पूरी दुनिया में कैंसर, हार्ट अटैक के बाद, मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। ग्लोकन 2018 के डाटा के अनुसार 185 देशों में मुख्य तौर पर 36 कैंसर इस समय सबसे ज्यादा हावी हैं। भारतीय पुरुषों में पाए जाने वाले सबसे आम कैंसर इस प्रकार हैं- मुंह का कैंसर, लंग्स (फेफड़ों) का कैंसर, कोलन कैंसर और एसोफेगस (आहार नली) का कैंसर। इनमें भी लंग कैंसर और ओरल कैंसर सबसे आम कैंसर हैं, जिनके कारण 25% से ज्यादा कैंसर के मरीज मरते हैं। कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज एडवांस लेवल में बहुत मुश्किल हो जाता है। यदि शुरुआती अवस्था में ही कैंसर का पता चल जाए, तो इसका इलाज आसानी से हो सकता है। कैंसर के टेस्ट्स के बारे में लोगों को जानकारी नहीं होती है, इसलिए भी लोग शुरुआती अवस्था में इसकी जांच नहीं कराते हैं। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कैंसर का पता लगाने वाले आसान टेस्ट्स के बारे में।
मुंह का कैंसर (Oral Cancer Screening)
ओरल कैंसर यानी मुंह के कैंसर भारत में सबसे ज्यादा इसलिए पाया जाता है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में लोग तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं। गुटखा, खैनी, तंबाकू वाला पान, सुपारी आदि के सेवन से मुंह का कैंसर हो सकता है। इसके अलावा शराब पीने वालों को भी मुंह के कैंसर का खतरा होता है। मुंह के कैंसर में कई अंग शामिल हो सकते हैं, जैसे- होंठ, जीभ, गाल, तालु, फैरिंक्स (थ्रोट), हार्ट और सॉफ्ट पैलेट आदि। मुंह के कैंसर का पता आमतौर पर बाहरी लक्षणों को देखने के बाद सीटी स्कैन कराके करवाया जा सकता है। अगर मुंह के किसी हिस्से में आपको ट्यूमर या इस जैसी समस्या होती है और डॉक्टर को कैंसर की आशंका होती है, तो वो सीटी स्कैन (CT scan) या एमआरआई स्कैन (MRI scan) कराकर इसका पता लगाते हैं।
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फेफड़ों के कैंसर की जांच (Lung Cancer Screening)
फेफड़ों के कैंसर के मरीज भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा सामने आते हैं। इसका एक बड़ा कारण धूम्रपान है। सिगरेट, बीड़ी, ई-सिगरेट्स, हुक्का आदि पीने के कारण करोड़ों लोग हर साल फेफड़ों के कैंसर का शिकार होता है और लाखों लोगों की मौत होती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि जो लोग धूम्रपान नहीं करते हैं, उनमें फेफड़ों के कैंसर का खतरा नहीं होता है। आजकल शहरों का वायु प्रदूषण भी फेफड़ों के कैंसर का कारण बन रहा है।
फेफड़ों के कैंसर की जांच के लिए सीने का लो-डोज़ सीटी स्कैन (low-dose CT scan) यानी LDCT टेस्ट किया जाता है। 55 साल से 75 साल की उम्र के लोगों को साल में एक बार ये टेस्ट जरूर कराना चाहिए।
प्रोस्टेट कैंसर (Prostate Cancer Screening)
प्रोस्टेट कैंसर का खतरा सिर्फ पुरुषों को होता है। प्रोस्टेट कैंसर प्रोस्टेट ग्लैंड को प्रभावित करता है, जो कि पुरुषों में मूत्र और वीर्य को कंट्रोल करने के लिए एक विशेष अंग होता है। प्रोस्टेट कैंसर का खतरा उम्र के साथ बढ़ता जाता है। शुरुआती अवस्था में होने पर इस कैंसर को सर्जरी के द्वारा या रेडियोथेरेपी के द्वारा ठीक किया जा सकता है। इसका पता लगाने के लिए PSA Test किया जाता है। PSA टेस्ट को Prostate Specific Antigen टेस्ट भी कहते हैं। इस टेस्ट के पॉजिटिव होने पर डॉक्टर्स कुछ स्कैनिंग टेस्ट या बायोप्सी के लिए भी कह सकते हैं। क्योंकि कई बार सिर्फ PSA से प्रोस्टेट कैंसर का पता नहीं चलता है। 50 साल की उम्र के बाद हर साल ये टेस्ट कराना चाहिए।
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पेट का कैंसर (Colon Cancer Screening)
कोलन कैंसर की शुरुआत में व्यक्ति की बड़ी आंत में छोटी-छोटी गांठ नुमा क्लम्प्स दिख सकते हैं। यही क्लम्प्स आगे चलकर कोलन कैंसर का कारण बनते हैं। आमतौर पर पुरुषों को 50 की उम्र के बाद इस टेस्ट की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा लक्षणों के दिखने पर युवाओं के लिए भी इसका टेस्ट बहुत जरूरी है। कोलन कैंसर की जांच आमतौर पर 2 प्रकार से की जाती है। पहले टेस्ट में कैंसर और पॉलिप्स दोनों का ही टेस्ट किया जाता है। इसके लिए फ्लेक्सिबल सिग्मॉइडोस्कोपी (Flexible Sigmoidoscopy), कोलोनोस्कोपी (colonoscopy), डबल कॉन्ट्रास्ट बेरियम एनीमा (double-contrast barium enema) और सीटी कोनोलोग्राफी CT colonography (virtual colonoscopy) की जाती है। इन टेस्ट्स के साथ मल और खून की जांच भी की जा सकती है या कई बार मल के डीएनए जांच की भी जरूरत पड़ती है।
एसोफेगल कैंसर यानी आहार नली का कैंसर (Esophageal cancer Screening)
आहार नली का कैंसर भी भारतीयों में बड़ा आम है। भारतीय पुरुष बड़ी संख्या में इस कैंसर का शिकार होते हैं। आमतौर पर इस कैंसर का कारण भी शराब और गलत खानपान ही होता है। इस कैंसर की जांच के लिए आमतौर पर एसोफेगल एंडोस्कोपी (esophagus endoscopy) की जाती है। इस टेस्ट के लिए आहार नली से टिशू का एक छोटा टुकड़ा निकालकर उसकी जांच की जाती है। इसके अलावा इसकी जांच के लिए Barium swallow टेस्ट किया जाता है जिसे एसोफेग्राम (esophagram) भी कहते हैं।
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