परेशानियां होती है, जैसे कि वो बाकी बच्चों से थोड़ा स्लो हो सकते हैं।
नींद की समस्या से ग्रस्त बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं
माता-पिता को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सोने हो रही वो कठिनाइयां वाले बच्चों को व्यवहार संबंधी समस्याओं का अनुभव 3 वर्ष की आयु से हो सकती है। नींद की प्रारंभिक समस्याएं व्यवहार संबंधी और भावनात्मक आत्म-नियमन के साथ बच्चों की कठिनाइयों का कारण और परिणाम दोनों हो सकती हैं, एक अन्य अध्ययन से पता चला है। अध्ययन में कहा गया है कि अपर्याप्त नींद के कारण दिन में नींद आना, चिड़चिड़ापन, अतिसक्रियता और ध्यान के मुद्दे हो सकते हैं। नींद में व्यवधान के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पैदा होती हैं, तो मनोरोग के लक्षण आगे चलकर भी उनके बाकी मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती हैं।
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ऐसे में मां-बाप क्या करें?
शिशु की नींद पर पहले दिन से ही ध्यान दें और जैसे ही कोई भी परेशानी लगे डॉक्टर से मिलें। इस अध्ययन ने 183 छोटे बच्चों के समूह में स्लीप ऑनसेट इंसोम्निया और नाइट वेकिंग इनसोम्निया सहित नैदानिक रूप से परिभाषित नींद संबंधी विकारों की प्रकृति और व्यापकता की जांच की गई है। विघटनकारी व्यवहार, ध्यान, चिंता और मनोदशा की समस्या वाले बच्चों में यह विशेष रूप से आम है। ऐसे में परिवारों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि नींद का व्यवहार समायोजन और अच्छी तरह से छोटे बच्चों के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इसके लिए मां-पिता पहले तो बच्चो के खान-पान और लाइफस्टाइल पर ध्यान दें और फिर उसके बाद तय करें कि बच्चा सच में कोई स्लीप डिसऑर्डर से पीड़ित तो नहीं है।
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