एम्स से बनाई प्रदूषण की जांच के लिए खास बेल्ट, अस्थमा पीड़ित बच्चों को मिलेगी बेल्ट

इस बेल्ट की मदद से अस्थमा पीड़ित बच्चों को यह पता चल सकेगा कि प्रदूषण का स्तर क्या है और उसका उनके शरीर पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। एम्स ने इसके लिए कई केंद्रों पर अध्ययन किया।
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एम्स से बनाई प्रदूषण की जांच के लिए खास बेल्ट, अस्थमा पीड़ित बच्चों को मिलेगी बेल्ट


दिल्ली में प्रदूषण का स्तर साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। जहरीली हवा के कारण एनसीआर में सांस के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है। इन सबके बीच एम्स ने शोध करके एक खास बेल्ट बनाई है, जो प्रदूषण के स्तर का पता लगा सकती है। एम्स ने ये बेल्ट उन बच्चों के लिए बनाई है, जो अस्थमा के मरीज हैं। इस बेल्ट की मदद से अस्थमा पीड़ित बच्चों को यह पता चल सकेगा कि प्रदूषण का स्तर क्या है और उसका उनके शरीर पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। एम्स ने इसके लिए कई केंद्रों पर अध्ययन किया। एम्स का यह शोध विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग और ब्रिटेन के मेडिकल रिसर्च सेंटर द्वारा फंड किया गया था।

डिवाइस बताएगा स्वास्थ्य का हाल

इस शोध के तहत, मेडिकल इंस्टीट्यूट बच्चों को ये खास बेल्ट देगा, जो हर हवा के प्रदूषण को मापकर जानकारी देगा, फिर चाहे बच्चे स्कूल में हो, बस में हों या घर में हों। यह मशीन प्रदूषण के स्तर के साथ-साथ प्रदूषण का बच्चे के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा यह भी बताएगी। इसके अलावा बटन जैसा एक अन्य डिवाइस भी बच्चों के सीने पर लगाया जाएगा, जिससे उनके पूरे स्वास्थ्य के बारे में पता चल सकेगा।

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एक सप्ताह के लिए दी जाएगी बेल्ट

शोधकर्ताओं ने विचार किया है कि एक बच्चे को एक सप्ताह के लिए ये बेल्ट दी जाएगी और ऐसा साल में दो से तीन बार किया जाएगा। इस बेल्ट द्वारा रिकॉर्ड किए गए डाटा को आम लोग नहीं पढ़ सकेंगे। इसका अर्थ है कि एम्स ये बेल्ट बच्चों को देगा ताकि उन स्थानों पर प्रदूषण का लगातार पता लगाया जा सके, जहां बच्चे ज्यादा समय बिताते हैं और यह भी जान सकें कि बच्चों के स्वास्थ्य को प्रदूषण कैसे प्रभावित कर रहा है।

पूरे दिन बेल्ट पहनेंगे बच्चे

एम्स के पल्मोनोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. करन मदान ने बताया कि इलाज के लिए क्लीनिक में हर दिन आने वाले बच्चों के स्कूलों का पता लगाया जा रहा है। स्कूलों का पता लगने के बाद उन्हें इस शोध के बारे में सूचित कर दिया जाएगा। स्कूल और बच्चे के मां-बाप की इजाजत के बाद बच्चे को ये सेंसर दे दिया जाएगा। अब तक ऐसे 10-15 बच्चों को चिन्हित किया जा चुका है। इस सेंसर को बच्चे कम से कम एक सप्ताह के लिए पूरे दिन पहनेंगे।

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प्रदूषण के प्रभावों को समझने में मिलेगी मदद

शोधकर्ताओं का मानना है कि इस शोध के द्वारा इनडोर और आउटडोर पॉल्यूशन के बीच संबंध भी पता चल सकेंगे साथ ही यह भी पता लगाया जा सकेगा कि पॉल्युशन का स्तर घटने-बढ़ने का असर बच्चों पर किस तरह से पड़ रहा है।

पिछले एक दशक में यह पाया गया है कि प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसका कारण ये है कि बच्चे वयस्कों के मुकाबले दोगुनी तेजी से सांस लेते हैं। ऐसे में एम्स द्वारा यह शोध बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रदूषण के कारण पड़ने वाले असर के बारे में काफी कुछ बताएगा जिससे आने वाले सालों में सरकार और चिकित्सा विशेषज्ञों को योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।

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