पेरेंट्स बच्चों को जरूर सिखाएं खेल के दौरान ये 5 बातें, आएगा काफी बदलाव

एक खेल का हिस्सा बनने के दौरान बच्चों को सिखाया जा सकता है कि अगर आप एक बार असफल हो जाते हैं तो आपको सफल होने के लिए बार बार प्रयास करना चाहिए। यदि आपने अपने लक्ष्य को जीतने का मन बना लिया तो आपको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है।
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पेरेंट्स बच्चों को जरूर सिखाएं खेल के दौरान ये 5 बातें, आएगा काफी बदलाव

खेल बच्चों को फिट रखने ही नहीं बल्कि उनके जीवन को कुशल और व्यवस्थित बनाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। खेल के दौरान यदि बच्चों का सही तरह से मार्गदर्शक किया जाए तो मनोरंजन के अलावा वह जिंदगी से जुड़ी कई ऐसी अहम बातें सीख सकते हैं जिनका अनुभव अक्सर लोगों को अधेड़ उम्र में होता है। एक खेल का हिस्सा बनने के दौरान बच्चों को सिखाया जा सकता है कि अगर आप एक बार असफल हो जाते हैं तो आपको सफल होने के लिए बार बार प्रयास करना चाहिए। यदि आपने अपने लक्ष्य को जीतने का मन बना लिया तो आपको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है। आज इस लेख में हम आपको कुछ ऐसी जरूरी बातें बताएंगे जो बच्चों को खेल के दौरान सिखाई जा सकती हैं।

टीम के साथ मजबूत संबंध

चाहे कोई भी गेम हो उसमें दो या दो से ज्यादा टीमें होती हैं। खेलने वाला हर बच्चा भी किसी न किसी टीमा का हिस्सा होता है। ऐसे में जब खेल शुरू होता है तो यहां बच्चा खुद के लिए नहीं बल्कि टीम के लिए खेलता है। आप चाहे किसी भी शहर से आए हों लेकिन जब आप एक टीम का हिस्सा बनते हैं तो आप खुद को नहीं बल्कि अपनी टीम को जिताने के लिए खेलते हैं। यानि कि यहां जीत अहंकार के लिए बल्कि टीम के लिए होती है। यही बात बच्चों को निजी जीवन से भी जोड़कर बताई चाहिए कि आप बड़े होकर अगर ऑफिस में या कहीं भी किसी टीम का हिस्सा बनते हैं तो जीतने की मंशा सिर्फ खुद तक ही सीमित न रखें, बल्कि इसे टीम की जीत समझें। वास्तविक जीवन में हमें एक टीम के रूप में लोगों के साथ काम करने की आवश्यकता है और इस तरह एक सामान्य लक्ष्य की दिशा में काम करते समय विचारों के अंतर को स्वीकार करने की आवश्यकता है।

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मेहनत और दृढ़ता

जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है जो आसानी से मिल जाए और ये बात बच्चों को खेल से बेहतर भला और कौन समझा सकता है? भारतीय एथलीट मिल्खा सिंह की कड़ी मेहनत के बारे में उनका एक वाकया बहुत प्रसिद्ध है। वह कहते हैं "मैं तब तक नहीं रुकूंगा जब तक कि मैं अपने पसीने से बाल्टी न भर दूं और अपना लक्ष्य न हासिल कर लूं। इसके लिए अगर मैं हजार बार भी असफल हुआ तो हार नहीं मानूंगा। बल्कि गिरकर, सबक सीखकर तब तक चलूंगा जब तक अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाऊं"। मिल्खा सिंह के अलावा भी कई अन्य नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ियों की मेहनत और दृढ़ता का उदाहरण देकर बच्चों को यह बताया जा सकता है कि उनके हाथ में जो मेडल या ईनाम है वह सिर्फ 1 दिन के खेल का परिणाम नहीं है बल्कि इसके पीछे उनकी सालों की मेहनत है। बच्चों को बताना चाहिए अगर जिंदगी के किसी मोड़ पर आप असफल होते हैं तो रुकना नहीं चाहिए बल्कि उठकर तब तक कोशिश करनी चाहिए जब तक सफलता हाथ न लग जाए।

आत्म जागरूकता

खेल बच्चों को उनकी सीमाओं को समझने के अलावा उनकी ताकत और कमजोरियों को जानने का भी मौका देता है। खेल के दौरान वे समझते हैं कि वे कितनी दूर तक खुद को ले जा सकते हैं और उन्हें समय की नजाकत को देखते हुए कब रुक जाना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि इसी नियम को उन्हें अपने वास्तविक जीवन में भी लागू करना चाहिए। हमसे बेहतर कोई हमारे बारे में नहीं जानता है। इसलिए हमें अपनी कमजोरियों को सही करते हुए अपनी ताकत की दिशा में काम करना चाहिए। साथ ही वक्त की नजाकत को देखते हुए हमें अपना अगला कदम बढ़ाना चाहिए।

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जीवन में जोखिम लेना

जिमनास्ट दीपा कर्माकर ने 2016 के रियो ओलंपिक में तब इतिहास रच दिया था जब उन्होंने खतरनाक प्रोडुनोवा वॉल्ट (जिमनास्टिक में इसे 'मौत की तिजोरी' के रूप में भी जाना जाता है) का प्रदर्शन किया। दीपा कर्माकर समेत दुनिया के केवल पांच लोग आज तक इसमें सफल हुए हैं। इस जीत के बाद दीपा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि आप अगर जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहते हैं और आपको लगता है कि आप उसे कर भी सकते हैं, तो जोखिम लेने से डरना नहीं चाहिए। उस दिन अगर दीपा ने अपने सुविधा क्षेत्र (कम्फर्ट ज़ोन) से बाहर निकलकर जोखिम न लिया होता तो शायद विश्व चैम्पियन में आज उनका नाम न गिना जाता। यदि बात हमें बच्चों को भी बतानी चाहिए।

गिव अप करना कोई जवाब नहीं होता

खेल के दौरान टीम का कोच बच्चों को बताता है कि अगर हम किसी टीम का हिस्सा है और मैदान में जाकर आपको लग रहा है कि हम सामने वाले से कमजोर हैं, तो हमें किसी भी कीमत पर छोड़ना (गिव अप) नहीं चाहिए, बल्कि आखिरी क्षण तक अपना बेहतर प्रदर्शन देना चाहिए। खेल में चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो चैंपियंस कभी हार नहीं मानते हैं। इसी तरह हमें निजी जीवन में भी दृढ़ और ईमानदार रहने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि जिंदगी हमेशा हमारे हिसाब से चलेगी। जिंदगी में उतार चढ़ाव चलता रहता है। इसलिए हमें भी वक्त के साथ चलना चाहिए।

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