
हाल में हुए एक अध्ययन की मानें तो 2030 तक भारत में करीब 9.8 करोड़ लोग टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हो सकते हैं। डायबिटीज एक गंभीर समस्या है, जिसके मरीजों की संख्या विश्वभर में तेजी से बढ़ रही है।
हाल में हुए एक अध्ययन की मानें तो 2030 तक भारत में करीब 9.8 करोड़ लोग टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हो सकते हैं। डायबिटीज एक गंभीर समस्या है, जिसके मरीजों की संख्या विश्वभर में तेजी से बढ़ रही है। 2018 में जहां दुनियाभर में डायबिटीज मरीजों की संख्या जहां अभी 40.6 करोड़ है वहीं 2030 तक ये संख्या 51.1 करोड़ हो जाएगी, यानी डायबिटीज रोगियों की संख्या में लगभग 5 प्रतिशत का इजाफा हो जाएगा। चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से आधे से ज्यादा मरीज सिर्फ भारत, चीन और यूएस से होंगे।
20 गुना बढ़ जाएगी इंसुलिन की जरूरत
यह अध्ययन लैंसेट डायिबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन के मुताबिक 2030 तक चीन में डायबिटीज के सबसे ज्यादा मरीज (13 करोड़) होंगे, जबकि भारत डायबिटीज मरीजों की संख्या में विश्व का दूसरा (9.8 करोड़) सबसे बड़ा देश होगा। इस अध्ययन के मुताबिक इन डायबिटीज मरीजों को ठीक करने के लिए अगले 12 सालों में अभी से 20 गुना ज्यादा इंसुलिन की जरूरत पड़ेगी।
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इंसुलिन की पहुंच कम लोगों तक
भारत में डायबिटीज के जितने मरीज हैं, अभी उन सभी तक इंसुलिन की पहुंच नहीं है। इसी कारण हर साल लाखों लोगों की मौत डायबिटीज और इससे होने वाली अन्य बीमारियों के कारण हो जाती है। अगर सभी लोगों तक कम कीमत में इंसुलिन की उपलब्धता नहीं हो पाती है, तो डायबिटीज मरीजों की संख्या और ज्यादा बढ़ने के आसार हैं।
क्या है डायबिटीज के बढ़ने का कारण
डायबिटीज लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी है। आजकल लोगों का खानपान जिस तरह बिगड़ा है और जीवनशैली में जो परिवर्तन आया है, उसके कारण ही दुनियाभर में डायबिटीज मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कम शारीरिक मेहनत, जंक फूड्स, कार्बोनेटेड पेय पदार्थों, सिगरेट और एल्कोहल की लत के कारण डायबिटीज का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके अलावा डायबिटीज एक अनुवांशिक रोग है इसलिए मां-बाप के द्वारा ये बच्चों में भी हो जाता है। यह भी एक कारण है कि आजकल छोटे बच्चों में डायबिटीज के मामले बढ़ गए हैं।
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कई देशों ने जताई चिंता
अमेरिका में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इंसुलिन की पहुंच में अधिक सुधार नहीं होने के कारण यह टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त 7.9 करोड़ लोगों के करीब आधे लोगों की पहुंच से बाहर होगी जिन्हें 2030 में इसकी जरूरत होगी। इस अध्ययन के निष्कर्षों में खासकर अफ्रीकी, एशियाई और समुद्री क्षेत्रों के लिए चिंता जताई गई है।
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