क्या आप जानते हैं आयुर्वेद के अनुसार आपकी प्रकृति के लिए कौन-सा तेल सबसे बेस्ट है? आयुर्वेद के अनुसार जिस तरह आपकाे अपनी प्रकृति के हिसाब से भाेजन करना हाेता है, उसी तरह भाेजन काे बनाने के लिए भी प्रकृति के अनुसार ही तेल का उपयाेग करना चाहिए। जी हां, आपकाे खाना बनाने के लिए भी अपनी प्रकृति के अनुरूप ही तेल का चुनाव करना चाहिए। खाना बनाने वाले तेल भी आपके शरीर के अनुसार ही हाे ताे आप हमेशा स्वस्थ रह सकते हैं। राम हंस चेरिटेबल हॉस्पिटल, सिरसा के आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा बताते हैं कि व्यक्ति काे अपनी प्रकृति के अनुसार ही खाना बनाने वाले तेल का इस्तेमाल करना चाहिए।
क्या है प्रकृति?
आयुर्वेद के अनुसार शरीर वात, पित्त और कफ से बना हाेता है। इनमें से किसी का भी असंतुलन हाेने पर व्यक्ति राेगाें से घिर जाता है। अगर शरीर में वात बढ़ता है ताे व्यक्ति काे हड्डियाें, जाेड़ाें में दर्द हाेने की समस्या हाे सकती है। इसके विपरीत अगर पित्त बढ़ता है, ताे व्यक्ति काे गुस्सा बहुत आता है। साथ ही त्वचा राेग भी पित्त बढ़ने पर हाेने लगते हैं। शरीर में कफ की मात्रा बढ़ने पर व्यक्ति काे खांसी, जुखाम या बलगम की समस्या हाे सकती है। ऐसे में आपकाे स्वस्थ रहने के लिए तीनाें दाेषाें काे संतुलन में रखना बहुत जरूरी हाेता है। चलिए आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा से जानते हैं अपनी प्रकृति के पहचान करके सही तेल का चुनाव कैसे करें।
वात प्रकृति के लिए तेल (Cooking Oil for Vatta Nature)
वात प्रकृति वाले व्यक्तियाें का शरीर दुबला-पतला हाेता है। इनकी स्किन ड्राय और ठंडी हाेती है। वात प्रकृति वालाें काे कभी भूख बहुत ज्यादा लगती है, ताे कभी कम। इन लाेगाें काे ठंडी चीजाें का सेवन करने से बचना हाेता है। ठंडा वातावरण और ठंडी चीजाें के सेवन से उन्हें वात दाेष हाे सकता है। इसलिए इन लाेगाें काे हमेशा गर्म तासीर की चीजाें का सेवन करना चाहिए। वात प्रकृति के लाेगाें काे खाना बनाने के लिए भी गर्म तासीर वाले तेल का इस्तेमाल करना चाहिए।
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- सरसाें का तेल (Mustard Oil)
- मूंगफली का तेल (Peanut Oil)
सरसाें का तेल और मूंगफली का तेल तासीर में गर्म हाेती है। इसलिए वात प्रकृति के लाेग खाना बनाने के लिए इन तेलाें का इस्तेमाल कर सकते हैं। मूंगफली के तेल में ढेराें पाेषक तत्व हाेते हैं। दाेनाें तेल वायु काे बढ़ने से राेकते हैं और वात दाेष काे संतुलित करते हैं।
पित्त प्रकृति के लिए तेल (Cooking Oil for Pitta Nature)
पित्त प्रकृति के लाेगाें काे शरीर बेहद नाजुक हाेता है। इन लाेगाें काे गर्मी बिल्कुल सहन नहीं हाेती है। इन्हें त्वचा राेग और मुंह में छाले बहुत परेशान करते हैं। इन लाेगाें काे प्यास बहुत ज्यादा लगती है। पित्त प्रकृति के लाेगाें काे गुस्सा बहुत जल्दी आता है। इन्हें ठंडा वातावरण और ठंडी चीजाें का सेवन करना पसंद हाेता है। आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा बताते हैं कि पित्त प्रकृति के लाेगाें काे खाना बनाने के लिए ठंडी तासीर के तेलाें का उपयाेग करना चाहिए। गर्म तेल से उन्हें नुकसान हाे सकता है।
- नारियल तेल (Coconut Oil)
- गाय का घी (Ghee)
नारियल के तेल की तासीर बहुत ठंडी हाेती है। ऐसे में पित्त प्रकृति वाले लाेगाें के लिए इसका सेवन करना बेहद लाभकारी हाे सकता है। इससे उन्हें पेट में ठंडक मिलेगी और दाेष संतुलन में रहेगा। साथ ही घी पाचन तंत्र काे मजबूत बनाने में लाभकारी हाेता है। गाय का घी कई राेगाें काे दूर करने में मददगार हाेता है। आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा बताते हैं कि घी का सेवन सभी प्रकृति के लाेग कर सकते हैं। देसी गाय के घी काे सबसे अधिक फायदेमंद माना जाता है।
कफ प्रकृति के लिए तेल (Cooking Oil for Kapha Nature)
कफ प्रकृति के व्यक्ति मजबूत होते हैं, लेकिन हमेशा सुस्ती रहती है। इन लाेगाें काे नींद बहुत अधिक आती है। भूख लगना, शरीर में भारीपन, शरीर में गीलापन महसूस होना और आलस कफ प्रकृति के लाेगाें के लक्षण हाेते हैं। इन लाेगाें काे भी अपनी प्रकृति काे ध्यान में रखकर ही खाना बनाने वाले तेल का इस्तेमाल करना चाहिए।
- सरसाें का तेल (Mustard Oil)
- तिल का तेल (Sesame Oil)
सरसाें का तेल और तिल का तेल तासीर में गर्म हाेते हैं। इनका सेवन कफ वाले लाेग आसानी से कर सकते हैं। इनके उपयाेग से कफ दाेष संतुलन में रहता है।
आपकाे भी अपनी प्रकृति जानकर उसी अनुसार खाना बनाने वाले तेल का भी इस्तेमाल करना चाहिए। अन्यथा आपके शरीर में दाेष बढ़ सकते हैं। आप आयुर्वेदिक डॉक्टर से मिलकर अपनी प्रकृति जान सकते हैं।
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