भारत को पहला विश्वकप दिलाने वाले महान क्रिकेटर कपिल देव (Kapil Dev) पिछले दिनों हार्ट अटैक (Heart Attack) का शिकार हुए थे। सीने में दर्द (Chest Pain) और परेशानी के चलते उन्हें फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 61 वर्ष के कपिल देव के जल्द ठीक होने की दुवाएं उनके फैंस लगातार कर ही रहे थे और खुशी की बात ये है कि बीते रविवार को कपिल देव हॉस्पिटल से इलाज के बाद रिलीज भी कर दिए गए। हार्ट अटैक के बाद उनकी एंजियोप्लास्टी (Angioplasty) की गई। अक्सर लोगों को लगता है कि हार्ट अटैक (Heart Attack) आने पर ओपन हार्ट सर्जरी के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है। हार्ट के मरीजों के लिए एंजियोप्लास्टी (Angioplasty for Heart Patients) बहुत कारगर इलाज है, जिससे हर साल हजारों लोगों की जान बचाई जाती है। आइए आपको बताते हैं कि क्या है एंजियोप्लास्टी (What id Angioplasty)और कैसे है ये हार्ट के मरीजों के लिए जीवनरक्षक उपाय।
हृदय-धमनियों (Coronary Arteries) में अवरोध (Blockage in Heart) से संबंधित हर मामले में अब ओपन हार्ट सर्जरी करने की जरूरत नहीं है। एंजियोप्लास्टी के प्रचलन में आने से ही कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) के रोगियों को बेहतर राहत मिली है। हार्ट के मरीजों के लिए एंजियोप्लास्टी कितनी कारगर है, किसे पड़ती है इसकी जरूरत और क्या है एंजियोप्लास्टी, जानें मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, नोएडा के चेयरमैन और सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ.पुरुषोत्तम लाल से।
Dr Atul Mathur did Kapil paji angioplasty. He is fine and discharged. Pic of @therealkapildev on time of discharge from hospital. pic.twitter.com/NCV4bux6Ea
— Chetan Sharma (@chetans1987) October 25, 2020
कोरोनरी आर्टरी डिजीज (हृदय- धमनी रोग, संक्षेप में सीएडी) से जुड़े कई बड़े कारण हैं, जो मरीज के जीवन के खतरे को बढ़ा देते हैं। ऐसे कारणों में हाई ब्लड प्रेशर डायबिटीज और धूम्रपान के अलावा अधिक उम्र भी एक प्रमुख कारण है। अन्य जोखिम भरे कारणों पर तो काबू पाया जा सकता है, लेकिन बढ़ती उम्र पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है।
चिंताजनक पहलू
दुखद बात यह है कि 80 वर्ष की उम्र के बाद कोरोनरी धमनी की बीमारी से पीड़ित अधिकतर रोगियों में कोरोनरी धमनी में कैल्शियम जमा होने के कारण अवरोध हो जाता है। अनेक रोगियों में दवाओं या मेडिकेशन के बावजूद एंजाइना(दिल में दर्द होना) बरकरार रहता है। कोरोनरी धमनी की बीमारी के कुछ मरीज ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए इलाज के विकल्प कारगर नहीं होते। कोरोनरी आर्टरी डिजीज हर उम्र के लागों को प्रभावित कर रही है। यहां तक कि हमें कुछ साल पहले एक 14 साल के बच्चे की एंजियोप्लास्टी करनी पड़ी थी और उसी साल 104 साल के मरीज की भी एंजियोप्लास्टी करनी पड़ी। कहने का तात्पर्य यह है कि एक तरफ तो हमारे देश में छोटी अवस्था में भी लोगों को परेशानी हो रही है, तो दूसरी तरफ जागरूकता के अभाव में सीएडी से पीड़ित बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है।
इसे भी पढ़ें:- जानें कितने प्रकार के होते हैं हृदय रोग और क्या हैं इनके लक्षण
रोटाब्लैटर है वरदान
कैल्शियम से निर्मित पथरी से पीड़ित मरीजों के अलावा अन्य हृदय रोगों से पीड़ित लोगों के लिए रोटाब्लैटर वरदान साबित होता है। रोटाब्लैटर को डायमंड ड्रिलिंग भी कहा जाता है। इस उपकरण में लाखों डायमंड क्रिस्टलों से युक्त एक बर(पेंचकस नुमा एक सिरा) लगा होता है। यह बर प्रति मिनट 1.5 से 2 लाख बार घूमता है और कैल्शियम को उसी तरह से काटता है, जिस तरह से हीरा शीशे को काटता है। जब कैल्शियम को हटा दिया जाता है, तब स्टेंटिंग की जाती है और इसके परिणाम अत्यंत उत्साहवर्धक होते हैं। देश में पहली बार मैंने रोटाब्लैटर का इस्तेमाल शुरू किया था।
क्यों जमा होता है कैल्शियम
धमनियों में कैल्शियम पैदा होने के कई कारण हैं। खासकर उन लोगों में कैल्शियम पैदा होने की ज्यादा संभावना होती है, जो हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज से पीड़ित होते हैं। इसके अलावा युवावस्था में भी धमनियों में कैल्शियम पाया जाता है। कहने का तात्पर्य है कि आनुवांशिक तौर पर भी धमनियों में कैल्शियम की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
इसे भी पढ़ें:- दिल की बीमारियों से रहना है दूर, तो आप भी जरूर करवाएं ये 6 जांच
दूर करें गलत धारणा
यह धारणा गलत है कि अगर 80 साल की उम्र के बाद किसी की एंजियोग्राफी की जाए, तो कुछ न कुछ कमियां जरूर निकलेंगी। हमारी मेडिकल टीम रोजाना वृद्ध मरीजों की एंजियोग्राफी करती है, जिनकी उम्र लगभग 80 साल या इससे अधिक होती है और उनकी धमनियों में कोई खराबी नहीं पायी गई। यहां हम यह भी बताना चाहेंगें कि अगर कोई धमनी ‘साइलैन्टली ब्लॉक’हो जाती है, तो ऐसे मरीजों में प्रतिदिन सैर करने से नैचुरल बाईपास पैदा हो जाता है। हमनें कई ऐसे मरीज देखे हैं, जिनकी तीनों धमनियां बंद होती हैं, लेकिन नैचुरल बाईपास के कारण उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती। जब ऐसे मरीजों के बारे में जानकारी हासिल की जाती है, तो पता चलता है कि वे लंबे समय से रोजाना सैर कर रहे हैं।
Read More Articles On Heart Health in Hindi