जीवन में बच्चे के रूप में आने वाली खुशियां अनमोल हैं। लेकिन कई बार किसी चिकित्सकीय कारण या दुर्घटना जैसी वजह से गर्भपात की स्थिति से भी गुजरना पड़ता है। ऐसे में सबसे खास असर मां की सेहत पर पड़ता है। यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि अबॉर्शन की प्रक्रिया सेहत के लिए पीड़ा और समस्याओं से भरी हो सकती है। विपरीत और आपात स्थितियों में इसका उपयोग जायज है लेकिन इसे लिंग विशेष के प्रति दुराग्रह के चलते या यूं ही अपनाना गलत है।
कई हो सकते हैं कारण
किसी भी महिला के लिए अबॉर्शन जैसे विकल्प को अपनाना न केवल शारीरिक स्तर पर बल्कि मानसिक स्तर पर भी पीड़ादाई हो सकता है। बच्चे के आने की खुशी को लेकर मां के साथ पूरा परिवार भी भविष्य की कल्पनाएं संजोता है।
ऐसे में यदि किसी दुर्घटना, बीमारी या अन्य चिकित्सकीय कारणों से गर्भपात कराना पड़ जाए तो इसका असर हर चीज पर पड़ता है। खास स्थितियों में होने वाले अबॉर्शन के पीछे यह कारण हो सकते हैं-
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- किसी दुर्घटना की वजह से गर्भवती स्त्री को पहुंची अंदरूनी चोट।
- बच्चे का विकास गर्भ में ठीक से न हो पाना।
- बच्चे में किसी ऐसे विकार का पता चलना जिसके कारण बच्चे का जीवन अल्प होने की आशंका हो या वह असामान्य या विकलांग जीवन ही जी सकता हो।
- मां को हुई कोई ऐसी बीमारी जिसके कारण गर्भ में बच्चे का जीवन भी खतरे में पड़ सकता हो, धूम्रपान, शराब, ड्रग्स आदि के कारण बच्चे और मां के जीवन को होने वाले खतरे से बचाने के लिए आदि।
आजकल मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि गर्भ में बच्चे को भविष्य में आने वाली मुश्किलों और बीमारियों के लिहाज से कई सारी जांचें की जा सकती हैं और ऐसे कई गंभीर केसेस में गर्भ में ही बच्चे का इलाज भी संभव हो सकता है। इस संदर्भ में और भी कई प्रयोग तथा शोध निरंतर किए जा रहे हैं। इसलिए यह जरूरी है कि गर्भवती महिला की समय पर जांच और उसके स्वास्थ्य का पूरा खयाल रखा जाए। खासकर यदि उसके परिवार में किसी बीमारी की हिस्ट्री है तो। साथ ही गर्भधारण से पूर्व भी डॉक्टरी जांच और मार्गदर्शन लेना फायदेमंद हो सकता है।
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इन बातों का रखें खयाल
किसी दुर्घटना या आपात स्थिति में हुए गर्भपात के दौरान और उसके बाद गर्भवती महिला के शरीर और मन दोनों को क्षति पहुंचती है। इसके लिए कुछ बिंदुओं पर खास ध्यान देना जरूरी है। जैसे-
- सबसे पहले इस स्थिति में महिला के साथ पूरे परिवार का मानसिक संबल होना जरूरी है ताकि वह इससे उबर सके।
- इस प्रक्रिया के बाद के तीन-चार हफ्ते ज्यादा मुश्किल भरे हो सकते हैं। इसके अंतर्गत दर्द और रक्तस्राव का अनुभव हर महिला के लिए भिन्न् हो सकता है, अत: डॉक्टर से सलाह लेते रहना आवश्यक है।
- पेन किलर या अन्य कोई भी दवाई, डॉक्टर से पूछे बिना न लें। और डॉक्टर ने जो भी दवाइयां या सप्लीमेंट्स दिए हैं उन्हें नियमित तौर पर सेवन करें। ये शरीर को मजबूती देने के साथ ही शरीर में होने वाली क्षति को भी रिपेयर करेंगे।
- भोजन में पौष्टिकता का पूरा ध्यान रखें।
- गर्भपात के कुछ समय बाद तक हॉर्मोनल उथल-पुथल के कारण चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, निराशा आदि जैसे भाव मन को घेर सकते हैं।
- इनके लिए दवाई और काउंसिलिंग दोनों पर ध्यान दें।
- मॉर्निंग सिकनेस और स्तनों में असहज अनुभूति का अनुभव हो सकता है जो कुछ दिनों में सामान्य हो जाता है। यदि यह लंबे समय तक हो तो डॉक्टर से सलाह लें।
- गर्भपात के बाद कुछ समय तक ड्राइविंग, भारी चीजें उठाने, कड़ी एक्सरसाइज और बड़े निर्णय लेने से दूर रहने की कोशिश करें।
- यदि गर्भपात के बाद आपको 100.3 डिग्री फेरेनहाइट या इससे ज्यादा बुखार रह रहा है, तो इसका मतलब इन्फेक्शन भी हो सकता है। इसे तुरंत डॉक्टर को बताएं।
- डॉक्टर द्वारा बताई गई सावधानियों को पूरी तरह ध्यान में रखें और अमल में लाएं।
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