बच्चे बड़े हों या छोटे माता-पिता को उनकी हर चीज को इत्मीनान से सुनना और समझना चाहिए। अक्सर कहा जाता है कि छोटे बच्चों की छोटी समस्याओं होती हैं और बड़े बच्चों में बड़ी समस्याएं। लेकिन उन बच्चों के बारे में जो बहुत छोटे नहीं हैं, और किशोर वर्ष दूर होते हैं उनका क्या? ऐसे स्कूली बच्चों की उम्र 6 से 9 साल के बीच होती है, जब वे कुछ विशेष रुचि और प्रतिभा विकसित करते हैं। ऐसे में मां-बाप को उनके इस तमाम प्रतिभाओं पर ध्यान देते हुए उनकी छोटी-मोटी परेशानियों का भी ख्याल रखना चाहिए। उनकी जरूरतों को समझने से उन्हें जीवन में स्वस्थ और सकारात्मक रहने में मदद मिल सकती है। स्वच्छता की आदतों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक, यही वो उम्र है जहां माता-पिता उन्हें बहुत कुछ समझा सकते हैं। आइए हम आपको 5 महत्वपूर्ण पेरेंटिंग टिप्स देते हैं, जिसकी मदद से आप अपने 6 से 9 साल के बच्चों का खास ख्याल रख सकते हैं।
खाने के वक्त खुशनुमा माहौल रखें
खाने की आदतों में बदलाव और भूख में अचानक बदलाव इस उम्र में सामान्य है। इसलिए स्वस्थ विकल्पों के साथ घर में साथ खाने का एक अच्था माहौल रखें। साथ ही बच्चों के खाने में क्रिएटिविटी के साथ कुछ न कुछ बदलाव करते रहें। वक्त पर उन्हें खाना खाना सिखाएं। उन्हीम खाने से जुड़ी हेल्दी आदतों से अवगत करवाएं। उसे एहसास दिलाएं कि जंक फूड की तुलना में दूध, दही, सब्जी, पनीर सभी बेहतर विकल्प हैं। हालांकि, अपने बच्चे को खाने के लिए मजबूर न करें और उसे अपने भोजन का आनंद लेने दें।
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बच्चों को रोड सेफ्टी रूल्स भी बताएं
इस उम्र में बच्चों के लिए दुर्घटनाएं सबसे बड़ा जोखिम हैं। इसलिए, अब अपने बच्चे को अपनी सुरक्षा के बारे में जानने का सही समय है। उसे सिखाने के लिए कि कैसे एक सड़क को पार करना है और क्या करना है अगर कोई अजनबी उसके पास आता है तो। इस तरह उन्हें रोड पर चलने से जुड़ी हर छोटे-बड़े रूल्स बताएं ताकि वह धीरे-धीरे स्मार्ट बनें। उन्हें अडल्ट होने तक सब कुछ मालूम हो इसके लिए आप उन्हें अभी से तैयार करें।
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सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा स्वस्थ हो
बाल रोग विशेषज्ञ के नियमित दौरे से आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा। लेकिन इसके अलावा, उसका मानसिक स्वास्थ्य भी कुछ ऐसा है जिसकी आपको देखभाल करने की आवश्यकता है तो उसका खास ख्याल रखें। अगर आपको अपने बच्चे के व्यवहार के बारे में संदेह या चिंता है, तो उनसे बात करें या उन्हें परामर्श के लिए ले जाएं।
उनके स्क्रीन टाइम पर फेयर लिमिट लगाएं
माता-पिता की देखरेख में प्रौद्योगिकी का आनंद ले रहे बच्चों के साथ कोई समस्या नहीं है। लेकिन कई कमियां भी हैं क्योंकि यह उसे आलसी या शायद आक्रामक भी बनाता है। इसलिए, उसके स्क्रीन टाइम को सीमित करने से उसे अधिक समय बिताने में मदद मिल सकती है जैसे कि किताबें पढ़ना, बाहर जाकर खेलना, म्यूजिक सीखना और पेंटिंग करना आदि।
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सुनिश्चित करें कि वे शारीरिक गतिविधियों में लिप्त हों
अध्ययनों के अनुसार, आपके बच्चे के लिए कम से कम एक घंटे की शारीरिक गतिविधियां जैसे दौड़ना या खेल खेलना बहुत जरूरी है। इसलिए सुनिश्चित करें कि वह खेल के मैदान पर भी पढ़ने या अन्य कामों जितना ही समय बिताएं। इसके साथ उन्हें स्विमिंग और बाहरी खेलों को खेलने के लिए भी प्रोत्साहित करें। दरअसल इन तमाम चीजों को करने से बड़े होने तक वो सिर्फ शारीरिक और मानसिक तौर स्वस्थ ही नहीं होंगे बल्कि कई सारे अच्छे गुण भी सीखेंगें।
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मध्य बाल्यावस्था के दौरान बच्चे कैसे विकसित होते हैं, इससे जुड़ी कुछ बातें, जिनका माता-पिता को खास ख्याल रखना चाहिए।
- -बच्चों पर भावनात्मक और सामाजिक परिवर्तन का पड़ने लगता है फर्क।
- -माता-पिता और परिवार से अधिक स्वतंत्रता दिखाएं।
- - बच्चों को भविष्य के लिए प्रोत्साहित करना शुरू करें।
- -दुनिया में उसकी जगह के बारे में और उनके भलाई से जुड़े चीजों के बारे में समझाएं।
- -माता-पिता मित्रता और टीम वर्क पर अधिक ध्यान दें।
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