लोगों की दिनचर्या में बीते कुछ सालों से बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव आपको लोगों के मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी प्रभाव डालता है। दरअसल, काम के बढ़ते बोझ और खाने की गलत आदतों के चलते लोगों को हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग होने की संभावनाएं बढ़ी हैं। पढ़ाई और काम के बीच में व्यक्ति खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पाता है। यही एक बड़ी वजह है कि लोगों को आज कई तरह की गंभीर बीमारियां छोटी उम्र में ही होने लगी हैं। यदि आपको भी सांस लेने में तकलीफ हो रही है और हृदय में दर्द महसूस हो रहा है, तो यह कार्डियोमायोपैथी (Cardiomyopathy) का संकेत हो सकता है। यह रोग हृदय की मांसपेशियों से संबंधित होता है। इसमें हृदय खून को शरीर के अन्य अंगों तक पहुंचाने के लिए ठीक तरह से पंप नहीं कर पाता है। ऐसे में व्यक्ति को थकान और कमजोरी महसूस हो सकती है। कुछ मामलों, में यह रोग हार्ट फेलियर के लक्षणों को भी बढ़ा सकता है। ऐसे में आगे आरएन टैगोर अस्पताल मुकुंदपुर, के कार्डिएक सर्जन और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. ललित कपूर से जानते हैं कि कार्डियोमायोपैथी के लक्षण और कारण क्या होते हैं।
कार्डियोमायोपैथी के कारण
कार्डियोमायोपैथी के मुख्य कारणों का पता नहीं लगाया गया है। स्टडी के अनुरसार, यह कई तरह की स्थितियों के कारण यह रोग उत्पन्न हो सकता है। अन्य कारकोंं के चलते होने वाले कार्डियोमायोपैथी को एक्वायर्ड कार्डियोमायोपैथी के रूप में जाना जाता है। जबकि, कुछ लोगों यह रोग अनुवांशिक रूप कारणों के चलते होता है। इसे अनुवांंशिक कार्डियोमायोपैथी कहा जाता है। आगे उन कारकों के बारे में जानते हैं जिनके चलते आपको कार्डियोमायोपैथी हो सकता है।
- हार्ट वाल्व की समस्या
- पहले हार्ट फेलियर होना
- हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होना
- हृदय गति का लगातार तेज होना
- इंफेक्शन की वजह से हृदय में सूजन बनना
- मेटाबॉलिज्म से जुड़ी समस्या जैसे थायरॉइड, डायबिटीज आदि।
- कनेक्टिव टिश्यू का डिसऑर्डर
- कीमोथेरेपी व अन्य दवाओं का साइड इफेक्ट
- हृदय की मांसपेशियों में आयरन का बनाना (हेमोक्रोमैटोसिस) आदि।
कार्डियोमायोपैथी के लक्षण
कार्डियोमायोपैथी के लक्षण हर व्यक्ति में दिखाई नहीं देते हैं। जबकि, कुछ लोगों को स्थिति गंभीर होने पर इसके लक्षण महसूस होते हैं। आगे जानते हैं इस समस्या में किन लक्षणों को शामिल किया जाता है।
- रोगी के सीने में हल्का दर्द होना
- दिल की धड़कने अनियमित या तेज होना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- पैरों, पेट और गर्दन में सूजन होना
- शारीरिक काम न करने के बाद भी थकान व कमजोरी महसूस होना
- चक्कर व बेहोशी होना, आदि।
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इस समस्या के लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। साथ ही, हृदय से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए आपको समय-समय पर अपना चेकअप कराना चाहिए। डॉक्टर शुरुआती दौर में सीने का एक्स-रे, इलैक्ट्रोकार्डियोग्राम, कार्डियक एमआरआई और जेनेटिक टेस्टिंग आदि टेस्ट के द्वारा रोग की पहचान करते हैं। इसके बाद लाइफस्टाइल में बदलाव और दवाओं के द्वारा इलाज किया जाता है। यदि, रोग गंभीर स्थिति में पहुंच चुका होता है, तो सर्जरी भी की जा सकती है।
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