हेपेटाइटिस-ई (Hepatitis E)एक वायरस है, जो लिवर को संक्रमित करता है। हेपेटाइटिस-ई इंफेक्शन (Hepatitis-E Infection) के दौरान ज्यादातर, एक मरीज की स्थिति में सुधार होता है या वह कुछ हफ्तों या महीनों के भीतर तीव्र हेपेटाइटिस संक्रमण के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है। पर कभी-कभी, यह संक्रमण खतरनाक हो सकता है और फुलमिनेंट एक्यूट लिवर इंफेक्शन के कारण हो सकता है। ऐसे में गंभीर होने पर ये जानलेवा हो सकता है और पाचन संबंधी अंगों को पूरी तरह से खराब कर सकती है। तीव्र यकृत विफलता वाले रोगियों को तत्काल यकृत प्रत्यारोपण से गुजरना पड़ता है। वहीं ये प्रेग्नेंसी के दौरान और जटिल हो जाती है।
हेपेटाइटिस-ई वायरस के संक्रमण के 20 मिलियन से अधिक अनुमानित मामले विश्व स्तर पर होते हैं। इसे पहली बार 1978 में कश्मीर घाटी में एक महामारी के दौरान पहचाना गया था। भारत में तीव्र वायरल हेपेटाइटिस के छिटपुट और महामारी मामलों के बहुमत हेपेटाइटिस ई वायरस के कारण होते हैं। इस बीमारी की सबसे चिंताजनक बात ये है कि पहले पहचान में नहीं आता है और धीरे-धीर गंभार रूप लेना लगता है।
गर्भावस्था के दौरान हेपेटाइटिस-ई इंफेक्शन
गर्भवती महिलाएं अक्सर इस संक्रमण की चपेट में आ जाती हैं और उनके मृत्यु दर का खतरा भी बढ़ जाता है। गर्भावस्था के तीसरे तिमाही के दौरान हेपेटाइटिस-ई संक्रमण, विशेष रूप से जीनोटाइप 1 के साथ, अधिक गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है और 15 से 25 प्रतिशत रोगियों में लिवर की विफलता होती है और मातृ मृत्यु हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान, कुछ प्रतिरक्षाविज्ञानी और हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जो मातृ वातावरण में भ्रूण के रखरखाव को बढ़ावा देते हैं। इन प्रतिरक्षात्मक परिवर्तनों के कारण, गर्भवती महिलाओं में हेपेटाइटिस ई जैसे वायरल संक्रमण की संभावना अधिक होती है।
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प्रेग्नेंसी में लिवर फेल्योर का कारण है हेपेटाइटिस-ई इंफेक्शन
गर्भावस्था के दौरान संक्रमण लिवर फेल्योर का कारण बन सकता है, जहां पीलिया द्वारा इसकी शुरुआत होती है, इसके बाद ये गंभीर रूप लेने लगता है। ऐसे अध्ययन हैं, जो दिखाता है कि कैसे तीव्र हेपेटाइटिस ई संक्रमण वाले गर्भवती रोगी 15-60 प्रतिशत रोगियों में एएलएफ के लिए प्रगति कर सकते हैं। मां से बच्चे में इस संक्रमण के फैलने की लगभग 50 फीसदी संभावना है। यह अभी भी जन्म या नवजात मृत्यु दर का कारण बन सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान एक्यूट हेपेटाइटिस ई संक्रमण मां और उसके बच्चे दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।
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कैसे फैलता है हेपेटाइटिस-ई इंफेक्शन
- -हेपेटाइटिस ई एक जल-जनित रोग है और यह संक्रमण मल-मौखिक मार्ग द्वारा प्रेषित होता है।
- - ये गंदे पानी या संक्रनित पानी द्वारा भी फैल सकता है, यानी कि किसी ऐसी चीज को पीने और खाने से, जो संक्रमित व्यक्ति के मल के संपर्क में है।
- - यह वायरस हाथ धोने की आदतों का न होने और स्वच्छ पेयजल आपूर्ति की कमी वाले देशों में तेजी से फैलता है।
- - हेपेटाइटिस ई एक आरएनए वायरस ,है जिसमें चार जीनोटाइप हैं, जिनमें से टाइप 1 जीनोटाइप एशिया में आम है।
- - ये खासकर जीनोटाइप 1 के साथ गर्भावस्था के तीसरे तिमाही में होता है।

लक्षण
आमतौर पर, तीव्र हेपेटाइटिस ई वायरस संक्रमण के लक्षण संक्रमण के दो से छह सप्ताह बाद शुरू होते हैं। कभी-कभी रोगियों में कोई लक्षण नहीं हो सकता है और रोग बिना किसी उपचार के अपने आप हल हो जाता है। वहीं इसके गंभी लक्षणों की बात करें, तो
- -बुखार
- -मतली या उल्टी
- -आंखों का पीलापन
- -भूख न लगना
- -थकान महसूस करना
- -पेट में दर्द या बेचैनी का अनुभव कर सकते हैं।
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हेपेटाइटिस-ई इंफेक्शन से बचने का तरीका
- -व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखना और स्वच्छता की स्थिति में सुधार करना
- -स्वच्छ पेयजल का उपयोग करना
- -उचित सीवेज निपटान
- -इसे लेकर आम लोगों में जागरूकता
- -प्रेग्नेंसी के वक्त समय-समय पर चेकअप
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