ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर से जूझ रही हैं एक्ट्रेस विद्या बालन, जानें क्या है ये बीमारी

बॉलीवुड की सबसे सुंदर और चुलबुली एक्ट्रेस विद्या बालन ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर नामक मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझ रही है। यह एक ऐसा मानसिक रोग है जिसकी गिरफ्त में आने वाले व्यक्ति को फिर सामान्य होने में बहुत वक्त लग जाता है। इस डिसॉर्डर में व्यक्ति को किसी एक काम को करन की सनक सवार हो जाती है। ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के लिए आनुवांशिकता, ब्रेन में सेरोटोनिन नामक न्‍यूरोट्रांसमीटर की कमी, इंफेक्‍शन, स्‍ट्रेस आदि चीजें जिम्‍मेदार होते हैं।
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ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर से जूझ रही हैं एक्ट्रेस विद्या बालन, जानें क्या है ये बीमारी

फिल्मी दुनिया और यहां के सितारे पर्दे पर जितने खुश और बेफिक्र नजर आते हैं असल जिंदगी में वैसे होते नहीं हैं। असल जिंदगी में बॉलीवुड के सितारे अपनी पर्सनल लाइफ में वैसी ही दिक्कतों और समस्याओं का सामना करता हैं जैसे कोई आम व्यक्ति करता है। बॉलीवुड की सबसे सुंदर और चुलबुली एक्ट्रेस विद्या बालन ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर नामक मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझ रही है। यह एक ऐसा मानसिक रोग है जिसकी गिरफ्त में आने वाले व्यक्ति को फिर सामान्य होने में बहुत वक्त लग जाता है। इस डिसॉर्डर में व्यक्ति को किसी एक काम को करन की सनक सवार हो जाती है, वह बार-बार एक ही विषय पर सोचने या काम करने को मजबूर होता है।

ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के लिए आनुवांशिकता, ब्रेन में सेरोटोनिन नामक न्‍यूरोट्रांसमीटर की कमी, इंफेक्‍शन, स्‍ट्रेस आदि चीजें जिम्‍मेदार होते हैं। बॉलीवुड एक्ट्रेस विद्या बालन को भी अपने आसपास सफाई बहुत पसंद है। अगर उन्हें अपने आसपास थोड़ी सी भी धूल मिट्टी दिख जाती है तो उनके दिमाग के नेगेटिव हॉर्मोन्स एक्टिव हो जाते हैं, जिसके चलते उन्हें एलर्जी हो जाती है। सिर्फ यही नहीं विद्या को यह भी पसंद नहीं है कि उनके घर में कोई चप्पल पहनकर घूमे। 

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जबकि कई बार वह कोई काम कर लेते हैं इसके बावजूद उन्हें इस चीज पर संशय बना रहता है कि वह काम उन्होंने किया भी है या नहीं? जैसे घर से निकते वक्त दरवाजा ठीक से बंद किया या नहीं?, लाइट और पंखे के स्विच बंद किए या नहीं? कहीं गैस का स्विच खुला तो नहीं है? बाथरूम के टैब खुले तो नहीं हैं? अगर कोई गंदी चीज छू जाए तो तब तक हाथ धोते रहते हैं जब तक उनका दिमाग उन्हें न कहें। लेकिन कुछ लोग इतने के बाद भी सामान्य नहीं हो पाते। वे बार-बार इन प्रक्रियाओं को दोहराते हैं और इस तरह की शंकाएं उन्हें बार-बार और लंबे समय तक परेशान करती रहती हैं। इस तरह बार-बार विचारों या क्रियाओं की पुनरावृत्ति से वे विचलित हो जाते हैं। और इस बेचैनी और परेशानी के चलते वे अपने रोजमर्रा के कार्यों पर एकाग्र नहीं हो पाते और उनका सामान्य जीवन अव्यवस्थित हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें इस तरह के काम की लत पड़ जाती है। इस विचलित मनोदशा को ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर या ओसीडी कहा जाता है। जो कि एक गंभीर मानसिक रोग है।

ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के लक्षण

  • ऐसा कोई अनचाहा आवेश या भीतरी प्रेरणा जो बिना खुद की इच्छा के दिमाग से शुरू होती है और व्यक्ति खुद ही इसे व्यर्थ मसझता है।
  • बार-बार सफार्इ करना और गंदगी से डरना। ओसीडी के कारण पीड़ित में आमतौर पर सफार्इ और बार-बार हाथ धोने का कंपल्शन होता है।
  • शंकालु और पाप से डरने वाले लोग सोचते हैं कि यदि सब कुछ ठीक ढंग से नहीं हुआ तो कुछ बुरा हो जाएगा या वे सजा के भागी बन जाएंगे।
  • गिनती करने वाले और चीजों को व्यवस्थित करने की जॉब वाले लोग इस समस्या के होने पर ऑब्सेस्ड रहते हैं। उनमें से कुछ निश्चित संख्याओं, रंगों और अरेंजमेंट को लेकर अंधविश्वास हो सकता है।
  • कीटाणुओं और गंदगी आदि के संपर्क में आने या दूसरों को दूषित कर देने का डर रहता है।
  • डर से जुड़ी चीजों को को महसूस करना जैसे, घर में कोई बाहरी व्यक्ति घुस आया है।
  • ऐसे लोगों को किसी और को नुकसान पहुंचने का डर भी रहता है।
  • धर्म या नैतिक विचारों पर पागलपन की हद तक ध्यान देना।
  • किसी चीज को भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली मानने का अंधविश्वास।
  • चीजों को बेवजह बार-बार जांचना, जैसे कि ताले, उपकरण और स्विच आदि।
  • बेकार की चीजें इकट्ठा करना जैसे कि पुराने न्यूजपेपर, खाने के खाली डिब्बे, टूटी हुई चीजें आदि।

कैसे करें इससे बचाव

ऐसी दवाइयां मौजूद हैं जो दिमाग की कोशिकाओं में सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ाती हैं। डॉक्टर कई बार इलाज के लिए इन दवाओं को लेने की सलाह देते हैं, जिन्हें लंबे समय तक लेना होता है। कभी-कभी चिंताओं औक तनाव को दूर करने वाली दवाएं भी इनके साथ दी जाती हैं। इसके साथ बिहेवियर थैरेपी की मदद भी ली जाती है। जिसके अंतर्गत रोगी को शांत रहने वाले व्यायाम सिखाए जाते हैं। बिहेवियर थैरेपी के तहत उसे इन विचारों से मुक्त होने के लिए कुछ तकनीकें भी सिखाई जाती हैं। हालांकि गंदगी संबंधी विचारों के मामले में इलाज के तौर पर रोगी को कुछ समय तक गंदगी में रखा जाता है और उससे कहा जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा समय तक हाथ धोने से बचे। जिस तह वह धीरे-धीरे इन विचारों से मुक्ति पाना सीख जाता है।

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