हृदय (दिल) हमारे शरीर का अहम अंग है। छाती के मध्य से थोड़ी बायीं ओर स्थित दिल पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह करता है। दिल को ऑक्सीजन कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान की जाती है जो कि रक्त के माध्यम से मिलती है। अलग-अलग कारणों की वहह से दिल में कई प्रकार की बीमारी जैसे रुमेटिक हृदय रोग, जन्मजात खराबियां, हृदय की विफलता तथा पेरिकार्डियल बहाव, कोरोनरी धमनी रोग, हार्ट अटैक, हार्ट वाल्व रोग, हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक आदि हो सकते हैं।
क्यों होता हैं कार्डियोवस्कुलर हृदय रोग
हृदय रोग (कार्डियोवस्कुलर हार्ट डिजीज) होने का मुख्य कारण है कोलेस्ट्राल के स्तर में वृद्धि। यदि हाइ डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) की मात्रा है तो वे कम प्रभावशाली होते हैं। एचडीएल को अच्छा कोलेस्ट्राल माना जाता है क्योंकि यह हृदय की रक्तवाहनियों से कोलेस्ट्राल को बाहर लाता है। यदि लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन अणुओं का आकार छोटा है तो उनके रक्तवाहनियों में जमने की संभावना बढ़ जाती है। मोटापा भी दिल की बीमारियों का प्रमुख कारण है। वजन घटाने के लिए नियमित व्यायाम तथा साधारण तथा संतुलित भोजन करना चाहिए। वजन घटाने के लिए भूखे रहना और ज्यादा कसरत करना भी ठीक नहीं है, इससे दिल पर बुरा असर पड़ता है। दिल को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम और सुबह या शाम के समय चहलकदमी करनी चाहिए। व्यायाम से हाथ−पैरों की धमनियां स्वस्थ रहती हैं जिससे शरीर में रक्त बहाव ठीक से होता है। धूम्रपान भी दिल के रोग का एक प्रमुख कारण है। दिल को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि आदर्श व पौष्टिक भोजन किया जाए। भोजन में वसा की मात्रा को सीमित करना चाहिए। फास्ट फूड, जंक फूड, तला−भुना और चिकनाई युक्त खाना नहीं खाना चाहिए। चिकनाई वाला खाना खाने से शरीर का वजन बढ़ने के साथ ही ऑयल रक्त धमनियों में जम जाता है। इससे खून का बहाव धीरे−धीरे कम होता जाता है और कार्डियोवस्कुलर हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है। जिन व्यक्तियों में कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य से अधिक हो उन्हें प्रतिदिन 20 से 25 ग्राम सोया प्रोटीन लेना चाहिए। इससे कोलेस्ट्राल का स्तर कम होता है। ट्रीग्लिसीराइड भी कार्डियोवस्कुलर रोग का एक कारण हो सकता है। सोया प्रोटीन लेने से शरीर में एचडीएल कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ती है, इसे गुड़ कोलेस्ट्राल माना जाता है। यह कोलेस्ट्राल रक्त नलिकाओं से बुरे कोलेस्ट्राल को हटाने में सहायक होता है।
कार्डियोवस्कुलर हृदय रोग के लक्षण
- शरीर में सूजन
- चक्कर आना
- अत्यधिक पसीना आना
- तेजी से सांस लेना, त्वचा, होंठ और अंगुलियों के नाखूनों में नीलापन, थकान और खून का संचार कम होना
- सांस फूलना
- सीने, जबड़े या बांह में दर्द होना
- थकान व कमजोरी महसूस होना
- सांस रोकने में तकलीफ, रक्त जमना और फेफड़ों में द्रव जमा होना
- पैरों, टखनों और टांगों में पानी का जमा होना
कार्डियोवस्कुलर रोग से बचाव व उपचार-
जीवनशैली में करें सकारात्मक बदलाव
कार्डियोवस्कुलर रोगों से बचाव के लिए जीवन शैली में बदलाव व सुधार करना बहुत जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि शारीरिक सक्रियता को बनाएं रखा जाए। जितना हो सके तनाव से बचें। अपनी सोच को सकारात्मक रखें और आशावादी बनें। तनाव से बचने के लिए मनपसन्द संगीत सुन सकते हैं।
नियमित व्यायाम
नियमित रूप से व्यायाम करके आसानी से जानलेवा हृदय रोग से बचा जा सकता है। सुबह सैर पर जा सकते हैं या घर, पार्क या बागीचे में कसरत या योगा कर सकते हैं। अगर आप के परिवार में पूर्व में किसी को हृदय रोग रहा हो तो शारीरिक श्रम से आप लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
जरूरत पर सर्जरी का सहारा ले सकते हैं
यदि दवाएं और नियमित देखभाल हृदय रोग के लक्षणों को कम नहीं करती हैं, तो आप सर्जरी के विकल्प के बारे में अपने डॉक्टर से बात कर सकते हैं। अनेक प्रक्रियाएं जैसे हार्ट वॉल्व सर्जरी, इनफ्रेक्ट एक्सक्लूजन सर्जरी, हार्ट ट्रासप्लान्ट (हृदय प्रत्यारोपण) तथा बाईपास सर्जरी आदि संकीर्ण या अवरुद्ध धमनियों को फिर से खोलने या सीधे हृदय की चिकित्सा के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं।
खान पान का ध्यान रखें
तला-भुना अधिक न खाएं। फास्ट फूड और चिकनाई वाला खाना खाने से वजन भी बढ़ता है और यह चिकनाई रक्त धमनियों में जम जाती है। जिससे खून का बहार धीरे−धीरे कम होता जाता है। इसलिए संतुलित व पौष्टिक आहार ही लें। फल व सब्जियों का सेवन करें।